संतोष कुमार गुप्ता
उम्र के अंतिम पड़ाव में चल रही मुसमात दशरथिया पानी में ही घिर कर खाट पर अपना गुजर बसर कर रही है. कुछ साल पहले उसको लकवा लग गया था. तब से वह चलने में असमर्थ है. उसे एक तरफ पेट की चिंता तो दूसरी तरफ शौच की परेशानी एक साथ सता रही है. पुत्र मिश्रिलाल सहनी पूरे परिवार के साथ बांध पर तम्बू गाड़े हुए हैं. वह सुबह शाम मां के लिए चूड़ा चीनी नाव से या गर्दन भर पानी पार कर के पहुंचाता है. पोता मुनटुन देखभाल करता है. दर्द सिर्फ यहां ही नहीं है. मुनचुन देवी गर्भवती है. वह तम्बू में गुजर बसर कर रही है.
पौष्टिक आहार की जगह उसे चूड़ा चीनी से गुजर बसर करना पड़ रहा है. परेशानी बढ़ी तो आसपास अस्पताल भी नहीं है. रीना देवी के साथ भी यही समस्या है. जितेंद्र सहनी साड़ी के तंबू में परिवार के साथ रह रहे हैं. पैर टूटने से सुनैना देवी निशक्त हो गयी है. उसको नाव पर लाद कर ले जाया गया है. बांध पर शरण लिये पनमा देवी का सहारा कोई नहीं है. दूसरे लोग मदद ना करे तो वह भूखे सो जाती है. जामीन माठिया बांध पर शरण लिए सैकड़ों परिवारों का चूल्हा नहीं जल रहा है. सभी सामुदायिक किचेन के इंतजार में हैं. लेकिन प्रशासन की तरफ से कोई उपाय नहीं किया जा रहा है. वार्ड सचिव उपेंद्र सहनी के नेतृत्व मे सैकड़ों ग्रामीणों ने शनिवार को सीओ को आवेदन देकर कहा है कि विस्थापित हुए परिवारों को अविलम्ब पॉलिथिन, सामुदायिक कीचेन व अन्य सुविधाएं उपलब्ध करायी जाये. बांध पर 50 बकरी, 20 गाय व दस भैंस के चारा का भी प्रबंध नहीं हो रहा है.