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बिहार में तबाही मचाने वाले चमकी बुखार से निबटने के लिए रिसर्च जरूरी, मिल सकती है मधुमेह की नयी दवा

मिथिलेश झा रांची : बिहार के मुजफ्फरपुर जिला में इस वर्ष अब तक 117 बच्चों की जान ले चुके चमकी बुखार से निबटने के लिए रसर्च जरूरी है. यह बीमारी कच्चा लीची खाने से होती है, जिसमें रोगी का शुगर लेवल घट जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है. यह कहना है राजेंद्र इंस्टीट्यूट […]

मिथिलेश झा

रांची : बिहार के मुजफ्फरपुर जिला में इस वर्ष अब तक 117 बच्चों की जान ले चुके चमकी बुखार से निबटने के लिए रसर्च जरूरी है. यह बीमारी कच्चा लीची खाने से होती है, जिसमें रोगी का शुगर लेवल घट जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है. यह कहना है राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (रिम्स) के मेडिसीन विभाग के प्रोफेसर डॉ संजय कुमार सिंह का.

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डॉ संजय कुमार सिंह कहते हैं कि मुजफ्फरपुर में अपनी पोस्टिंग के दौरान उन्होंने देखा है कि लीची खाने से किस कदर बच्चे बीमार पड़ते हैं. डॉ सिंह के मुताबिक, कच्चा लीची खाने से बच्चों में हाइपोग्लेसीमिया हो जाता है. उनके शरीर में चीनी की मात्रा कम हो जाती है, जिसकी वजह से उनकी मौत हो जाती है. हालांकि, उन्होंने कहा कि इस बीमारी का लीची से क्या संबंध है, इसका कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं है.

प्रो सिंह कहते हैं कि यह एक देसी बीमारी है और इस पर गहन शोध की जरूरत है. जब तक शोध नहीं होता, तब तक इस बीमारी का इलाज ढूंढ़ना भी मुश्किल होगा. श्री सिंह कहते हैं कि हो सकता है इस बीमारी के बारे में पता लगाने के लिए होने वाले शोध के दौरान लीची से मधुमेह (डायबिटीज) की दवा का इजाद हो जाये.

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यहां बताना प्रासंगिक होगा कि बिहार के मुजफ्फरपुर जिला में हर साल एक्यूट जापानी एनसेफलाइटिस, जिसे स्थानीय लोग चमकी बुखार कहते हैं, की वजह से बड़ी संख्या में मासूम बच्चों की जानें चली जाती हैं. वर्ष 2019 में अब तक 117 बच्चों की मौत हो चुकी है. इसमें 98 बच्चों ने एसकेमसीएच में और 19 ने केजरीवाल हॉस्पिटल में दम तोड़ा है.

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