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आतंक पर नकेल

मुंबई में आतंकी हमलों के तुरंत बाद कानून बनाकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) का गठन हुआ था. दस सालों के अपने अस्तित्व में इस संस्था ने आतंक पर अंकुश लगाने की दिशा में अनेक उपलब्धियां हासिल की है. हमारे देश में इस्लामिक स्टेट के पैर पसारने की कोशिशों को रोकने तथा कश्मीर घाटी में अलगाववादियों […]

मुंबई में आतंकी हमलों के तुरंत बाद कानून बनाकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) का गठन हुआ था. दस सालों के अपने अस्तित्व में इस संस्था ने आतंक पर अंकुश लगाने की दिशा में अनेक उपलब्धियां हासिल की है.

हमारे देश में इस्लामिक स्टेट के पैर पसारने की कोशिशों को रोकने तथा कश्मीर घाटी में अलगाववादियों को सीमापार से मिल रही आर्थिक मदद पर लगाम लगाने में मिली कामयाबी खास तौर पर उल्लेखनीय है.

हालांकि, भारत समेत कई देशों ने आतंकी हिंसा को सीमित करने की लगातार कोशिश की है, परंतु मानवता के विरुद्ध यह संगठित हिंसा आज भी बड़ी चुनौती बनी हुई है. बदलती परिस्थितियों में जांच एजेंसी को अधिक अधिकार देने और उसका दायरा बढ़ाने की जरूरत बहुत दिनों से महसूस की जा रही थी. अभी तक यह एजेंसी परमाणु ऊर्जा कानून और अवैध गतिविधियों को रोकने के कानून जैसी व्यवस्थाओं के तहत आनेवाले अपराधों की जांच कर सकती है.

गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पेश और लोकसभा द्वारा मंजूर संशोधनों में एनआइए को मानव तस्करी, नकली नोट, प्रतिबंधित हथियारों को बनाना व बेचना, साइबर आतंकवाद और विस्फोटकों से संबंधित अपराधों की जांच का अधिकार दिया गया है. तेजी से बदलती दुनिया में आतंक का रूप भी बदल रहा है. ऐसे में जांच एजेंसी का दायरा बढ़ाने से उसकी क्षमता और प्रभाव में भी बढ़ोतरी होगी.

इसके लिए इस संस्था के कर्मियों को पुलिस अधिकारियों के बराबर अधिकार दिये गये हैं और उनका कार्य-क्षेत्र समूचा देश होगा. अंतरराष्ट्रीय समझौतों और अन्य देशों के कानूनों के अनुरूप अब एजेंसी देश के बाहर हुए अपराधों की भी जांच कर सकेगी. वैश्विक दौर में आतंक भी बहुराष्ट्रीय हो गया है तथा धन जुटाने और प्रचार-प्रसार के लिए वह अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग भी कर रहा है.

ऐसे में यह प्रावधान बेहद अहम है. समय पर समुचित जांच का परिणाम तभी अर्थपूर्ण हो सकता है, जब दोषियों को दंडित भी किया जाये. अदालतें मुकदमों के भार से दबी पड़ी हैं और मामलों की सुनवाई पूरी होने में बरसों का समय लग जाता है.

इस परेशानी को दूर करने के लिए संशोधन विधेयक में सरकार को विशेष अदालतों के गठन का अधिकार भी प्रस्तावित है. विशेष अदालतों के होने से निरपराध आरोपियों को भी बेजा तकलीफ से नहीं गुजरना पड़ेगा. किसी कानून के दुरुपयोग की आशंका स्वाभाविक है. आतंकवाद के आरोप में निर्दोष लोगों के भी लंबे समय तक जेल में रहने के उदाहरण हैं.

इस संदर्भ में कानून का गलत इस्तेमाल न होने देने का गृह मंत्री का अश्वासन बहुत महत्वपूर्ण है. गिने-चुने सदस्यों के अलावा पक्ष और विपक्ष के समर्थन से लोकसभा में संशोधन विधेयक का पारित होना यह इंगित करता है कि इसके प्रावधान बहुत मजबूत और संतुलित हैं. उम्मीद है कि यह विधेयक जल्दी ही कानून का रूप लेगा और जांच एजेंसी नये तेवर से अपनी जिम्मेदारी निभा सकेगी

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