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जिले में पिछड़ रही है धान की रोपाई

परेशानी : धान रोपने के लिए नहीं मिल रहे हैं मजदूर गढ़वा :खेतिहर मजदूरों के लिए प्रसिद्ध गढ़वा जिले में आज मजदूरों के अभाव में धान की रोपाई नहीं हो पा रही है. अमूमन इस इलाके में 15 अगस्त तक (सावन महीना) धान की रोपनी खत्म हो जाती है. क्योंकि इसके बाद रोपे गये धान […]

परेशानी : धान रोपने के लिए नहीं मिल रहे हैं मजदूर

गढ़वा :खेतिहर मजदूरों के लिए प्रसिद्ध गढ़वा जिले में आज मजदूरों के अभाव में धान की रोपाई नहीं हो पा रही है. अमूमन इस इलाके में 15 अगस्त तक (सावन महीना) धान की रोपनी खत्म हो जाती है. क्योंकि इसके बाद रोपे गये धान की पौधे या तो कमजोर हो जाते हैं अथवा विभिन्न रोगों की चपेट में आने की उनकी आशंका बढ़ जाती है. इस हिसाब से धान की रोपनी का समय काफी पिछड़ चुका है, लेकिन बनिहारों के अभाव में इसकी रोपाई नहीं हो पा रही है.
मजदूरों के अभाव में किसानों ने ट्रैक्टर से खेत तो तैयार कर लिया है. बिचड़ा भी उखाड़ा जा चुका है. लेकिन उस बिचड़े को खेतों में रोपने के लिए बनिहारन का नहीं मिलना, उनके लिए चिंता का कारण बना हुआ है. जिले के कई क्षेत्रों में एक सप्ताह से अधिक समय से इसे रोपने के लिए खेतों में डाले गये धान के बिचड़े खेतों में पड़े-पड़े खराब होने की स्थिति में पहुंचने लगे हैं.
लेबर बेल्ट कहकर पुकारते हैं गढ़वा कोझारखंड प्रांत के गढ़वा जिले की स्थिति अब काफी बदल चुकी है. बावजूद पड़ोसी राज्य यूपी, बिहार से लेकर पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों के लोग इसे लेबर बेल्ट कहते हैं. इसका कारण है कि उनके यहां के खेतों के सारे कार्य यहां के खेतिहर मजदूरों पर निर्भर रहता है. यद्यपि अब खेती की जुताई से लेकर अन्य सभी कार्यों के लिए मशीनें उपलब्ध हो चुकी हैं. इसके बावजूद अभी भी धान रोपने व धान काटने के लिए गढ़वा जिले से हजारों की संख्या में महिला-पुरुष मजदूर बाहर के राज्यों में अपने परिवार के साथ जाते रहते हैं, जहां किसानों द्वारा बेसब्री से इनका इंतजार होता है.
मजदूरों की अनिश्चितता की अवस्था में किसानों के बिचौलिये खुद यहां आकर मजदूरों को अग्रिम भुगतान कर ले जाते हैं. वहां जाने के बाद यहां के मजदूर महीनों तक रहकर खेती का कार्य निबटाते हैं. इसके एवज में उन्हें किसान से जो मजदूरी मिलती है, उसे लेकर घर वापस होते हैं. कम से कम धान रोपने और काटने के लिए जिले से एक बड़ी आबादी बाहर के राज्यों में मजदूरी के लिए जाते हैं. लेकिन आज स्थिति यह है कि दूसरे राज्यों के खेतों को गुलजार करनेवाले गढ़वा जिला के खेत खेतिहर मजदूरों के अभाव में सूने पड़े हुए हैं. खेतों में पड़े धान के पौधे रोपने के बिना खराब हो रहे हैं.
कृषि कार्य में परेशानी
इस संबंध में किसानों का कहना है कि जिले में समृद्ध खेती के अभाव में खेतिहर मजदूरों को यहां पर्याप्त कार्य नहीं मिलता है. इसके कारण वे बड़े किसानों के यहां काम करना चाहते हैं, जहां उन्हें दीर्घ समय तक के लिए खेतों में काम मिलता है. इस कारण यहां के अधिकांश खेतिहर मजदूर लंबे समय तक के काम के लिए बाहर पलायन कर जाते हैं. गढ़वा प्रखंड के दुबे मरहटिया के किसान सुरेंद्र पांडेय व मुरारी तिवारी ने कहा कि साल-दर-साल खेतों में काम करनेवाले मजदूरों का अभाव होता जा रहा है. एक तरफ मजदूरी काफी बढ़ गयी है, वहीं मजदूर जल्दी मिलते नहीं है. इस कारण कृषि कार्य करने में परेशानी हो रही है.
खासकर वैसे किसान जिनके खेत लंबे हैं और अपने से मेहनत-मजदूरी नहीं कर सकते हैं. मजदूरों के अभाव का एक बड़ा कारण यह भी है कि नयी पीढ़ी के मजदूर खेती कार्य नहीं करना चाहते हैं. वे बाहर जाकर दूसरी मजदूरी कर सकते हैं, लेकिन कीचड़ में उतरकर खेतों में मजदूरी करना उनको गंवारा नहीं है. किसानों ने कहा कि आनेवाले समय में अब धान के बिचड़े उखाड़ने व रोपनी के लिए भी मशीन पर ही निर्भर रहना पड़ेगा.

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