13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

वैश्विक नवोन्मेष और भारत

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया delhi@prabhatkhabar.in कुछ सप्ताह पहले, भारत में स्मार्टफोन उद्योग के संबंध में रिपोर्टें प्रकाशित हुई थीं, जो बड़ी वार्षिक वृद्धि एवं विशाल उपभोग परिमाण के आधार पर उपभोक्ता-अर्थव्यवस्था के अहम क्षेत्रों में एक है. भारत के स्मार्टफोन बाजार का नेतृत्व एक चीनी कंपनी जिओमी कर रही है, जिसका इस […]

आकार पटेल

कार्यकारी निदेशक,

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया

delhi@prabhatkhabar.in

कुछ सप्ताह पहले, भारत में स्मार्टफोन उद्योग के संबंध में रिपोर्टें प्रकाशित हुई थीं, जो बड़ी वार्षिक वृद्धि एवं विशाल उपभोग परिमाण के आधार पर उपभोक्ता-अर्थव्यवस्था के अहम क्षेत्रों में एक है. भारत के स्मार्टफोन बाजार का नेतृत्व एक चीनी कंपनी जिओमी कर रही है, जिसका इस बाजार के 30 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा है.

अपनी 22 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ दक्षिण कोरियाई कंपनी सैमसंग दूसरे पायदान पर है. तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर भी क्रमशः विवो, ओप्पो तथा रियलमी जैसी चीनी कंपनियां ही काबिज हैं. भारतीय बाजार में किसी भी देसी कंपनी की कोई दमदार मौजूदगी नहीं है.

फाउंडिंग फ्यूल नामक एक वेबसाइट पर इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति की मैंने एक उक्ति पढ़ी- ‘पिछले साठ वर्षों में भारत से ऐसा एक भी आविष्कार नहीं निकल सका है, जो पूरे विश्व में जाना-माना हो जाये; यहां एक भी ऐसा विचार पैदा नहीं हो सका, जो वैश्विक आबादी को आनंदित करनेवाला कोई भूचालकारी ईजाद कर सके.’

नारायण मूर्ति के इस कथन के संदर्भ में हमें दो चीजों पर विचार करना चाहिए: पहली, क्या यह सच है? मैं फौरी तौर पर तो किसी भूचालकारी आविष्कार को याद नहीं कर सका, पर यदि भारत की किसी कंपनी ने ऐसा कोई आविष्कार किया हो, तो निश्चित तौर पर उसने उस कंपनी को बड़ा बना दिया होगा.

इसलिए, मैंने वर्ष 2018 में भारत की 10 सबसे बड़ी कंपनियों की सूची पर गौर किया, तो पाया कि उनके नाम क्रमशः इस तरह हैं: इंडियन ऑयल काॅरपोरेशन, रिलायंस इंडस्ट्रीज, ओएनजीसी, एसबीआई, टाटा मोटर्स, भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, राजेश एक्सपोर्ट्स, टाटा स्टील एवं कोल इंडिया. इनमें सिर्फ दो टाटा मोटर्स (ऑटोमोबाइल) एवं राजेश एक्सपोर्ट्स (आभूषण) ही हैं, जो उपभोक्ता उत्पादों से संबद्ध हैं और इनकी सूची में मुझे कोई विश्वव्यापी उत्पाद नहीं मिला. निष्कर्ष यह कि मूर्ति की बात सच है.

हमें विचार करना चाहिए कि ऐसी स्थिति क्यों है. हम सहज ही ऐसे बिंदुओं पर पहुंच जा सकते हैं, जो अटकल और सिद्धांत पर आधारित हों. फिर भी, हमें कोशिश तो करनी ही चाहिए. उसी इंटरव्यू में मूर्ति ने आगे कहा, ‘हमारे युवा पाश्चात्य विश्वविद्यालयों में अपने समकालीनों से मेधा एवं ऊर्जा में बराबरी करते हुए भी अधिक प्रभावकारी शोध नहीं कर सके हैं.’

उनका कहना है कि मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी)- जिसके आधार पर नेहरू ने भारत में आइआइटी संस्थानों की परिकल्पना की थी, ने माइक्रोचिप एवं ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम्स (जीपीएस) की इजाद की थी. इसके मुकाबले हमारे आइआइटी संस्थानों ने क्या किया? तथ्य तो यह है कि इन संस्थानों के पास दिखाने के लिए कुछ नहीं है.

ऐसे कुछ अन्य तथ्य बताते हैं कि आविष्कार और नवोन्मेष के लिहाज से बाकी दुनिया की तुलना में हम कहां हैं. पिछले वर्ष चीन ने 20 ऐसे शीर्ष देशों की सूची में प्रवेश पा लिया, जो विश्व की सर्वाधिक नवोन्मेषी अर्थव्यवस्थाएं हैं.

विश्व नवोन्मेष सूचकांक पर 10 शीर्ष राष्ट्र हैं: स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड्स, स्वीडन, यूनाइटेड किंगडम, सिंगापुर, अमेरिका, फिनलैंड, डेनमार्क, जर्मनी तथा आयरलैंड. इस सूची में चीन की 17वीं स्थिति ‘एक ऐसी अर्थव्यवस्था के लिए अहम उपलब्धि है, जो शोध तथा विकास-सघन मौलिकता की प्राथमिकता पर केंद्रित सरकारी नीतियों से निर्देशित तीव्र परिवर्तनों के दौर से गुजर रही है.’

आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आविर्भाव के साथ हम विश्व इतिहास के सबसे बड़े संक्रमण काल से गुजर रहे हैं. दुनियाभर में सबसे अचरजभरी चीजें विकसित हो रही हैं, जिनमें स्वचालित कारें तथा औषधियों एवं जेनेटिक्स के क्षेत्र में उपलब्धियां शामिल हैं. हमारे देश के लिए क्या यह चिंताजनक नहीं कि हमारे पास इसमें योगदान करने को कुछ भी नहीं है?

इस वैश्विक नवोन्मेष सूचकांक पर भारत अभी 57वें पायदान पर है. ये तथ्य कुछ दूसरी ओर इंगित करते हैं और यही वजह है कि मूर्ति की उक्ति को गंभीरता से लेने की जरूरत है.

यदि भारतीय युवा पाश्चात्य विश्वविद्यालयों के अपने समकालीनों जितनी ही बुद्धिमत्ता रखते हैं और उनके पास अवसर हैं, तो आखिर क्या वजह है कि हम वैसी ईजादें नहीं कर सकते, जिन्हें वैश्विक पहचान मिले? क्यों इस प्रश्न पर कोई शोध नहीं हो सका है? आप कोई भी ऐसा अध्ययन नहीं पा सकते, जिसने इस मुद्दे की खोज-खबर ली हो, जबकि यह एक जाहिर-सी वजह दिखती है.

मुझे ऐसा नहीं लगता कि यह सरकार द्वारा गौर किये जाने का कोई मुद्दा हो अथवा यह हाल-फिलहाल या सुदूर पूर्व काल में सरकार की किसी विफलता से उपजा परिणाम है.

इसका संबंध हमारे समाज और हमारे उन मूल्यों से है, जिन्हें हम पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करते रहते हैं. यह देखते हुए कि हमारे चहुंओर का संसार कितनी तेजी से परिवर्तित हो रहा है, यह एक ऐसी चीज है, हम जिसकी और अधिक दिनों तक उपेक्षा नहीं कर सकते, क्योंकि हम इस प्रक्रिया में बगैर किसी योगदान के ही, और इसके नतीजतन, बगैर कोई हस्तक्षेप किये बदलने को बाध्य हो रहे हैं.

इस स्थिति में सुधार लाने के अपने प्रयासों में हमारा पहला कदम स्वयं के साथ ईमानदार होना है. किसी समस्या के समाधान के बारे में तभी कुछ सोचा जा सकता है, जब हम उस समस्या को स्वीकार करें.

(अनुवाद: विजय नंदन)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें