नयी दिल्ली: जमशेदपुर में तीन साल की बच्ची का पहले अपहरण किया गया फिर गला रेतकर हत्या कर दी गयी. पुलिस ने दुष्कर्म की भी आशंका जताई है. कुछ महीने पहले यूपी के अलीगढ़ में चार साल की बच्ची का कुछ लोगों ने अपहरण किया और गला दबाकर हत्या कर दी. आप कठुआ गैंगरेप का मामला भी नहीं भूले होंगे जब एक सात साल की बच्ची का अपहरण किया गया और हफ्ते तक उसे बंधक बनाकर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गयी.
ये कुछ मामले हैं जिनका जिक्र किया जा रहा है लेकिन आप रोजाना अखबार उठा करे देखें तो पाएंगे तो दर्जनों मामले हर महीने सामने आते हैं जब मासूमों को यौन हिंसा का शिकार बनाया जाता है. उनके साथ दुष्कर्म किया जाता है और फिर पहचाने जाने के डर से उनकी हत्या कर दी जाती है.
केंद्रीय महिला एंव बाल विकास मंत्री ने दी जानकारी
नाबालिग बच्चों के साथ यौन हिंसा जैसे अपराधों के लिए भारत में साल 2012 में एक कानून बनाया गया. कानून का नाम था ‘प्रिवेंशन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस’ यानी पॉक्सो. कुछ लोग गलती से इसका उच्चारण पॉस्को भी करते हैं. इस कानून के होने के बाद भी नाबालिगों के प्रति हिंसा की घटनाओं में कोई कमी नही आई थी. लोकसभा में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति इरानी ने कहा कि देशभर में 6 लाख अपराधियों की पहचान की गयी है जिन्होंने बच्चों को अपना निशाना बनाया है. उन्होंने बताया कि बच्चों के प्रति हिंसा की वारदातों की पहचान करने के लिए एक डाटाबेस बनाया गया था जिसमें अब तक ढाई लाख मामले सामने आए हैं.
29 जुलाई को लोकसभा से पास हुआ विधेयक
बच्चों के साथ बढ़ती हिंसा की खबरों को देखते हुए राजग सरकार पॉक्सो एक्ट में संसोधन विधेयक लेकर आयी. केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृित ईरानी ने 18 जुलाई को इस विधेयक को राज्यसभा में पेश किया. विपक्षी नेताओं ने कहा कि प्राकृतिक आपदा और सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बच्चों के साथ होने वाली हिंसा को भी इसमें शामिल किया जाए. सरकार ने इसे स्वीकार कर लिया और सभी ने पार्टी लाइन और राजनीति से ऊपर उठकर इसके पक्ष में मतदान किया. 24 जुलाई को पॉक्सो एक्ट संसोधन बिल-2019 राज्यसभा से पास हो गया. जब ये राज्यसभा से पास हो गया तो लोकसभा में सत्तारूढ़ दल की संख्याबल के आधार पर इसे आसानी से पास हो जाना था. हुआ भी ऐसा ही. बीते 29 जुलाई को उपरोक्त विधेयक लोकसभा से भी पास हो गया. इसके साथ ही इस संबंध में कड़ा कानून बनाने का मार्ग प्रशस्त हो गया.
पॉक्सो एक्ट संसोधन विधेयक में ये प्रावधान हैं…
- बलात्कार का दोषी पाए जाने पर संबंधित शख्स को 7 की बजाय 10 साल का कठिन कारावास भुगतना होगा. यदि पीड़ित की उम्र 16 साल से कम है (चाहे वो लड़का हो या लड़की) तो दोषी को न्यूनतम 20 साल या फिर अधिक की कठिन कारावास की सजा होगी.
- बलात्कार के दौरान यदि बच्चे की मौत हो जाती है, प्राकृतिक आपदा के दौरान दुष्कर्म होता है या फिर किसी सांप्रदायिक हिंसा के दौरान किसी बच्चे के साथ दुष्कर्म होता है तो दोषी को न्यूनतम 20 साल की सजा होगी. मामले की गंभीरता अथवा घटना की प्रकृति के आधार पर दोषी को फांसी की सजा दी जा सकती है.
- किसी नाबालिग बच्ची या बच्चे से सामूहिक दुष्कर्म की वारदात होने पर दोषियों के लिए इस विधेयक में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है. फांसी की सजा तभी दी जाएगी जब आरोपी की उम्र 16 साल से अधिक हो.
- नए विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक यदि बच्चों के शरीर में हार्मोन या कैमिकल इंजेक्ट करके उसे यौनिक रूप से परिपक्व बनाने की कोशिश को भी यौन अपराध की श्रेणी में रखा गया है. इस अपराध के लिए दोषी को न्यूनमत पांच साल वहीं अधिकतम सात साल के कारावास का प्रावधान है.
- चाइल्ड पॉर्नोग्राफी की परिभाषा में बदलाव किया गया है. पहले केवल बच्चों से जुड़े अश्लील वीडियो को ही इसके दायरे में रखा गया था लेकिन अब तस्वीर, एनिमेटेड वीडियो और कार्टून्स को भी चाइल्ड पोर्नोग्राफी के दायरे में रखा गया है. अगर कोई बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री रखता हुआ पकड़ा गया तो पहली बार दोषी पाए जाने पर 5 हजार रुपये वहीं दूसरी बार अपराध साबित होने पर 15 हजार रुपये का जुर्माना भरना पड़ेगा. चाइल्ड पोर्नोग्राफी को प्रचारित, प्रसारित करने अथवा उसे बेचने के जुर्म में पहले तीन साल जेल की सजा का प्रावधान था पर अब इसे बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया है.
- मंत्री स्मृति ईरानी ने बताया कि निर्भया फंड से 123 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने का प्रस्ताव है. उम्मीद जाहिर की जा रही है कि कोर्ट 2021 तक बन कर तैयार हो जाएंगे. इन अदालतों में मामले की सुनवाई महज 6 महीने के अंदर की जाएगी.
- सरकार ऐसी व्यवस्था करने जा रही है जिसमें बच्चों को सुनवाई के दौरान प्रताड़ना का अनुभव ना हो. उनसे कठिन सवाल ना पूछे जाएं और ना ही उनको पूछताछ के लिए बार-बार ना बुलाया जाए. ऐसे व्यक्ति को भी 6 महीने की जेल हो सकती है जिसने यौन अपराध की जानकारी होने के बाद भी पुलिस को इसकी सूचना ना दी हो.