राजनीति के अपराधीकरण को लेकर लंबे समय से चिंता जतायी जा रही है, मगर इसे किसी भी राजनीतिक दल ने गंभीरता से नहीं लिया है. यही वजह है कि हर चुनाव के बाद नगर निगम से लेकर संसद तक में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों की पैठ कुछ बढ़ी हुई दर्ज होती है. इस तरह हर राजनीतिक दल में कहीं न कहीं इसे लेकर स्वीकार्यता है कि बाहुबल और हिंसा के जरिये अपना दबदबा बनाया जा सकता है.
इसलिए हर राजनीतिक दल आपराधिक प्रवृत्ति वाले अपने कार्यकर्ताओं के दोष को छिपाने का प्रयास करता दिखता है. जाहिर है बंगाल की हिंसा के पीछे भी यही मानसिकता काम कर रही है. अगर पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व हिंसा के खिलाफ होते, तो वे एक-दूसरे पर दोषारोपण करने के बजाय अपने कार्यकर्ताओं को अनुशासित करने में जुटते. शीर्ष नेताओं की पहल स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है.
डाॅ हेमंत कुमार, गोराडीह, भागलपुर