- फिल्म : मिशन मंगल
- निर्देशक : जगन शेट्टी
- निर्माता: अक्षय कुमार
- कलाकार : अक्षय कुमार, विद्या बालन, सोनाक्षी सिन्हा, तापसी पन्नू, नित्या मेनन, शरमन जोशी, एच जी दत्तराइया और अन्य
- रेटिंग : साढ़े तीन
उर्मिला कोरी
असल जिंदगी की प्रेरणादायक कहानियों को रुपहले पर्दे पर दर्शाने का चलन पिछले कुछ समय से जोरों पर है. भारत के मंगल ग्रह की कक्षा में सैटेलाइट लांच करने की कहानी को मिशन मंगल में दिखाया गया है. वो भी पहली कोशिश में ही भारतीय वैज्ञानिकों ने ये सफलता हासिल की थी. यह इस बात को और खास बना देता है. इसी स्वर्णिम गाथा को एंटरटेनमेंट की चाशनी में डुबोकर इस फिल्म में परोसा गया है, जो मनोरंजन करने के साथ-साथ गर्व का अनुभव भी कराती है. फिल्म महिला सशक्तिकरण पर भी जोर देती है. कैसे होम साइंस का इस्तेमाल साइंटिफिक कार्यों में भी महिलाएं कर चीजों को आसान बना देती हैं.
कहानी की शुरुआत 2010 से होती है. इसरो की टीम जो राकेश (अक्षय कुमार) द्वारा लीड की जा रही है, वो रॉकेट पीएसएलवी लांच कर रही है लेकिन एक तकनीकी खराबी के कारण मिशन विफल हो जाता है और इस विफलता का जिम्मेदार राकेश और तारा (विद्या) को ठहराया जाता है. राकेश कहता भी है कि वैज्ञानिक का मतलब है कि प्रयोग होना चाहिए. सफलता विफलता बाद की बात है. लेकिन राकेश को टारगेट करते हुए इसरो मिशन मंगल प्रोजेक्ट पर भेज देता है. ऐसा प्रोजेक्ट जिसका होना सभी जानते हैं नामुमकिन है.
चीन, रूस जैसे देश कई हजार करोड़ लगाकर भी मंगल मिशन में असफल रह चुके हैं. ऐसे में भारत सीमित फंड और समय में किस तरह से इस सपने को पूरा करता है, राकेश और तारा की टीम की इसी कहानी पर यह फिल्म है. राकेश और तारा की टीम की परेशानी सिर्फ प्रोफेशनल नहीं बल्कि व्यक्तिगत स्तर भी हैं. इन सबसे जूझते हुए वे कैसे मिशन को कामयाब बनाते है. यही फिल्म की आगे की कहानी है. फिल्म अंडरडॉग की कहानी है. कभी ना हार मानने वाले जज्बे की कहानी है. सोती आंखों से नहीं बल्कि जागती आंखों से सपने देखे जाते हैं. फिल्म के निर्देशक की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने कितने काॅम्प्लेक्स विषय को इतने सिंपल तरीके से पेश किया है. फिल्म का विषय वैज्ञानिक है लेकिन निर्देशक ने रचनात्मक आजादी लेते हुए इसके विषय को सिंपल कर दिया है. हालांकि फिल्म में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग थोड़ा ज्यादा हुआ है, जिससे सिंगल स्क्रीन के दर्शकों को थोड़ी परेशानी हो सकती है.
यह भारत की पहली स्पेस फिल्म करार दी जा रही है लेकिन फिल्म वीएफएक्स के मामले में अपनी वह छाप नहीं छोड़ पाती है. फिल्म के विषय के लिहाज से वह बहुत औसत रह गया है.
भारतीय साइंटिस्ट अभावों में किस तरह मिसाल कायम करते हैं, यह बात भी यह फिल्म पुख्ता करती है. इसके लिए फिल्म की तारीफ करनी होगी.
अभिनय की बात करें, तो अक्षय की तारीफ करनी होगी कि निर्माता होने के बावजूद उन्होंने पूरी कहानी खुद पर केंद्रित नहीं की है. उन्होंने स्पॉटलाइट अपनी महिला सह कलाकारों के साथ बखूबी बांटा है. विद्या बालन हमेशा की तरह एक बार फिर बेहतरीन रही हैं. इसरो की वैज्ञानिक और घरेलू महिला के किरदार को बखूबी जिया है. नित्या, सोनाक्षी, कृति का किरदार भी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हुआ है. शरमन जोशी और दत्तराइया ने अपने अपने किरदारों के जरिये फिल्म को थोड़ा लाइट बनाया है. तापसी का किरदार दूसरों के मुकाबले थोड़ा कमजोर रह गया है. बाकी के किरदार अपनी अपनी भूमिकाओं में जमे हैं. संवाद फिल्म के अच्छे बन पड़े हैं. गीत-संगीत थोड़ा कमतर रह गया है. कुल मिलाकर यह फील गुड फिल्म सभी को देखी जानी चाहिए.