"हमें तो 57 साल हो गए यहां रहते हुए. ऐसा तो कुछ नहीं है कि किसी के डर के मारे कोई चला गया हो. सामने वाला मकान देखो. इनके पांच लड़के हैं, सभी बाहर चले गए. अब बुड्ढे-बुढ़िया रह गए तो क्या करेंगे? मकान तो बेचेंगे ही, मकान छोड़ कर थोड़े ही चले जाएंगे."
ये बात अस्सी साल के देशराज ने कही, जो प्रह्लाद नगर के भीतरी मोहल्ले की एक गली में अपनी छोटी-सी किराने की दुकान चलाते हैं.
उन्हें इस बात से बेहद तक़लीफ़ भी थी कि पिछले कुछ दिनों से कई बार मीडिया वाले यही सब उनसे पूछ रहे हैं.
पलट कर वो पूछते हैं, ‘पता लगाओ, ये सब कर कौन रहा है?’
जिस सामने वाले घर की ओर वो इशारा कर रहे थे, वो बंद पड़ा था और उसके मालिक भी अपना मकान बेचने की कोशिश में लगे हैं.
देशराज बताने लगे लगे, "हमारे चारों ओर मुसलमानों की आबादी है, मुख्य सड़क के दूसरी ओर हिन्दुओं की आबादी है. मेरे देखते देखते क़रीब दस बार दंगे भी हुए, कर्फ्यू भी लगा लेकिन हमें किसी ने न कभी मारा-पीटा और न धमकाया. हमने भी कभी अपने पड़ोसियों के साथ ऐसा नहीं किया. अब अचानक पता नहीं लोग क्यों डरने लगे और दूसरे लोग डराने लगे."
देशराज के पास ही उनकी पत्नी भी खड़ी थीं. बोलीं, "यहीं शादी हुई, बच्चे हुए, पोते-पोती हो गए. कुछ यहीं रह रहे हैं कुछ कमाने-खाने के मक़सद से बाहर भी रह रहे हैं लेकिन ये सब जो सुन रहे हैं हम, पहले कभी नहीं सुना था."
योगी का खंडन
प्रह्लाद नगर, मेरठ शहर के बीचोंबीच स्थित वही मोहल्ला है जो पिछले क़रीब एक हफ़्ते से हिंदुओं के कथित ‘पलायन’ को लेकर चर्चा में है. इस पलायन के पीछे वजह ये बताई जा रही है कि ऐसा मुसलमानों के ख़ौफ़ की वजह से हो रहा है क्योंकि इलाक़े में मुस्लिम आबादी काफ़ी बढ़ गई है.
पिछले हफ़्ते अचानक स्थानीय नेताओं से लेकर सोशल मीडिया पर ये बहस चल पड़ी कि यहां के स्थानीय और पुश्तैनी हिन्दू लोग छेड़खानी, गुंडागर्दी, चोरी, छिनैती जैसी अराजक परिस्थितियों के कारण अपने घर बेचकर जा रहे हैं.
तमाम मकानों के बाहर ‘मकान बिकाऊ है’ जैसे इश्तिहारों की तस्वीरें मीडिया और सोशल मीडिया पर तैरने लगीं, हिन्दू संगठनों और बीजेपी के कई नेता भी इस मामले में चिंता जताते हुए बयान देने लगे और देखते ही देखते लोगों को ‘कैराना के पलायन’ वाला मुद्दा याद आने लगा.
मामले की शिकायत ‘नमो ऐप’ के ज़रिए प्रधानमंत्री कार्यालय तक भी की गई.
इसी बीच, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब सहारनपुर पहुंचे तो उनसे भी इस कथित पलायन के बारे में सवाल पूछा गया. मुख्यमंत्री का जवाब था, "कोई पलायन नहीं है. हमारे रहते भला कौन हिन्दू पलायन कर सकता है."
दिलचस्प बात ये है कि योगी आदित्यनाथ के इस बयान के बाद ‘पलायन’ शब्द जैसे यहां की फ़िजां से ग़ायब हो गया. लोग अराजकता, छेड़खानी, ट्रैफ़िक समस्या, मकान बेचने जैसी तमाम बातें अब भी कर रहे हैं लेकिन यह कहने को कोई तैयार नहीं है कि यहां से कोई ‘पलायन’ हुआ है.
वो लोग भी नहीं जिन्होंने इस मुद्दे को कुछ दिन पहले ही ज़ोर-शोर से उठाया था. यहां तक कि ‘मकान बिकाऊ है’ की इबारत भी कई जगह मिटा दी गई है, हालांकि तमाम पुराने मकानों पर और उनके दरवाजों पर ‘बिकाऊ’ वाली तख़्ती लटकी हुई है.
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मिली-जुली आबादी
प्रह्लाद नगर के ही रहने वाले और सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय एक व्यक्ति नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, "देखिए साहब, हिन्दुओं ने मकान बेचे हैं, मुसलमानों ने ख़रीदे हैं, इसमें कोई शक़ नहीं है. इसी वजह से पूरा प्रह्लाद नगर हिन्दू बस्ती की जगह मुस्लिम बस्ती बनने की ओर है. हर व्यक्ति ये बात आपको बताएगा लेकिन कैमरे पर या रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं."
दरअसल, प्रह्लाद नगर को बँटवारे के बाद एक शरणार्थी कॉलोनी के रूप में बसाया गया था जहां पाकिस्तान से आए हिन्दू परिवारों को रहने के लिए जगह दी गई थी.
इसके पीछे पहले से ही मुस्लिम बहुल मोहल्ला इस्लामाबाद बसा हुआ था. इस्लामाबाद से प्रह्लाद नगर में प्रवेश के लिए जो सड़क है, वो बहुत चौड़ी नहीं है जबकि सड़क के किनारे की गलियां तो बेहद तंग हैं. इस वजह से आए दिन ट्रैफ़िक और जाम की समस्या से यहां के लोग दो-चार होते हैं.
प्रह्लाद नगर तीन ओर से मुस्लिम आबादी से घिरा हुआ है और यहां की आबादी भी मिश्रित है. तमाम दावों से इतर पिछले कुछ सालों में यहां कई मकान बेचे गए हैं, लेकिन इसकी वजह कुछ और भी हैं.
स्थानीय निवासी दिनेश कुमार कहते हैं, "लोगों ने अपनी सहूलियत से मकान बेचे हैं. परिवार बड़े हो गए और ये इलाक़ा सँकरा है ही. बाहर जाकर नई कॉलोनियों में लोगों ने ज़मीन ख़रीदी और मकान बनवाए. मुसलमानों को बेचने के पीछे सिर्फ़ ये वजह है कि उन्होंने ज़्यादा पैसे दिए. हिन्दुओं ने ज़्यादा पैसे दिए होते तो मकान उन्हीं को बेचा जाता."
छेड़छाड़ और अराजकता की बात से दिनेश कुमार भी मना नहीं करते हैं लेकिन उनका कहना है, "ऐसा मुसलमान लड़के ही करते हैं, ये कहना ठीक नहीं है. हां, स्टंट करने वाले और ग़लत हरकतें करने वाले तमाम लड़के इस्लामाबाद की ओर से ही आते हैं."
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विश्वास बहाली की कोशिशें
ख़ैर, इस विवाद को तो तत्कालिक रूप से हल करने के लिए प्रशासन ने प्रह्लाद नगर से इस्लामाबाद जाने वाली सड़क के दोनों और बैरिकेडिंग कर दी है और पुलिस पिकेट लगा दी है. स्थानीय लोग इन दोनों ही जगहों पर गेट लगवाने की बात कर रहे हैं.
हालांकि क़ानून-व्यवस्था के सवाल पर मेरठ ज़ोन के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक प्रशांत कुमार कहते हैं, "क़ानून-व्यवस्था की जो दिक़्क़तें थीं, उन्हें दूर कर लिया गया है. कैमरे भी लगवाए जा रहे हैं, पुलिस की गश्त बढ़ा दी गई है. लोगों में विश्वास बहाली के लिए अमन कमेटी की बैठकें भी हो रही हैं."
इस्लामाबाद के कुछ मुस्लिम लोग इन ख़बरों से बेहद आहत हैं.
साठ साल के अब्दुल सलाम कहते हैं, "गेट क्यों, हम तो कह रहे हैं कि दीवार ही खड़ी कर दो. जब रिश्तों में ही दीवारें खड़ी की जा रही हैं तो ज़मीन पर भी खड़ी कर दो. बचपन से हम लोग यहां रह रहे हैं. हिन्दुओं-मुसलमानों की तीसरी पीढ़ी है, सब साथ रहे हैं, कभी कोई आपसी विवाद हुआ हो तो बताइए. इसे आप पुलिस थाने में जाकर पता कर सकते हैं. कोई बताए कि मुसलमानों के डर से किसी ने घर बेचा हो. सिर्फ़ राजनीति कर रहे हैं कुछ लोग और कुछ नहीं."
ज़रूरत से गए लोग
वहीं मौजूद रियाज़ कहते हैं, "मकान मुसलमानों ने भी बेचे हैं और हिन्दुओं ने भी बेचे हैं. ख़रीददार भी दोनों हैं. जिसे ज़रूरत थी, बेच दिया. हमारे सामने वाले भी अपना घर बेच रहे हैं, उन्हें अभी ख़रीददार नहीं मिला है. पिछले साल उन्होंने अपनी ओर से रोज़ा इफ़्तार किया था और मोहल्ले के सारे मुसलमानों को बुलाया था. हम लोग गए भी थे. अब ऐसा तो है नहीं कि वो हमारे डर से मकान बेच रहे हैं."
हार्डवेयर की दुकान चलाने वाले दीपक सिरोही का घर भी प्रह्लाद नगर में था. उन लोगों ने भी अपना मकान कुछ साल पहले बेच दिया और मेरठ के ही एक पॉश इलाक़े में नया मकान बनवाया.
दीपक सिरोही बताते हैं, "परिवार बड़ा होता गया, मकान छोटा पड़ने लगा. लेकिन ये भी सही बात है कि पिछले कुछ दिनों से यहां अराजकता भी बढ़ रही है. पुलिस केस वगैरह इसलिए नहीं होते कि अराजकता फैलाने वालों को तो कोई पकड़ नहीं पाता और मोहल्ले के लोगों के बीच ऐसी कोई बड़ी घटना कभी हुई नहीं. छोटी-मोटी घटनाएं आपस में सुलझ ही जाती हैं."
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके और कई बार इस इलाक़े के विधायक रहे लक्ष्मीकांत वाजपेयी भी इस मुद्दे पर बेहद ख़फ़ा हैं.
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बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा,"पलायन मुद्दा नहीं है. हां, दिक़्क़तें थीं ज़रूर लेकिन धीरे-धीरे किसी ने अब इसे हवा दी है. ये सिर्फ़ और सिर्फ़ क़ानून-व्यवस्था का मामला है, स्थानीय अधिकारियों की अकर्मण्यता है और कुछ नहीं."
प्रह्लाद नगर, इस्लामाबाद की तमाम गलियों में घूमने और लोगों से बातचीत में एक और बात सामने आई. कुछ लोग इसे ‘लैंड जेहाद’ का नाम दे रहे हैं.
मेरठ के पटेल नगर इलाक़े में रहने वाले अशोक जॉली कहते हैं, "हिन्दुओं के मोहल्लों में कब्ज़ा करने के पीछे लंबे समय से एक सोची समझी साज़िश रची जा रही है. पहले कोई एक मुसलमान महंगे दाम पर ज़मीन ख़रीदेगा. फिर हिन्दू वहां से पलायन शुरू कर देते हैं. धीरे धीरे उन मकानों को मुस्लिम खरीदने लगते हैं."
प्रह्लाद नगर में हिन्दू समुदाय के लोगों ने एक समिति भी बनाई थी जो हिन्दुओं के मकान ख़रीदती थी. लेकिन स्थानीय लोगों के मुताबिक, धीरे-धीरे यह समिति ही भ्रष्टाचार का ज़रिया बन गई.
यहीं के एक नागरिक ने बताया, "समाज के नाम पर हिन्दुओं की ज़मीनें तो ख़रीद लीं और बाद में ख़ुद ही महंगे दामों पर मुसलमानों को बेच दिया."
इस समिति के बारे में जानने की कोशिश की गई लेकिन समिति के सदस्य और अधिकारी बातचीत को तैयार नहीं हुए.
बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी का दावा है कि ‘मेरठ के क़रीब चालीस मोहल्ले देखते ही देखते हिन्दू आबादी से मुस्लिम आबादी में बदल गए.’
मेरठ के शास्त्रीनगर के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुनील तनेजा कहते हैं, "पटेलनगर, रामनगर, स्टेट बैंक कॉलोनी, ईश्वरपुरी, हरिनगर, विकासपुरी जैसे दर्जनों मोहल्ले ऐसे हैं जहां हिन्दुओं के मकान अब गिनती में ही बचे हैं. जबकि ये सब पहले हिन्दू मोहल्ले हुआ करते थे. बनियापाड़ा और मोरीपाड़ा जैसे इलाक़ों में पहले दोनों समुदाय के लोग आधे-आधे थे. यहां तक कि शास्त्रीनगर जैसे पॉश इलाक़े के कई सेक्टर भी इस प्रक्रिया का हिस्सा बन चुके हैं."
इन इलाक़ों में मौजूद कुछ मंदिर ऐसे हैं जो इनका इतिहास बताते हैं. गुदड़ी बाज़ार में चारों ओर मुस्लिम आबादी के बीच एक बेहद पुराना मंदिर है जिसके परिसर में ही पुलिस चौकी भी है.
कभी अप्रिय घटना नहीं घटी
सावन में काँवड़िए भी आते हैं लेकिन स्थानीय लोगों के मुताबिक़ कभी कोई अप्रिय घटना नहीं घटी. पुलिस चौकी में मौजूद पुलिसकर्मी भी इस बात की पुष्टि करते हैं.
स्टेट बैंक कॉलोनी में अपना मकान बेचकर शास्त्रीनगर में रहने वाले सत्यप्रकाश कहते हैं, "हमने मकान बहुत बाद में बेचा है लेकिन हम वहां से शिफ़्ट 1996 में ही कर गए थे. हमारे इलाक़े में पहले कुछेक मुसलमानों ने मकान ख़रीदा. हालांकि उनकी वजह से कोई दिक़्क़त नहीं हुई लेकिन उसके बाद हिन्दुओं ने मकान बेचना शुरू कर दिया और अब दो-चार ही हिन्दू परिवार बचे हैं."
मेरठ में वकील एनके छाबड़ा कहते हैं, "पलायन नहीं तो और क्या है? आप रिकॉर्ड उठाकर देख लीजिए. जो लोग भी मकान बेचकर गए हैं, सारे के सारे मेरठ के ही दूसरे मोहल्लों में रह रहे हैं. यदि रोज़ी-रोज़गार के चक्कर में जाते तो मेरठ से बाहर जाते हैं."
पटेलनगर में अशोक जॉली के मकान के सामने ही इफ़्फ़त शफ़ीफ़ रहती हैं. क़रीब दस साल पहले ये मकान उन्होंने किसी चोपड़ा साहब से ख़रीदा था.
एक कॉलेज में प्रिंसिपल के पद से रिटायर शफ़ीफ़ अपने पुश्तैनी घर को इसलिए छोड़कर आईं कि ये इलाक़ा खुला था, चौड़ी सड़कें थीं, साफ़-सफ़ाई अपेक्षाकृत ज़्यादा थी और कुल मिलाकर सुकून था.
आख़िर अच्छे रिश्तों के बावजूद लोग साथ क्यों नहीं रहना चाहते, शफ़ीक़ कहती हैं, "दोनों का रहन-सहन अलग है. मुसलमानों की कुछ आदतें उन्हें नहीं अच्छी लगती हैं और तो कोई कारण नज़र नहीं आ रहा है."
यहीं रहने वाली हसीना बेगम कहती हैं, "मोहल्ले की सैकड़ों दुल्हनें हमारे सामने आई हैं. सालों से एक-दूसरे के साथ हैं, न हमें कभी दिक़्क़त हुई न उन्हें कभी हुई. आज भी हमें या उन्हें कोई परेशानी नहीं है. बस कुछ बाहरी लोग ये सब कर रहे हैं."
पटेल नगर के रहने वाले असलम फल का व्यापार करते हैं. वो कहते हैं, "हम नहीं कह रहे हैं कि ऐसा नहीं हुआ होगा लेकिन ये भी सही है कि ये सब मोहल्ले के लोग कभी नहीं करेंगे. अब बाहरी कोई आकर माहौल ख़राब करने की कोशिश करे तो उसे सबको समझना चाहिए।"
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