डॉ देवव्रत सिंह
टिप्पणीकार
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एक बार मैंने अपने एक विदेशी मित्र से पूछा कि भारत में आकर आपको सबसे निराली बात क्या लगती है? तो उसने थोड़ा हिचकते हुए बताया कि भारत के शहरों में सड़कें उसे सबसे विचित्र लगती हैं.
थोड़ा सोचने पर मैंने भी पाया कि सच में सड़कों और उन पर होनेवाली गतिविधियों में हम लोग दुनियाभर से काफी अलग हैं. भारतीय समाज में सड़कों का स्थान और उनका दैनिक जीवन में उपयोग थोड़ा हैरान करनेवाला है. हमारी सड़कों पर कारें, ऑटो रिक्शा, ई-रिक्शा, बाइक, स्कूटर, बैलगाड़ी, साइकिल, पैदल यात्री, पटरी बाजार, सब्जी मार्केट, पार्किंग, कचरे का डिब्बा, गाय, कुत्ते सब एक साथ दिखायी देते हैं.
शादियों का जुलूस जब तक गाजे-बाजे के साथ सड़कों पर ना निकले, तब तक दुल्हे राजा और उसके परिवार को संतुष्टि ही नहीं होती. भले ही उस जुलूस से सैकड़ों लोगों को तकलीफ होती हो. हम अपने सारे त्यौहार भी सड़कों पर ही मनाते हैं. दिवाली, ईद और क्रिसमस पर तो बाजार की रौनक होती ही है. रंग-बिरंगे बनके बाइक और गाड़ियों पर सवार होकर जब तक अपनी खुशी का प्रदर्शन ना किया जाये, तो होली का मजा ही नहीं आता. सड़कों को और दुर्गम बना देनेवाले पूजा पंडाल सड़कों के किनारे ही लगाये जाते हैं.
कृष्ण की माखन हांडी भी सड़क पर ही फूटती है. अनेक जगह नमाज के लिए सड़कों का उपयोग होता है. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आदिवासी सब अपने लंबे और धीरे-धीरे रेंगनेवाले धार्मिक जुलूस सड़कों पर ही निकालते हैं. मानो सड़कें शक्ति प्रदर्शन का एक राजपथ हैं. कई बार तो लगता है कि सड़कों पर असुविधाएं झेलने की भारतीय समाज में असीम धैर्य है.
कारोबार ही नहीं राजनीति भी सड़कों से आरंभ होकर सड़कों पर ही समाप्त होती है. दिल्ली के जंतर-मंतर की तरह अधिकांश छोटे शहरों में भी धरना-प्रदर्शन के लिए कोई चौराहा या सड़क प्रसिद्ध होती है. जहां सालभर राजनीतिक दल अपनी मौजूदगी का अहसास कराते रहते हैं.
छुटभैये नेताओं के लिए अपनी राजनीति चमकाने का सड़क ही महत्वपूर्ण स्थल होता है. यहां नियमित रूप से पुतले फूंककर, धरना देकर, रोड जाम करके न केवल बाजार आनेवाले लोगों का ध्यान आसानी से आकर्षित किया जा सकता है, बल्कि अखबार की सुर्खियां भी बटोरी जा सकती हैं. बात-बेबात पर लड़ाई-झगड़ों, विवादों और दंगों का असली चेहरा भी सड़कों पर ही सामने निकलकर आता है.
कुछ लोग अपनी और दूसरों की जान जोखिम में डालकर सड़कों पर बाइक के करतब शान से दिखाते हैं. हल्की बरसात के बाद गटर का पानी जब सड़कों पर आ जाता है, तो सड़कें नगरपालिका की पोल भी खोल देती हैं. सड़कें सार्वजनिक संपत्ति हैं, तो स्वाभाविक रूप से इस पर किसी भी समय सुविधानुसार थूकना या कचरा फेंकना हम अपना अधिकार मानते हैं. सड़कों पर भारतीय समाज की रोचक प्रकृति और इसकी हैरान करनेवाली आदतों के दर्शन होते हैं.