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शातिर कर रहे हैं कालाबाजारी, बौने साबित हो रहे सामान पर लगे प्रतिबंध

अंजन आर्यन, सहरसा : प्रशासन की उदासीनता के कारण कोई भी अभियान आज तक पूरा नहीं हो पाया है. सबसे पहले लागू होने वाली शराबबंदी अब तक पूरी तरह से विफल रही है. उसके बाद पॉलीथिन बंद भी विफल रहा और अब पान मसालों पर लगा प्रतिबंध भी अब तक तो बेअसर ही दिख रहा […]

अंजन आर्यन, सहरसा : प्रशासन की उदासीनता के कारण कोई भी अभियान आज तक पूरा नहीं हो पाया है. सबसे पहले लागू होने वाली शराबबंदी अब तक पूरी तरह से विफल रही है. उसके बाद पॉलीथिन बंद भी विफल रहा और अब पान मसालों पर लगा प्रतिबंध भी अब तक तो बेअसर ही दिख रहा है.

ऐसा ही हाल रहा तो इस प्रतिबंध को भी फेल होने से कोई नहीं रोक सकता. इन सभी चीजों पर रोक को लेकर संबंधित विभाग द्वारा लगातार कितनी बार छापेमारी भी की गयी है. उसके बाद भी पूरा शहर इन सभी प्रतिबंध वाली चीजों से पटा पड़ा है.
वैसे देखा गया है कि किसी भी चीज पर प्रतिबंध लगने के बाद उसका दायरा और बढ़ जाता है. कहा जाये तो कालाबाजारी का खेल खुलेआम शुरू हो जाता है. बेरोजगारों को कम समय में अत्यधिक पैसा कमाने का रोजगार मिल जाता है. चंद पैसों के लोभ में कुछ लोग सही काम करते हुए गलत काम कर पैसा बनाने में जुट जाते हैं. और बैन चीजों को स्टॉक करना शुरू कर देते हैं .
पहले हुई पूर्ण शराबबंदी लागू….
सालाना साढ़े तीन हजार से चार हजार करोड़ का राजस्व देने वाली शराब की बिक्री पर राज्य सरकार ने 1 अप्रैल 2016 से पूर्णतया रोक लगा दी. 5 अप्रैल 2016 को राज्य सरकार ने पूरे बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू कर शराब बेचने से लेकर पीने वाले तक के लिए सजा भी निर्धारित कर दिया.
लेकिन शराबबंदी के कुछ दिन बाद से ही पूरे राज्य में गलत तरीके से शराब का कारोबार फैलने लगा. सरकार से लेकर प्रशासन तक की आंखों में धूल झोंककर शराब कारोबारियों को शराब बेचने का नशा और चढ़ने लगा. खरीदने बेचने से लेकर पीने पिलाने तक का नया नया फॉर्मूला लागू होने लगा.
शराबबंदी से लेकर आज तक सभी शहरों में शराब की बिक्री और तेज हो गयी है. हर जगह की तरह इस शहर की भी हालात ऐसी ही है. सिर्फ कहने के लिए शराबबंदी है. पहले जो कुछ भी होता था वह सब सरकार से लेकर प्रशासन की नजर के सामने था. लेकिन अब सबकुछ पीठ पीछे चोरी छिपे लेकिन धड़ल्ले से जारी है.
शराबबंदी के बाद लोगों को पहले से ज्यादा सुविधा के साथ शराब उपलब्ध होने लगी है. शराब उनके इच्छानुसार पसंदीदा जगह पर रूम के अंदर तक पहुंचायी जा रही है. शराबबंदी से पूर्व और बाद में फर्क सिर्फ इतना है कि पहले निर्धारित मूल्य में शराब मिलता था, लेकिन अब दोगुनी कीमतों पर मिल रहा है.
शराबबंदी के बाद राज्य सरकार को मिलने वाला राजस्व तो पूरी तरह से समाप्त हो गया है. लेकिन राज्य सरकार को मिलने वाले राजस्व से कई गुणा ज्यादा पैसा तो शराबबंदी के बाद कालाबाजारी करने वाले लोगों ने जमा कर लिया है. इसका जीता जागता उदाहरण खुद प्रशासन है जो आये दिन शराब की बड़ी से बड़ी खेप पकड़ती रहती है. फिर भी शराब शहर से लेकर गांवों तक आसानी से उपलब्ध हो जा रहा है.
फिर लगी पॉलीथिन पर रोक….
राज्य सरकार के निर्देशानुसार पॉलीथिन मुक्त बिहार बनाने की मुहिम शुरू की गयी. 23 दिसंबर 2018 को दंडात्मक कार्यवाही के साथ ही पॉलीथिन पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया. पचास माइक्रॉन से नीचे वाले सभी पॉलीथिन पर रोक लगा दी गयी. इस मुहिम के लिए लगातार जागरूकता रैली निकाली गयी.
लेकिन लोग जागरूक नहीं हुए. पॉलीथिन पर रोक लगने के बाद पूरे शहर में जगह जगह छापेमारी की जाने लगी. राज्य के लगभग सभी पॉलीथिन निर्माण कंपनी को पचास माइक्रॉन से नीचे की पॉलीथिन बनाने पर राज्य सरकार ने पूरी तरह से रोक लगा दी. थोक विक्रेताओं की दुकानों पर नगरपरिषद व जिला प्रशासन द्वारा लगातार छापेमारी की जाने लगी.
सजा के तौर पर सभी से चालान काटकर दोबारा से कालाबाजारी नहीं करने की पूरी हिदायत भी दी गयी. लेकिन धीरे धीरे राज्य सरकार की यह मुहिम ठंढ़े बस्ते में चली गयी. पॉलीथिन की कालाबाजारी करने वाले शहर में आज भी खूब फलफूल रहे हैं. शहर अब पूरी तरह से कालाबाजारी का अड्डा बन चुका है. पहले से दोगुनी कीमत पर खरीद कर खुदरा व्यवसायी द्वारा आज भी खुलेआम पॉलीथिन का उपयोग किया जा रहा है.
अब टारगेट पर है पान मसाला
राज्य सरकार ने पान मसाला खाने वालों को झटका देते हुए पिछले महीने के 30 अगस्त को एक वर्ष के लिए सभी पान मसालों पर प्रतिबंध लगा दिया है. प्रतिबंध लगते ही थोक से लेकर खुदरा व्यवसायी तक पान मसालों की कालाबाजारी में जुट गये हैं. हाल ही में प्रतिबंध लगने के कारण जिला प्रशासन अभी जागरूक दिख रही है.
लेकिन पान मसाला पर प्रतिबंध लगने के बाद से ही शहर के कई थोक व्यवसायियों ने अपना स्टॉक पॉइंट बदल दिया है. जिससे कालाबाजारी आसानी से की जा सके. खुदरा व्यवसायी भी चोरी छिपे पान मसाला को मंहगी दामों पर बेचने लगे हैं. इसीलिए अब तक की गयी सभी पाबंदी विफल दिख रही है. क्योंकि जहां कालाबाजारी है, वहां कोई मुहिम सफल नहीं हो सकती है.

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