- फिल्म : मलाल
- निर्माता : संजय लीला भंसाली
- निर्देशक : मंगेश हदावले
- कलाकार : मिजान जाफरी, शर्मिन सहगल, समीर धर्माधिकारी, अंकुश और अन्य
- रेटिंग : ढाई
उर्मिला कोरी
स्टारकिड्स की भीड़ में इस शुक्रवार फिल्म ‘मलाल’ से दो और चेहरे शुमार हो गए हैं. नामचीन निर्देशक और निर्माता संजय लीला भंसाली ने अपनी भांजी शर्मिन सहगल और अभिनेता जावेद जाफरी के बेटे मिजान जाफरी को इस फिल्म से लांच किया है.
नवोदित कलाकारों को लांच करने के लिए रोमांटिक जॉनर से अच्छा कौन सा जॉनर हो सकता हैभला! ‘मलाल’ भी रोमांटिक है. लेकिन पॉलिटिकल ड्रामा इसका विलेन है. मतलब भंसाली निर्मित यह फिल्म मराठी बनाम गैर मराठियों के मुद्दे को उठाती है. मुंबई में गैर मराठियों के साथ होने वाली हिंसा और परेशानी दोनों दिखाती है.
90 के दशक पर आधारित फिल्म की कहानी मराठी लड़के शिवा (मिजान) की है, जो एक चॉल में रहता है. उसकी आवारागर्दी से सभी परेशान है और शिवा को गैर मराठियों के परेशानी है खासकर यूपी-बिहार के लोग. इसी बीच चाॅल में आस्था त्रिपाठी (शर्मिन) अपने परिवार के साथ शिफ्ट होती है. शुरुआत में मराठी गैर मराठी मुद्दे पर दोनों की तकरार होती है मगर जल्द ही ये तकरार प्यार में बदल जाती है. क्या ये प्यार बरकरार रह पाएगा? क्या वह अपनी मंजिल पायेगा? ये आगे की फिल्म की कहानी है.
फिल्म की कहानी घिसी-पिटी है. अब क्या होगा, ये दृश्य आने से पहले ही समझ आ जाता है. फर्स्ट हाफ फिर भी थोड़ी-बहुत उम्मीद जगाता है, लेकिन सेकंड हाफ में फिल्म रबर की तरह खिंच गयी है. एडिटिंग पर काम करने की जरूरत थी. फिल्म का अंत भी दिल को छू नहीं पाता है. फिल्म का स्क्रीनप्ले कमजोर है. कहानी के ट्रीटमेंट की बात करें फिल्म के निर्माता भले ही संजय लीला भंसाली है, लेकिन परदे पर भव्यता नहीं है. मुंबई की चॉल और वहां रहने वाले लोगों की जिंदगी की हलचल और रंग परदे पर बखूबी नजर आती है लेकिन एक हकीकत ये भी है कि परदे पर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता है, जो हमने अब तक फिल्मों में नहीं देखा है. मुम्बई का यह परिचित रंग अब तक कई फिल्मों में नजर आ चुका है.
अभिनय पर आते हैं. मिजान मुम्बई के टपोरी की भूमिका में जंचते हैं. अपने किरदार का लुक हो या अंदाज उनकी मेहनत दिखती है. अभिनेत्री के तौर पर शर्मिन चूकती हैं खासकर इमोशनल दृश्यों में उन्हें खुद पर और काम करने की जरूरत है. इमोशनल दृश्यों में उनके चेहरे की मुस्कुराहट अखरती है. बाकी के कलाकारों का काम ठीक-ठाक है. फिल्म का गीत-संगीत औसत है. फिल्म में जरूरत से ज्यादा गाने डाले गये हैं. फिल्म के दूसरे पक्ष ठीक ठाक हैं.