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बच्चे कमा कर लाते हैं, ताे नसीब होता है िनवाला

किस्को/लोहरदगा : पिता के लापता होने के बाद दो नाबालिग बच्चों के सहारे पल रहा है एक परिवार. किस्को प्रखंड क्षेत्र की हिसरी पंचायत के खम्हण गांव में नाबालिग बच्चे 13 वर्ष के कार्तिक उरांव और 11 वर्ष के आशीष उरांव के सहारे श्याम उरांव का परिवार चल रहा है. एक साल पहले श्याम उरांव […]

किस्को/लोहरदगा : पिता के लापता होने के बाद दो नाबालिग बच्चों के सहारे पल रहा है एक परिवार. किस्को प्रखंड क्षेत्र की हिसरी पंचायत के खम्हण गांव में नाबालिग बच्चे 13 वर्ष के कार्तिक उरांव और 11 वर्ष के आशीष उरांव के सहारे श्याम उरांव का परिवार चल रहा है. एक साल पहले श्याम उरांव अपने घर से कमाने की बात कह कर बाहर गये थे.

उस वक्त पारिवारिक तनाव और अभाव के कारण उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी. वह जो बाहर गये फिर लौट कर नहीं आये. श्याम उरांव के बाहर जाने के बाद उनके घर में अन्न के दाने के लाले पड़ गये. परिवार में श्याम उरांव की पत्नी जीरामुनिया उम्र 40 वर्ष, पुत्र 13 वर्ष का कार्तिक उरांव, 11 वर्ष का आशीष उरांव, अंकित उरांव और पुत्री अंजली कुमारी है. जीरामुनिया उरांव किसी तरह अपने बच्चों का भरण-पोषण का प्रयास कर रही थी लेकिन उसकी मेहनत नाकाफी थी.

उसके दो पुत्र कार्तिक उरांव और आशीष उरांव ने उसकी मदद शुरू की. बच्चे जंगल से साइकिल पर लकड़ी लाकर लोहरदगा शहर में बेचते हैं. लकड़ी बेचने से जो पैसा मिलता है उससे उनका परिवार चलता है. लगभग 20 किलोमीटर साइकिल पर लकड़ी लाद कर लाना और बेचना उनकी दिनचर्या बन गयी है. पेट के चक्कर में बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया है. घर का कोई बच्चा स्कूल नहीं जाता है. पढ़ने-लिखने की उम्र में बच्चे घर चला रहे हैं.

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