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छोटी दवा दुकान से खड़ा किया कंपनियों का साम्राज्य

देश के सबसे अमीरों की सूची में शामिल उद्योगपति संप्रदा सिंह का जन्म 25 अगस्त, 1926 सावन पूर्णिमा को जहानाबाद जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर मोदनगंज प्रखंड के ओकरी गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था. नारायण सिंह और जयंती देवी के पुत्र संप्रदा बाबू की प्राथमिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी […]

देश के सबसे अमीरों की सूची में शामिल उद्योगपति संप्रदा सिंह का जन्म 25 अगस्त, 1926 सावन पूर्णिमा को जहानाबाद जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर मोदनगंज प्रखंड के ओकरी गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था. नारायण सिंह और जयंती देवी के पुत्र संप्रदा बाबू की प्राथमिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी स्कूल में हुई थी. मात्र 13 साल की उम्र में ही उनकी शादी नन्हावती से हुई थी.

पटना में एक छोटे से दवाई की दुकान से शुरुआत कर 30 से ज्यादा देशों में उनका कारोबार फैला है. इतना ही नहीं लगभग 26 हजार करोड़ से अधिक निजी संपत्ति के मालिक स्व संप्रदा सिंह यह दर्जा हासिल करने वाले पहले बिहारी उद्यमी थे.
स्व सिंह ने गया कॉलेज से बी.कॉम की पढ़ाई की. इसके बाद पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया. पटना विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद संप्रदा सिंह खेती करना चाहते थे. संप्रदा सिंह के पिता के पास लगभग 25 बीघा जमीन थी. पढ़ाई पूरी कर सिंह गांव आये और आधुनिक तरीके से खेती करने की कोशिश की.
खेतीबाड़ी न हो पायी तो संप्रदा सिंह ने एक निजी हाइस्कूल में शिक्षक की नौकरी कर ली. बच्चों को कुछ साल पढ़ाने के बाद स्व यह नौकरी भी छोड़ दी और पटना जाकर बिजनेस करने का फैसला किया. जहां उन्होंने छाते की दुकान शुरू की लेकिन यहां भी सिंह का दिल नहीं लगा. इसके बाद एक रिश्तेदार की दवा दुकान पर काम करने लगे.
सिंह ने वर्ष 1953 में पटना में महज 43 हजार रुपये में एक छोटे से दवा दुकान की शुरुआत की. वर्ष 1960 में इन्होंने अपने कारोबार का विस्तार करने के उद्देश्य से मगध फार्मा नाम से एक फार्मास्युटिकल्स डिस्ट्रिब्यूशन फर्म की शुरुआत की. देखते-देखते ही स्व सिंह कई बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के डिस्ट्रीब्यूटर बन गये.
इसके बाद स्व सिंह ने खुद की दुकान अल्केम फार्मा खोली, जिससे वह पूरे बिहार में दवा की सप्लाइ करने लगे. इसके बाद वे कारोबार बढ़ने पर महानगर मुंबई चले गये. यहां स्व सिंह ने वर्ष 1973 में महज एक लाख रुपये से उन्होंने अल्केम लेबोरेटरीज नाम से खुद की दवा बनाने वाली कंपनी खोली.
लेकिन पूंजी कम होने के कारण से शुरुआत के पांच साल काफी संघर्ष करना पड़ा. वर्ष 1989 में अचानक मोड़ आया, जब अल्केम लैब ने एक एंटी बायोटिक कंफोटेक्सिम का जेनेरिक वर्जन टैक्सिम बनाने में सफलता हासिल की.
उचित कीमत होने के कारण टैक्सिम ने मार्केट में अपनी पकड़ मजबूत कर लिया. इस मजबूती ने देश के फार्मा सेक्टर अल्केम लेबोरेटरीज को एक नयी पहचान दिलायी. अल्केम लेबोरेटरीज आज फार्मास्युटिकल्स और न्यूट्रास्युटिकल्स बनाती है.
आज विश्व के फार्मा सेक्टर में इसकी विशिष्ट पहचान है. अल्केम नाम की कंपनी बनायी और दूसरे की दवा कारखाना में अपनी दवा बनवायी. डॉक्टरों से अच्छे व्यवहार होने के कारण बिहार में उनका दवा कारोबार चल निकला, फिर यहां से स्व सिंह ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
1942 के स्वतंत्रता आंदोलन में भी लिया था हिस्सा
संप्रदा बाबू 11 साल की उम्र से ही किसान नेता स्वामी सहजानंद के विचारों से काफी प्रभावित थे. घोसी हाइस्कूल के अपनी साथियों के साथ 1942 के स्वतंत्रता आंदोलन में भी कूद पड़े थे. एक बार साथियों के साथ घोसी पुलिस स्टेशन में आग भी लगा दी थी़
1945 में जब द्वितीय विश्व युद्ध में इंग्लैंड की जीत का जश्न घोसी हाइस्कूल में मनाया जा रहा था तो साथियों के साथ उन्होंने इसका विरोध किया़ इसके बाद उन्हें स्कूल के होस्टल से निकाल दिया गया था. गया कालेज में बी-कॉम की पढ़ाई करते हुए जयप्रकाश नारायण से प्रभावित होकर सोशलिस्ट पार्टी की गतिविधियों से जुड़े रहे.
खास-खास
2017 में संप्रदा सिंह को सिंगापुर में आयोजित सिंगापुर बिजनेस सोशल फोरम में ग्लोबल एशियन ऑफ अवार्ड से भी सम्मानित किया था. 2017 में फोर्ब्स इंडिया की ओर से जारी भारत के अमीरों की सूची में 43वां स्थान दिया गया था. 2018 में फोर्ब्स ने दुनिया के अरबपतियों के लिस्ट जारी की, जिसमें संपद्रा सिंह 1867वें स्थान पर थे़
गार्जियन के जाने से गांव और जिले के लोग हैं दुखी
संप्रदा सिंह का पैतृक गांव ओकरी जहां उन्होंने अपना बचपन और तरूणाई बिताया, वहां जैसे ही निधन की खबर पहुंची पूरा गांव शोक में डूब गया. गांव के हर घर के लिए सम्प्रदा बाबू अपने परिवार जैसे थे. किसी के दादा तो किसी के चाचा तो किसी के मित्र, कोई उनके साथ बचपन में खेला था तो कोई अपने बचपन में उनकी गोद में पला था.
गांव भर में हर घर ने सम्प्रदा बाबू के बचपन से लेकर अभी तक के किस्सों की चर्चा सभी के जुबां पर थी. गांव के नवल शर्मा, मुंद्रिका शर्मा, वासुदेव सिंह, सुधीर शर्मा, ओमप्रकाश शर्मा, सुधन शर्मा आदि लोग बताते हैं कि सम्प्रदा बाबू का सहज, सरल और प्रेमपूर्ण व्यवहार ने उनको सभी का प्रिय बनाया था.
गांव-जेवार और जिले के हजारों नौजवानों को रोजगार दिलाकर उनके घरों का चूल्हा जलाने वाले सम्प्रदा बाबू के निधन से आज सभी घरों में मातम पसरा हुआ है. वहीं जिले में कई सामाजिक संस्थाओं और लोगों को उनसे समय-समय पर मदद मिली थी जो आज उनके प्रति आभार और दुख व्यक्त करते नहीं थक रहे.

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