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पटना : मौसम के हिसाब से किसानों को मिलेगी खेती की ट्रेनिंग

पहले चरण में राज्य के 10 हजार किसान होंगे प्रशिक्षित, बढ़ेगी अनाज की उत्पादकता पटना : राज्य के दस हजार किसानों को मौसम के अनुरूप खेती की ट्रेनिंग दी जायेगी. जलवायु परिवर्तन के इस दौर के लिए अब राज्य के किसान भी तैयार हो रहे हैं. पहले चरण में राज्य के 10 हजार किसानों को […]

पहले चरण में राज्य के 10 हजार किसान होंगे प्रशिक्षित, बढ़ेगी अनाज की उत्पादकता

पटना : राज्य के दस हजार किसानों को मौसम के अनुरूप खेती की ट्रेनिंग दी जायेगी. जलवायु परिवर्तन के इस दौर के लिए अब राज्य के किसान भी तैयार हो रहे हैं.

पहले चरण में राज्य के 10 हजार किसानों को प्रशिक्षित किया जायेगा. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर अभी राज्य के आठ जिलों के 100 गांवों में इसकी शुरुआत होगी. चयनित गांवों को क्लाइमेंट स्मार्ट गांव नाम दिया गया है. सरकार इस योजना पर अभी 23 करोड़ से अधिक खर्च कर रही है. प्रयोग सफल रहा तो पूरे राज्य में लागू होगा.

अभी तीन साल के लिए चलेगी यह योजना

योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्य में चार कॉरिडोर बनाया गया है. ये कॉरिडोर हैं भागलपुर-मुंगेर हाइवे, पूर्णिया-कटिहा हाइवे, दरभंगा-समस्तीपुर हाइवे और पटना-नालंदा हाइवे. कॉरिडोर में आने वाले आठ जिले पटना, नालंदा, मुंगेर, भागलपुर, कटिहार, पूर्णिया, दरभंगा व समस्तीपुर जिले के 100 गांवों का चयन हुआ है.

सभी गांव से सौ-सौ किसानों को प्रशिक्षण दिया जायेगा. अभी इन गांवों के किसानों को बताया जायेगा कि धान, गेहूं, मक्का, अरहर, मसूर आदि की खेती मौसम के अनुरूप कैसे करना है. प्रशिक्षण के दौरान किसानों को बताया जायेगा कि मौसम के अनुरूप खेती करके उत्पादन व उत्पादकता को कैसे बढ़ाया जाये. इन जिलों में किसानों का समूह निर्माण होगा. अभी तीन साल के लिए यह योजना चलेगी.

चार एजेंसियां योजना को देंगी मूर्तरूुप

इस योजना को मूर्तरूप देने के लिए चार एजेंसियां का चयन हुआ. बीसा–सिमिट, डा. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, बिहार कृषि विश्वविद्यालय तथा आईसीएआर किसानों को प्रशिक्षित करेगा. राज्य में हर साल बाढ़, सुखाड़, तूफान, ओलावृष्टि, से फसल को काफी नुकसान होता है. इन सब से उत्पादन प्रभावित होता है. उत्तरी बिहार 74 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ग्रस्त है, जबकि दक्षिणी बिहार सूखे से प्रभावित होता है. कृषि मंत्री डाॅ प्रेम कुमार ने बताया कि अभी जलवायु परिवर्तन के अनुकूल खेती करना आवश्यक हो गया है.

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