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मधुमेह व रक्तचाप की जांच के लिए गांवों में व्यापक अभियान जरूरी

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक यह काम खुद शासन करे या फिर स्वयंसेवी संस्थाएं या दोनों मिलकर करें. काॅरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत भी इस काम को किया जा सकता है. पर, मधुमेह और रक्तचाप की जांच अब अत्यंत जरूरी है. ये बीमारियां महामारी का रूप ले रही हैं. इनके कारण अन्य बीमारियां भी हो जाती […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
यह काम खुद शासन करे या फिर स्वयंसेवी संस्थाएं या दोनों मिलकर करें. काॅरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत भी इस काम को किया जा सकता है. पर, मधुमेह और रक्तचाप की जांच अब अत्यंत जरूरी है. ये बीमारियां महामारी का रूप ले रही हैं. इनके कारण अन्य बीमारियां भी हो जाती हैं. अधिक लोग बीमार यानी सरकारी साधनों पर अधिक बोझ.
खुद जांच कराते रहने के मामले में हमारा राज्य कौन कहे, पूरा देश ही पिछड़ा माना जाता है. शहरों में भी इस मामले में थोड़ी ही जागरूकता है. पर सही जांच के लिए प्रामाणिक पैथलैब की भी तो भारी कमी है. यदि सही जांच हो जायेगी और समय रहते मर्ज का पता चल जायेगा तो उसका इलाज भी संभव है. इससे सरकारी अस्पतालों तथा आयुष्मान योजना का खर्च भी घट सकता है. अब तो जांच के लिए पोर्टेबल मशीनें भी उपलब्ध हैं.
जांच के प्रति जागरूकता नहीं : पहले गांवों में अधिकतर लोग सप्ताह में एक दिन नमक छोड देते थे. अन्य तरह के संयम बरतते थे. व्रत करते थे. उपवास-फलाहार होता था. अब भी करते हैं, पर उनकी संख्या कम होती जा रही है.
गांवों में भी नौजवानों में खानपान का संयम कम होता जा रहा है. यदि आप सप्ताह में एक दिन नमक भी नहीं छोड़ेंगे और ब्लड प्रेसर की जांच भी नहीं कराएंगे तो उसका नतीजा क्या होगा? संभव है कि आपके शरीर में रोग पल रहा हो और आप उससे अंत-अंत तक अनजान बने रहें. ऐसे में शासन की जिम्मेदारी बढ़ जाती है.
जल बचाएं अगली पीढ़ियों के लिए : जो लोग चाहते हैं कि उनके प्रपौत्रों को भी जल संकट न झेलना पड़े, वे ब्रश करते समय बेसिन के नल को नाहक खुला न छोड़ें. यह तो एक नमूना भर है. हम हर स्तर पर जल बचाएं. हम जल इस तरह बर्बाद करते रहते हैं मानो यह असीमित हो. पर, ऐसा है नहीं. जल ही जीवन है. इसे बनाया नहीं जा सकता. सिर्फ इसे बचाया जा सकता है.
जुर्माना अधिक नहीं : ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर लग रहा जुर्माना कतई अधिक नहीं है. जिस देश में सड़क दुर्घटनाओं में हर साल करीब दो लाख लोग मरते हैं, वहां तो जुर्माना और भी अधिक होना चाहिए था.
जान से अधिक कीमत किसी अन्य चीज की नहीं. आमतौर से जो वाहन चालक इतने गैर जिम्मेदार हैं कि जरूरी कागजात लेकर नहीं चलते, उन्हीं में से अधिकतर लोगों के कारण सड़क दुर्घटनाएं होती हैं. समस्या उदंड व लापरवाह मानसिकता की है. ऐसा ही भारी जुर्माना उन लोगों पर भी लगना चाहिए जो अतिक्रमण करके मुख्य सड़कों को संकड़ा बना देते हैं. इस तरह वे जाम और दुर्घटनाओं की पृष्ठभूमि तैयार कर देते हैं.
इस देश के जो सत्ताधारी नेता यह समझते हैं कि कानून तोड़कों के साथ नरमी बरत कर वे अपने वोट बढ़ा लेंगे, वे गलतफहमी में रहते हैं. ऐसी ही गलतफहमी में उन राज्यों के सत्ताधारी नेता हैं जिन्होंने नये ट्रैफिक नियमों को लागू करने से इन्कार कर दिया है. वहां के वैसे लोग उससे नाराज ही होंगे जो चाहते हैं कि सड़कों पर अराजकता न हो.
जेपी थे परिवार नियोजन के समर्थक : जयप्रकाश नारायण ने 1978 में कहा था कि ‘मैं हमेशा परिवार नियोजन का समर्थक रहा हूं.’ इस संबंध में तब उन्होंने एक अपील भी जारी की थी. अपील सरकारी विज्ञापन के रूप में थी.
उसे भारत सरकार के डीएवीपी ने अखबारों में विज्ञापन के रूप में छपवाया था. तब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री और राज नारायण स्वास्थ्य मंत्री थे. जेपी की अपील इस प्रकार थी, ‘मैं हमेशा परिवार नियोजन का समर्थक रहा हूं. मैंने देश में अनेक मंचों से और समाचार पत्रों के जरिये इस कार्यक्रम का समर्थन किया है.
मैं समझता हूं कि देश की आम प्रगति और समृद्धि के लिए अपनाये जाने वाले महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में से परिवार नियोजन एक है. इस बारे में मैं केवल एक बात फिर से दोहराना चाहता हूं कि इस कार्यक्रम को लागू करते समय किसी किस्म की जोर जबर्दस्ती नहीं की जानी चाहिए. मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि गांवों की आम जनता छोटे परिवार के महत्व को स्वीकार करती है. लेकिन, मैं समझता हूं कि अब तक राज्य और स्वैच्छिक संस्थाएं उनकी इस जरूरत को पूरा करने के लिए आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था नहीं कर पाई हैं.
मेरे विचार से इस काम के लिए प्रचार अथवा जानकारी देने की उतनी आवश्यकता नहीं है जितनी सुविधाएं जुटाने की. मेरी राय में ग्रामीण अस्पतालों या स्वास्थ्य केंद्रों में अब भी इसके लिए सुविधाएं नहीं हैं. इसलिए मैं सोचता हूं कि प्रचार की अपेेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में इन सुविधाओं की व्यवस्था की ओर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए. -जयप्रकाश नारायण’
और अंत में : आज भारत की जनसंख्या करीब एक अरब 36 करोड़ है. यहां प्रति वर्ग किलोमीटर में 416 व्यक्ति रहते हैं. वहीं अमेरिका में प्रति वर्ग मील में औसतन मात्र 92 दशमलव 6 व्यक्ति रहते हैं. हमारी आबादी दुनिया की पूरी आबादी का 17 दशमलव 71 प्रतिशत है. दुनिया के कुल क्षेत्रफल का 2 दशमलव 4 प्रतिशत ही भारत के पास है.

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