23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

VIDEO : डायन, बांझपन और लिंग भेद के दर्द को बयां करती नागपुरी फिल्म ‘फुलमनिया’

मराठी या बांग्ला भाषा में बनने वाली क्षेत्रीय फिल्मों ने कई अवॉर्ड जीते हैं. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मराठी और बांग्ला फिल्मों की तारीफ हुई है. झारखंड से पहली बार एक फिल्म अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंची. फिल्म का नाम है ‘फुलमनिया’. नागपुरी भाषा में बनी इस फिल्म ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जमकर […]

मराठी या बांग्ला भाषा में बनने वाली क्षेत्रीय फिल्मों ने कई अवॉर्ड जीते हैं. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मराठी और बांग्ला फिल्मों की तारीफ हुई है. झारखंड से पहली बार एक फिल्म अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंची. फिल्म का नाम है ‘फुलमनिया’. नागपुरी भाषा में बनी इस फिल्म ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जमकर सुर्खियां बटोरी हैं. एक साथ तीन गंभीर विषयों का फिल्मांकन किया गया है. डायन प्रथा, बांझपन और लिंग भेद के दर्द को फिल्म में पूरी शिद्दत के साथ बयां किया गया है. निर्माता-निर्देशक लाल विजय शाहदेव ने कलाकारों से बेहतरीन काम लिया है.

https://www.youtube.com/watch?v=cxhsu4wkWMg

‘फुलमनिया’ एक गांव की अल्हड़, शोख और चंचल लड़की है. छोटी उम्र में उसकी शादी हो जाती है. फुलमनिया (कोमल सिंह) के व्यवहार से उसकी सास बेहद खुश थी. कुछ ही दिनों में फुलमनिया को मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है, जब उसके पति की मौत हो जाती है. पति की मौत से पहले उसके घर की एक गाय मर गयी थी. गांव की महिलाओं ने फुलमनिया को अपशकुनी और डायन कहना शुरू कर दिया. एक ओझा ने इस पर मुहर लगा दी और फुलमनिया को पत्थर मारकर गांव से भगाने की सलाह दे दी. अशिक्षित, अज्ञानी लोगों ने मार-मारकर फुलमनिया को गांव से निकाल दिया.

ससुराल से बेइज्जत करके निकाली गयी फुलमनिया किसी तरह रांची पहुंच जाती है. यहां उसे एक घर में नौकरी मिल जाती है और कमाये हुए पैसे वह अपनी बीमार मां के इलाज के लिए भेज देती है. उसे जब ज्यादा पैसे की जरूरत होती है, तो वह मालकिन से मांगती है. मालकिन पैसे देने से साफ इन्कार कर देती है. फुलमनिया को पता चलता है कि किसी को किराये की कोख की जरूरत है और उसके लिए एक लाख रुपये मिलेंगे. फुलमनिया पेपर लेकर उस घर तक पहुंच जाती है.

यहां उसकी मुलाकात ऋषि (अंकित राठी) से होती है. ऋषि फुलमनिया को जय (रवि भाटिया) और प्रीति (खुशबू शर्मा) से मिलवाता है. प्रीति बांझपन की शिकार महिला है, जो अपने पति जय से बहुत प्यार करती है. जय के माता-पिता को वंश चलाने के लिए पोता चाहिए. और प्रीति को बार-बार इसके लिए ताने सुनने पड़ते हैं. प्रीति किराये की कोख से अपना बच्चा पाने के लिए जय को मनाती है. फुलमनिया अपने कोख में जय का बच्चा पालने के लिए तैयार हो जाती है.

इसी दौरान प्रीति को आत्मग्लानि महसूस होती है कि उसने अपने पति को खुद किसी और महिला को सौंप दिया. इस आत्मग्लानि में वह आत्महत्या करने जाती है. जय का दोस्त ऋषि उसे जान देने से तो बचा लेता है, लेकिन उस आंधी-तूफान की रात प्रीति के जीवन में एक नया तूफान आ जाता है. जीवन में आये इस तूफान को पर्दे पर जीवंत करने में खुशबू ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. फिल्म के पहले दृश्य से लेकर अंतिम दृश्य तक फुलमनिया के बचपन के मित्र बतक्कड़ (हंसराज जगताप) ने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है.

फिल्म में जय के माता-पिता क्रमश: नीतू पांडेय और विनीत कुमार ने एक रूढ़िवादी बुजुर्ग के किरदार को पर्दे पर जीवंत कर दिया है. बतक्कड़ की नानी का किरदार छोटा और सीमित है, लेकिन रीना सहाय ने बेहतरीन प्रस्तुति दी है. फुलमनिया के बाबा शैलेंद्र शर्मा और उसकी मां सुशीला लकरा के अलावा उसकी जेठानी का किरदार निभाने वाली किम मिश्रा ने अच्छा अभिनय किया है. भोला बाबा की भूमिका में प्रणब चौधरी, ओझा का किरदार मुन्ना लोहार और गांव के युवक नंदू (अशोक गोप) ने भी दर्शकों का मनोरंजन किया है.

नंदलाल नायक के संगीत और ज्योति साहू की आवाज दर्शकों को खूब भायी. फुलमनिया का फिल्मांकन (सिनेमाटोग्राफी) किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं है. भाषा ऐसी है कि आप आराम से फिल्म के संवाद को समझ सकते हैं. बॉलीवुड में 21 साल तक काम करने के बाद लाल विजय शाहदेव ने नागपुरी दर्शकों की नब्ज पकड़ी है और सही विषय का चयन किया है, जिसकी सराहना हो रही है. कुल मिलाकर इस फिल्म को एक बार जरूर देखना चाहिए.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें