नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी का 95 साल की उम्र में निधन हो गया. वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे. वकालत के पेशे को 70 साल से ज्यादा वक्त तक जीने वाले जेठमलानी ने रविवार सुबह अंतिम सांस ली. देश के लगभग सभी चर्चित केसों में वकील रहे जेठमलानी 94 साल की उम्र तक भी बेहद सक्रिय रहे. अपने धारदार तर्को से कठिन केस को अपने मुवक्किल के हिस्से में पलटने वाले जेठमलानी मात्र 17 साल के उम्र में ही वकील बन गये थे. अविभाजित भारत में पाकिस्तान स्थित शिकारपुर में 14 सितंबर 1923 को जन्में राम जेठमलानी के परिवार में पिता और दादा वकील थे. लिहाजा वकालत की पेशे को लेकर आकर्षण बचपन से ही था.
पढ़ने में बेहद मेधावी रहे जेठमलानी ने दूसरी, तीसरी और चौथी कक्षा की पढ़ाई एक साल में ही पूरी कर ली थी और मात्र 13 साल की उम्र में मैट्रिक पास कर गये थे. जब उनकी उम्र 17 साल की हुई तब वह वकालत की डिग्री हासिल कर चुके थे लेकिन उन दिनों नियम के हिसाब से प्रैक्टिस करने की न्यूनतम उम्र 21 साल रखी गयी थी. जेठमलानी के विशेष योग्यता को देखते हुए इस उम्रसीमा में छूट दी गयी.
पिता उन्हें वकील नहीं बनाना चाहते थे. अपने परिवारवालों की जिद की वजह से उन्होंने मैट्रिक के बाद साइंस ले लिया था लेकिन राम जेठमलानी पिता के इस फैसले से खुश नहीं थे. शिकारपुर में एक ‘लवर्स ब्रिज’ था. जहां वैसे लोग जाते थे, जो अपने मोहब्बत में नाकामयाब होते थे. रामजेठमलानी भी वहां पहुंचते थे क्योंकि उन्हें कानून से प्यार था और मजबूरी में साइंस पढ़ना पड़ा.
विभाजन के बाद जब पाकिस्तान में लगातर हालत खराब होने लगे तो रामजेठमलानी के एक दोस्त ने उन्हें भारत जाने की सलाह दी. हालांकि वह भारत आना नहीं चाहते थे लेकिन अपने दोस्त की सलाह मानकर भारत पहुंच गये. मुंबई आकर थोड़े दिनों तक उन्होंने रिफ्यूजी का जीवन जीया. उन दिनों भारत सरकार ने शरणार्थियों के लिए 96 कॉलोनियां बनायी थी. इन्हीं में से एक घर जेठमलानी के हिस्से आये. जिंदगी में थोड़ी स्थिरता आयी तो वकालत के करियर की शुरुआत हुई. पहली बार उन्होंने उस दौर की सबसे चर्चित केस केएम नानावती बनाम महाराष्ट्र सरकार का केस लड़ा. युवा वकील जेठमलानी ने नानावती के पक्ष में अपनी दलील दी. उनके विरूद्ध उस जमाने के मशहूर वकील यशवंत चंद्रचूड थे. लेकिन रामजेठमलानी की जीत हुई. 1959 के इस केस ने उन्हें वकालत की दुनिया में रातों – रात स्टार बना दिया.
फिर उन्होंने 1960 में तस्करों के पक्ष में केस लड़ा. हाजी मस्तान के केस में उन्हें जीत हासिल हुई लेकिन उन्हें तस्करों का वकील कहा जाने लगा. धीरे – धीरे राम जेठमलानी को इस तरह के केस लड़ने की आदत पड़ गयी. चाहें वह इंदिरा गांधी व राजीव गांधी के हत्या आरोपी के पक्ष में केस लड़ने की बात हो या फिर छात्रा यौन शोषण मामले में आसाराम के वकील के रूप में. रामजेठमलानी इसके पीछे तर्क देते हैं कि ट्रायल के पहले किसी को दोषी मान लेना कानून का अपमान है और यह न्याय के मूल भावना के खिलाफ है.