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भारत को मिला नाटो जैसा दर्जा

अमित सिंह प्राध्यापक, दिल्ली विवि delhi@prabhatkhabar.in अमेरिकी सीनेट में एक विधेयक पारित हुआ है, जिसके कानून बनते ही भारत को अमेरिका के नाटो सहयोगियों जैसा दर्जा हासिल हो जायेगा. भारत के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है और इसके कई सारे मायने निकलते हैं. यह भारत और अमेरिका के संबंधों को एक नयी ऊंचाई पर ले […]

अमित सिंह
प्राध्यापक, दिल्ली विवि
delhi@prabhatkhabar.in
अमेरिकी सीनेट में एक विधेयक पारित हुआ है, जिसके कानून बनते ही भारत को अमेरिका के नाटो सहयोगियों जैसा दर्जा हासिल हो जायेगा. भारत के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है और इसके कई सारे मायने निकलते हैं.
यह भारत और अमेरिका के संबंधों को एक नयी ऊंचाई पर ले जायेगा. जब केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी, तब हमने इंडो-यूएस न्यूक्लियर डील को देखा और उसके बाद तक अमेरिका यह मानता रहा है कि भारत को दरकिनार करके उसकी इंडो-पैसेफिक (हिंद महासागर) नीति सफल नहीं हो सकती. अमेरिका पिछले कई सालों से अपने राष्ट्रीय हित के मद्देनजर भारत और जापान का साथ देता आया है, क्योंकि चीन को लेकर अमेरिका के पास कई सारे मुद्दे-मसले हैं.
बराक ओबामा भी मानते थे कि उनकी रिबैलेंसिंग एिशया स्ट्रेटजी पॉलिसी में भारत एक मुख्य भूमिका निभा सकता है. इस तरह देखा जाये, तो अमेरिका लगातार भारत को महत्वपूर्ण मानता आया है. अब नाटो जैसा दर्जा देने का विधेयक पास करना उसी की अगली कड़ी है.
चीन ने पिछले कुछ सालों में पूरी दुनिया में जो ताकत दिखायी है और अमेरिका के एकाधिकार के लिए खतरा बना है, उसके मद्देनजर अमेरिका को शक्तिशाली देशों का सहयोग जरूरी है. इसलिए ओबामा प्रशासन से लेकर अब ट्रंप प्रशासन तक, भारत के साथ अमेरिका खड़ा नजर आता है.
चीन चाहता है कि एक यूनीपोलर (एकध्रुवीय) एशिया बनाये, लेकिन मल्टीपोलर (बहुध्रुवीय) या बाइपोलर (द्विध्रुवीय) दुनिया के लिए काम करे. वहीं अमेरिका चाहता है कि एशिया मल्टीपोलर हो, लेकिन दुनिया यूनीपोलर ही रहे. यानी विश्व एकध्रुवीय रहे, ताकि अमेरिकी की धाक बरकरार रहे.
बीते पांच-छह सालों में भारत की दशा और दिशा बिल्कुल बदल चुकी है, क्योंकि भारत में प्रधानंमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक स्थायी सरकार है. ट्रंप ने जिस तरह से चीन को लेकर अलग रुख अख्तियार किया है, उससे लगता है कि अमेरिका कहीं न कहीं चीन पर दबाव बनाना चाहता है, सिर्फ आर्थिक आधार पर ही नहीं, बल्कि सामरिक तौर पर भी, ताकि अमेरिका के सामने चीन झुक जाये.
इस वक्त अमेरिका बहुत सारी आर्थिक और सामरिक चीजों को अंजाम दे रहा है. पिछले पांच-छह सालों में भारत और अमेरिका के बीच संबंध बेहतर बने हैं, कई सामरिक संधियों पर हस्ताक्षर हुए हैं. अमेरिका से कई टेक्नोलॉजी और हथियार भारत को मिल रहे हैं और आतंकवाद के खिलाफ हमने अपना स्टैंड पूरी दुनिया को स्पष्ट बता दिया है.
अब जिस तरह से अमेरिकी सीनेट ने भारत को नाटो सहयोगी का दर्जा दिया है, वह भारत के सामरिक शक्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और इससे भारत अपनी सामरिक शक्ति में इस्राइल और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के समान हो जायेगा. इस विधेयक के कानून बनने के बाद भारत को कई तरह के फायदे होंगे. सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि अमेरिका की हथियार तकनीकों को भारत आसानी से ले पायेगा. उसके बाद काउंटर टेररिज्म की गतिविधियों का हम और भी अच्छे तरीके से जवाब देने के काबिल हो जायेंगे. भारत का आत्मविश्वास इससे बढ़ेगा और पाकिस्तान का आत्मविश्वास कमजोर होगा.
चीन की नीति हमेशा भारत के खिलाफ गतिविधियां करते रहने की रही है, जिससे भारत चिंतित भी रहा है, जैसे डोकलाम आिद के मसले में. भारत ने भी चीन का जवाब देने के लिए कई कदम उठाये हैं.
लेकिन, अब जब भारत नाटो सहयोगी हो जायेगा, तब मेरीटाइम (सामुद्रिक) सुरक्षा क्षेत्र में भी दखल पा जायेगा और चीन की गलत नीतियों के खिलाफ लड़ पायेगा. इस विधेयक के पास होने से अमेरिका और भारत के बीच के नीतिगत गठजोड़ का संदेश भारत के सभी पड़ोसी देशों को तो जायेगा ही, सबसे बड़ा संदेश पाकिस्तान को जायेगा. उसके बाद फिर चीन को भी संदेश जायेगा कि भारत-अमेरिका साथ हैं.
अमेरिका पिछले कई सालों से पाकिस्तान का समर्थन करता आ रहा था, लेकिन अब वही अमेरिका पाकिस्तान को लगाम लगाता नजर आ रहा है और भारत का साथ देता भी नजर आ रहा है. पाकिस्तान पिछले कई सालों से नाटो देशों से फायदा उठाता आया है, क्योंकि तब अमेरिका उसे पसंद करता था. लेकिन, अब अमेरिका पूरे विश्व की राजनीति को मद्देनजर रखते हुए अपने राष्ट्रीय हित साध रहा है, इसलिए उसने भारत को यह दर्जा दिया है.
भारत के पास अब यही मौका है कि वह किसी भी तरह से इस नाटो के दर्जे का भरपूर फायदा उठाये और रक्षा-सुरक्षा के क्षेत्र में अपनी सामरिक शक्तियों को बढ़ाये. भारत ऐसा करता है, तो इससे पाकिस्तान को समझ में आ जायेगा कि अब उसके लिए भारत से लड़ना आसान नहीं होगा.
चीन अपनी दादागिरी एशिया पैसेफिक में दिखाता रहा है. भारत को नाटो सहयोगियों के बराबर दर्जा मिलने के बाद चीन की इस दादागिरी को साफ संदेश जायेगा कि अब भारत बहुत बड़ी शक्ति बन गया है, जिससे उलझना ठीक नहीं होगा.
नाटो सहयोगी बनकर भारत अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखेगा और इंडो-पैसेफिक के सारे मसलों को हल करेगा. यहां एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि अमेरिका से भारत को नाटो सहयोगी का दर्जा तो मिल रहा है, लेकिन रूस से भी भारत को अच्छा और संतुलित संबंध बनाये रखना पड़ेगा.

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