II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म : जबरिया जोड़ी
निर्देशक : प्रशांत
निर्माता : शैलेश आर सिंह
कलाकार : सिद्धार्थ मल्होत्रा, परिणीति चोपड़ा,जावेद जाफरी,शरद कपूर,शक्तिमान खुराना और अन्य
रेटिंग : डेढ़
बिहार के सामाजिक कुप्रथा पकड़वा विवाह को फ़िल्म जबरिया जोड़ी कॉमेडी, सामाजिक संदेश और मसाला एंटरटेनर के ज़रिए एक अलग ही अंदाज़ में बयां करने की कोशिश होती है लेकिन समझ ही नहीं आता कि फ़िल्म प्रेमकहानी है ,सोशल ड्रामा या फिर मसाला एंटरटेनर है या फिर कह सकते हैं कि इतने सारे मसालों का प्रयोग हुआ है कि कहानी पूरी तरह से बेस्वाद हो गयी है.
कहानी को जानें तो बिहार के दबंग हुकुम सिंह( जावेद जाफरी) जबरिया जोड़ी का माफिया चलाते हैं. जिसमें उनका बेटा अभय( सिद्धार्थ) उसकी मदद करता है. उसे लगता है कि वे समाज सेवा कर रहे हैं.
अभय का सपना राजनीति में जाना है. वह प्यार में नहीं पड़ना चाहता है लेकिन प्यार तो होना ही है. दबंग बबली (परिणीति) से उसे प्यार हो जाता है लेकिन वो इज़हार नहीं करना चाहता है इसी बीच बबली अभय का अगवा कर उससे जबरिया शादी कर लेती है क्या होगा इस प्रेम कहानी का यही आगे फ़िल्म की कहानी है.
फ़िल्म अपने कांसेप्ट के साथ न्याय नहीं कर पाती है. पकड़वा विवाह को लेकर कुछ ठोस ना तो संदेश दे पायी है ना ही मनोरंजन ही. रीयलिस्टिक से फ़िल्म पूरी तरह से दूर भागती है।बिहार शराब मुक्त राज्य है और फ़िल्म के हर दूसरे दृश्य में जमकर शराबबाज़ी भी हुई है.
अभिनय की बात करें तो परिणीति और सिद्धार्थ दोनों ही अपने किरदारों में अनफिट से लगे हैं. सिद्धार्थ ने रंग बिरंगे कपड़े,चश्मे से लेकर पान भी खूब चबाया है लेकिन उन्हें समझने की ज़रूरत है कि बिहारी ऐसे नहीं होते हैं. वे बिहारी बाहुबली के किरदार से कोसों दूर नज़र आते हैं.
अभिनय और लुक के मामले में तो परिणीति सिद्धार्थ से और भी बुरी साबित हुई हैं ,बिहारी लहजा ज़रूर सही पकड़ा है. अपनी शुरुआती फिल्मों में बेहतरीन अभिनय की छाप छोड़ने वाली परिणीति लगता है अभिनय को भूलती जा रही हैं. कम से कम उनकी इस फ़िल्म को देखकर लगता है. शक्तिमान खुराना फ़िल्म में करने को कुछ खास नहीं था. चंदन रॉय सान्याल नीरज सूद और संजय मिश्रा अच्छे रहे हैं.
नीरज और संजय का किरदार परदे पर गुदगुदाते है जिससे फ़िल्म थोड़े पल के लिए ही सही कम बोझिल लगती है. शरद एक अरसे बाद पर्दे पर नज़र आए हैं लेकिन करने को कुछ नहीं था. जावेद जाफरी का किरदार अधूरा सा लगता है ना ही ठीक से किरदार दबंग है ना ही कॉमिक. बाकी किरदारों का काम ठीक ठाक है.
फ़िल्म में संगीतकारों की लंबी फेहरिस्त है लेकिन गीत संगीत निराशाजनक ही रहा है. बिहारी बैकड्रॉप वाले इस फ़िल्म में पंजाबी गाने क्यों हैं. फ़िल्म के संवाद की बात करें तो गईं चुनकर चार पांच पंच अच्छे बन पड़े हैं. बप्पी लाहिरी से शादी वाला हो या ऑडी और मर्सेडीज़ की परिभाषा वाला वो अच्छा बन पड़ा है लेकिन चार पांच पंच के लिए फ़िल्म नहीं झेली जा सकती है. कुलमिलाकर यह फ़िल्म एंटरटेनमेंट के नाम पर जबरिया अत्याचार है.