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भारत पड़ोसियों को भी सिखायेगा बाढ़ के पानी का संरक्षण, पाकिस्तान नहीं हुआ योजना में शामिल

नयी दिल्ली: भारत बाढ़ के पानी को नदियों और अन्य जलाशयों तक पहुंचाने के लिये ‘वर्षा जल प्रबंधन’ से जुड़ी तकनीक के अपने यहां सफल प्रयोग के बाद अब पड़ोसी देश श्रीलंका, भूटान, बांग्लादेश और नेपाल की भी इसमें मदद करेगा. जुलाई से पांचों देशों में यह तकनीक स्थाई रूप से लागू की जाएगी. हालांकि […]

नयी दिल्ली: भारत बाढ़ के पानी को नदियों और अन्य जलाशयों तक पहुंचाने के लिये ‘वर्षा जल प्रबंधन’ से जुड़ी तकनीक के अपने यहां सफल प्रयोग के बाद अब पड़ोसी देश श्रीलंका, भूटान, बांग्लादेश और नेपाल की भी इसमें मदद करेगा.

जुलाई से पांचों देशों में यह तकनीक स्थाई रूप से लागू की जाएगी. हालांकि पाकिस्तान इससे बाहर रहेगा. दरअसल मिट्टी में पानी सोखने की क्षमता के अध्ययन पर आधारित ‘फ्लैश फ्लड गाइडेंस सिस्टम’ के जरिये बाढ़ नियंत्रण से संबंधित, भारतीय मौसम विभाग की इस परियोजना में पाकिस्तान ने शामिल होने से इंकार कर दिया है.

मौसम विभाग के महानिदेशक के जे रमेश ने बताया कि एशिया, यूरोप और अफ्रीका सहित अन्य महाद्वीपों के बाढ़ प्रभावित 42 देशों ने विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) के बैनर तले फ्लैश फ्लड गाइडेंस सिस्टम को लागू किया है. रमेश ने बताया कि मौसम विभाग इस तकनीक को भारत और अपने चार पड़ोसी देशों में लागू करेगा.

जबकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान संयुक्त रूप से इसे विकसित करेंगे. रमेश ने बताया कि भारत में एक साल से प्रायोगिक परियोजना (पॉयलट प्रोजक्ट) के रूप में इस प्रणाली का सफल परीक्षण होने के बाद इसे पांचों देशों में एक साथ अगले महीने जुलाई में स्थायी रूप से लागू कर दिया जायेगा. इस तकनीक की मदद से मौसम विभाग क्षेत्र विशेष की मिट्टी की जांच कर केन्द्रीय जल आयोग को बतायेगा कि बारिश के फलस्वरुप कहां कितनी बाढ़ आयेगी.

उन्होंने बताया कि इस परियोजना के तहत पूरे देश को मिट्टी की किस्मों के आधार पर 28,800 सेक्टर में बांटा गया है. प्रत्येक सेक्टर में 50 से 60 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को शामिल किया गया है. रमेश ने बताया कि इस तकनीक की मदद से प्रत्येक सेक्टर में तापमान और बारिश के पूर्वानुमान के आधार पर मिट्टी में पानी सोखने की क्षमता का निर्धारण किया गया है.

इस क्षमता से अधिक बारिश होने की स्थिति में यह प्रणाली हर छह घंटे में संभावित बारिश के बारे में उस सेक्टर में स्थानीय आपदा प्रबंधन और जल संरक्षण से जुड़े विभाग को अतिरिक्त वर्षा जल के प्रबंधन के दिशानिर्देश मिलते रहेंगे. रमेश ने बताया कि इससे प्रत्येक सेक्टर में बारिश के पूर्वानुमान के आधार पर पहले ही यह तय किया जा सकेगा कि कितना वर्षा जल जमीन में समाहित होगा और कितना नदी, नालों सहित अन्य जलाशयों में जाने के बाद शेष बचेगा, जो बाढ़ का रूप लेगा.

इसके आधार पर बाढ़ संभावित इलाकों के स्थानीय प्रशासन को पहले ही अतिरिक्त वर्षा जल के संरक्षण के निर्देश दे दिये जायेंगे. उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि अधिक पानी सोखने वाली मिट्टी से संबद्ध इलाकों में दस सेंटीमीटर बारिश बाढ़ का कारण नहीं बन सकती, लेकिन कम पानी सोखने वाली मिट्टी से जुड़े इलाकों में बाढ़ की वजह बन सकती है. इससे क्षेत्र विशेष के लिये मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर बाढ़ का सटीक अनुमान लगाना संभव हुआ है.

रमेश ने बताया कि मौसम विभाग अब तक सिर्फ भारी बारिश के पूर्वानुमान और उसकी चेतावनी मात्र जारी करता था, लेकिन अब लगातार उन्नत होती तकनीक की मदद से आकाशीय बिजली, आंधी और बारिश की तीव्रता का भी विभाग सटीक पूर्वानुमान दे पा रहा है.

उल्लेखनीय है कि मौजूदा व्यवस्था में केन्द्रीय जल आयोग बाढ़ की चेतावनी जारी करता है. अब नयी तकनीक की मदद से मौसम विभाग इस बारे में दिशानिर्देश जारी करेगा. इसकी मदद से आपदा प्रबंधन एजेंसियों, जल आयोग और कृषि विभाग सहित अन्य संबद्ध एजेंसियों को बाढ़ से निपटने की तैयारी करने में भी मदद मिलेगी.

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