नयी दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) की दो छात्राओं ने सैनिटरी नैपकिन को साफ करके उसके दोबारा इस्तेमाल के लिए एक उपकरण बनाया है. इस उपकरण से बायोमेडिकल कचरे में कमी आएगी.
आईआईटी बॉम्बे और गोवा की इन छात्राओं ने इस उपकरण का नाम ‘क्लींज राइट’ रखा है और इसे पेटेंट के लिए भी भेज दिया है. उनके मुताबिक यह उपकरण 1500 रुपये तक में उपलब्ध हो सकता है.
आईआईटी-बॉम्बे की इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की छात्रा ऐश्वर्या ने बताया कि मासिक धर्म के दौरान सफाई को लेकर बढ़ रही जागरूकता से बड़ी संख्या में महिलाएं अब एक बार प्रयोग करके फेंकने वाला सैनिटरी पैड इस्तेमाल करने लगी हैं.
ये पैड नॉन-बायोग्रेडेबल प्लास्टिक से बने होते हैं और बायोमेडिकल कचरे में तब्दील होते हैं. उन्होंने कहा कि एक महिला अपनी जिंदगी में मासिकधर्म के कुल चक्र में करीब 125 किलोग्राम तक नॉन बायोग्रेडेबल कचरा पैदा करती है और एक सिंथेटिक पैड के घुलने में करीब 500-800 साल लगते हैं.
इस उपकरण का इस्तेमाल पैड साफ करने के लिए बिना बिजली के भी किया जा सकता है. इसमें बिजली की जरूरत नहीं होती है.