नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय बुधवार को कांग्रेस और जदएस के 10 बागी विधायकों की एक याचिका पर बृहस्पतिवार को तत्काल सुनवाई करेगा जिसमें इन विधायकों ने कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष पर उनका इस्तीफा जानबूझकर स्वीकार नहीं करने का आरोप लगाया है.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ इस याचिका पर सुनवाई करेगी. याचिका में विधानसभा अध्यक्ष को इन विधायकों का इस्तीफा स्वीकार करने का निर्देश देने की मांग की गयी है. सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने बुधवार की सुबह जब कर्नाटक के राजनीतिक संकट के मुद्दे का उल्लेख किया गया तो बागी विधायकों को आश्वासन दिया गया कि अदालत देखेगी कि उनकी याचिका को बृहस्पतिवार को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जा सकता है या नहीं. पीठ ने बागी विधायकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी की इन दलीलों पर संज्ञान लिया कि ये विधायक पहले ही विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं और अब नये सिरे से चुनाव लड़ना चाहते हैं.
उन्होंने इस याचिका पर बुधवार या बृहस्पतिवार को सुनवाई करने का अनुरोध किया जिसमें आरोप लगाया गया है कि विधानसभा अध्यक्ष ने पक्षपातपूर्ण तरीके से कार्रवाई की है और जानबूझ कर उनके इस्तीफे स्वीकार नहीं किये हैं. इन बागी विधायकों ने अपनी याचिका में विधानसभा अध्यक्ष पर आरोप लगाया गया है कि वह अल्पमत सरकार को बचा रहे हैं. रोहतगी ने जब इस याचिका पर शीघ्र सुनवाई के लिए बहुत अनुरोध किया तो पीठ ने कहा, हम देखेंगे. बागी विधायकों ने याचिका में आरोप लगाया है, सुनियोजित तरीके से कदम उठाते हुए कांग्रेस पार्टी ने इस्तीफा देने वाले विधायकों को अयोग्य घोषित करने का अनुरोध करते हुए अध्यक्ष के समक्ष याचिका दायर की है. यह कहना निरर्थक ही है कि अयोग्यता की कार्यवाही पूरी तरह गैर कानूनी है.
याचिका में कहा गया है कि राज्य विधानसभा का सत्र 12 जुलाई को शुरू होने वाला है और अध्यक्ष ने उसी दिन विधायकों को व्यक्तिगत रूप से उनके समक्ष पेश होने के लिए कहा है, जिससे उन्हें अयोग्य घोषित करने की अध्यक्ष की मंशा का पता चलता है. याचिका के अनुसार, सारा मकसद ही याचिकाकर्ताओं को अयोग्य करार देने तथा अयोग्यता की धमकी के तहत सदन में बहुमत के समर्थन के बगैर ही अल्पमत सरकार को काम करने की अनुमति देना है. यह कहना चाहते हैं कि अध्यक्ष की कार्रवाई मनमानी और अनुचित है तथा संविधान का हनन करती है. बागी विधायकों ने आगे कहा है कि उनके त्यागपत्र संविधान के प्रावधानों और नियमों के अनुसार ही हैं. याचिका के अनुसार, स्पष्ट रूप से आपत्ति की आवश्यकता नहीं है और ऐसा लगता है कि यह कार्यवाही में विलंब करने का प्रयास है, इस तरह सत्तारूढ़ व्यवस्था को इस्तीफा देने वाले विधायकों पर दबाव बनाने का मौका देना है.
विधायकों ने कहा है कि उनके त्यागपत्र स्वेच्छा से दिये गये हैं और सही हैं. यही नहीं, उन्होंने खुद अनेक टेलीविजन साक्षात्कार और बयान देकर अध्यक्ष से बार-बार इस्तीफे को स्वीकार करने का अनुरोध किया है. याचिका में कहा गया है, अल्पमत में आने के बावजूद मुख्यमंत्री सदन का विश्वास मत प्राप्त करने से इनकार कर रहे हैं. अध्यक्ष और सरकार के बीच संगठित प्रयासों का ही नतीजा है कि ऐसी सरकार जिसे सदन का विश्वास हासिल नहीं है, गैरकानूनी तरीके से सत्ता में बनी है. राज्य विधानसभा अध्यक्ष ने मंगलवार को कहा था कि 14 बागी विधायकों में से नौ के इस्तीफे सही प्रारूप में नहीं थे. कांग्रेस ने इस मामले में अध्यक्ष के आर रमेश कुमार से हस्तक्षेप करने और इन विधायकों को अयोग्य करार देने का अनुरोध किया है.
कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि वह उसके सदस्यों को धन का प्रलोभन दे रही है. हालांकि, भाजपा ने इस तरह के आरोपों से इनकार किया है. कर्नाटक विधानसभा के 13 सदस्यों (कांग्रेस के 10 और जदएस के तीन) ने छह जुलाई को सदन की सदस्यता से अपने-अपने त्यागपत्र विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय को सौंपे थे. इसके साथ ही राज्य में कांग्रेस-जदएस गठबंधन सरकार के लिए राजनीतिक संकट पैदा हो गया था. इसी बीच, कांग्रेस के एक अन्य विधायक आर रोशन बेग ने भी मंगलवार को इस्तीफा दे दिया. विधानसभा अध्यक्ष ने बताया है कि इस्तीफा देने वाले 14 विधायकों में एसटी सोमशेखर, मुनिरत्न, बीए बसवराज, प्रताप गौड़ा पाटिल, बीसी पाटिल, रमेश जारकिहोली, ए शिवमरा हब्बर, महेश कुमातल्ली, रामलिंग रेड्डी, आनंद सिंह और बेग (सभी कांग्रेस) और गोपालैया, नारायण गौड़ा, अडगुर एच विश्वनाथ (सभी जदएस) शामिल हैं.
राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन में 116 सदस्य हैं. अध्यक्ष के अलावा इनमें कांग्रेस के 78, जदएस के 37 और बसपा का एक सदस्य शामिल हैं. यदि इन 14 बागी विधायकों का इस्तीफा स्वीकार हो जाता है तो गठबंधन के सदस्यों की संख्या घटकर 102 हो जायेगी. विधानसभा अध्यक्ष भी वोट कर सकते हैं.