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बोया पेड़ बबूल का तो….

एक कहावत है ‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होए’. यह मुहावरा आज अमेरिका जैसे देश पर बिल्कुल सटीक बैठता है.आज से ठीक 40 वर्ष पूर्व 24 दिसंबर 1979 को जब तत्कालीन सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में साम्यवादी शासन पर मुजाहिद्दीन आतंकियों की बर्बर कार्रवाई को रोकने हेतु आक्रमण किया था, उस समय […]

एक कहावत है ‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होए’. यह मुहावरा आज अमेरिका जैसे देश पर बिल्कुल सटीक बैठता है.आज से ठीक 40 वर्ष पूर्व 24 दिसंबर 1979 को जब तत्कालीन सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में साम्यवादी शासन पर मुजाहिद्दीन आतंकियों की बर्बर कार्रवाई को रोकने हेतु आक्रमण किया था, उस समय अमेरिका ने पाकिस्तान के कुछ भटके और दिशाहीन युवकों को भड़काकर ‘तालिबान’ रूपी आतंकवादी जिन्न को आर्थिक और सैन्य मदद देते हुए सोवियत सेना के सामने खड़ा किया था.
वही तालिबानी जिन्न अब अमेरिका को ही धमकी दे रहा है. आज तालिबान को लेकर अमेरिका की हालत सांप-छूछूंदर की हो गयी है. अमेरिका को अपनी असीमित महत्वाकांक्षा को थोड़ा विराम देना चाहिए. बहुत हो चुका. दुनिया के लोगों को अब शांतिपूर्वक अपना जीवन जीने दें.
निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद

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