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पटना : मुश्किल से हो रही है एफआइआर खोजने का जिम्मा भी परिजनों को

आनंद तिवारी शुरुआती घंटों में सक्रियता दिखाये पुलिस, तो मिल सकती हैं लड़कियां पटना : लड़कियों के गायब होने या अपहरण के मामले की जांच पुलिस गंभीरता से करे, तो उन्हें कुछ ही घंटों में खोजा जा सकता है. लेकिन, पुलिस की लचर कार्य प्रणाली के चलते शुरुआती 15 से 30 घंटे तक इस तरह […]

आनंद तिवारी
शुरुआती घंटों में सक्रियता दिखाये पुलिस, तो मिल सकती हैं लड़कियां
पटना : लड़कियों के गायब होने या अपहरण के मामले की जांच पुलिस गंभीरता से करे, तो उन्हें कुछ ही घंटों में खोजा जा सकता है. लेकिन, पुलिस की लचर कार्य प्रणाली के चलते शुरुआती 15 से 30 घंटे तक इस तरह के मामले को गंभीरता से नहीं लिया जाता.
यही कारण है कि इस दौरान क्राइम ऑफ सीन (घर छोड़ने का सही कारण या समय) के साथ लड़कियां घर से दूर निकल जाती हैं. ‘गुम हुई लड़कियों का अब तक पता नहीं’ के दूसरे भाग में प्रभात खबर रिपोर्टर ने पुलिस की कार्य प्रणाली की पड़ताल की. पड़ताल के दौरान कई ऐसी बातों का पता चला, जिसमें समय रहते पुलिस एक्शन लेती, तो बच्चियों के लापता होने के कुछ घंटों बाद ही उन्हें बरामद किया जा सकता था.
मौके पर नहीं पहुंचती पुलिस : किसी भी थाना क्षेत्र से लड़कियां के लापता या किडनैप होने की स्थिति में पीड़ित स्थानीय पुलिस थाने या 100 डायल को फोन कर घटना की जानकारी देता है. अधिकांश मामलों में पुलिस मौके पर नहीं पहुंचती. पीड़ित थाना पहुंच शिकायत करते हैं. पुलिस बच्चियों की फोटो लेती है. कई बार तो पुलिस पीड़ितों को विज्ञापन खुद छपवाने का आदेश देकर पल्ला झाड़ लेती है. खोजने के नाम पर खानापूर्ति होती है.
प्रेम-प्रसंग का केस मान कर होती है लापरवाही
क्या कहते हैं परिजन
आठ साल की पिंकी घूमने मेरे घर कंकड़बाग स्थित आजाद नगर आयी थी. 25 अगस्त से वह गायब है. तीन दिन थाने का चक्कर लगाने के बाद 28 अगस्त को बमुश्किल से कंकड़बाग थाने में लापता होने का मामला दर्ज किया गया. मुहल्ले के एक व्यक्ति पर संदेह हुआ है. लेकिन अभी तक इसकी ठोस जानकारी नहीं मिल पायी है.
इश्वर राम, पिंकी के नाना
कंकड़बाग केंद्रीय स्कूल में पढ़ने गयी प्रेरणा पिछले पांच महीने से लापता है. मेरी बच्ची का उम्र 14 साल है. अपहरण होने की आशंका पर हमने थाने में मामला भी दर्ज कराया. पुलिस के कई बड़े अधिकारियों से मुलाकात की.अधिकारियों ने संज्ञान भी लिया. लेकिन बेटी का अब तक पता नहीं चल पाया. मैं पूर्वी लोहानीपुर में परिवार के साथ रहता हूं.
प्रमोद रजक, प्रेरणा के पिता
पुलिस नाबालिग लड़की के लापता होने के 90% मामलों को प्रेम-प्रसंग का मामला मानती है
ऐसे में लड़कियों की तलाश में कोई कार्रवाई नहीं की जाती है. सूत्रों की मानें, तो लापता होने वाले ज्यादातर केस में पुलिस बड़ी लड़कियों के मोबाइल की लोकेशन निकाल लेती है, लेकिन लोकेशन तक पुलिस स्वयं अपने संसाधनों से नहीं पहुंचती है. इसके लिए वह पीड़ित परिजनों से आर्थिक मदद के साथ संसाधनों तक की मदद मांगती है. कई मामलों में पीड़ित परिजन मदद करने की स्थिति में नहीं होते. ऐसे में पुलिस कार्रवाई बीच में ही छोड़ देती है.
मेरी दोनों चचेरी नाबालिग बहनें खुशी व छोटी गायब हो गयीं. फुलवारीशरीफ थाने में मामला दर्ज कराया गया है. मैंने लगातार पुलिस के कई अधिकारियों से संपर्क किया. लेकिन दोनों बहनें नहीं मिल सकीं. करीब ढाई महीने बाद सोशल मीडिया व आम लोगों की मदद से उनको नेपाल बॉर्डर पर बरामद किया जा सका.
मोहम्मद नवी आलम, भाई
क्या कहते हैं अधिकारी
बच्चों के लापता या अपहरण होने की स्थिति में पुलिस अपने स्तर से कार्रवाई करती है. इतना ही नहीं, कई बार पीड़ित के पास फोटो नहीं होती तो वह अपने स्तर से फोटो बनवा कर रिकॉर्ड तैयार कराती है. कई मामलों में लड़कियों को सुरक्षित बरामद कर उनके परिवार को सौंप दिया गया है. वहीं, लड़कियां गायब क्यों हो रही हैं, कोई बड़ा मामला खुल कर सामने नहीं आया है. पुलिस मामले को गंभीरता से लेते हुए पता लगा रही है.
संजय सिंह, आइजी, पटना

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