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जल संकट को लेकर चेत जाएं

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in पूरे देश में जल संकट गहराता जा रहा है. हम सब लोग बेसब्री से मॉनसून का इंतजार कर रहे हैं. केरल से थोड़ी राहत की खबर आयी है कि देर से ही सही, वहां मॉनसून पहुंच गया है. दूसरी ओर जल संकट को लेकर देश के विभिन्न […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
पूरे देश में जल संकट गहराता जा रहा है. हम सब लोग बेसब्री से मॉनसून का इंतजार कर रहे हैं. केरल से थोड़ी राहत की खबर आयी है कि देर से ही सही, वहां मॉनसून पहुंच गया है. दूसरी ओर जल संकट को लेकर देश के विभिन्न हिस्सों से विचलित कर देने वाली खबरें सामने आ रही हैं.
ये खबरें इस बात का संकेत हैं कि आने वाले समय में हमें किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है. हाल में महाराष्ट्र के औरंगाबाद के फूलंबरी की महिलाओं का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें दिखाया गया है कि अपनी बाल्टी को भरने के लिए महिलाएं एक पानी के टैंकर के पीछे कैसे बेतहाशा दौड़ रही हैं. तमिलनाडु के त्रिची से खबर आयी कि पानी को लेकर हुए विवाद में एक युवक की पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी. मृतक पानी का एक टैंकर चलाता था.
उसे एक परिवार के चार लोगों ने बेरहमी से पीट-पीट कर मार डाला. उसकी गलती महज इतनी थी कि उसने परिवार के लोगों को बड़े प्लास्टिक कंटेनर में सार्वजनिक टंकी से पानी भरने से मना किया था और कहा था कि इतना ज्यादा पानी आप ले जाओगे, तो बाकियों को पानी नहीं मिल पायेगा. इतनी-सी बात पर उसकी हत्या कर दी गयी. रांची में भी पानी भरने को लेकर हुए विवाद में चाकूबाजी की घटना सामने आयी है. जल विवाद की इस घटना में एक महिला समेत छह लोग घायल हो गये. पानी भरने को लेकर पहले हम-पहले हम के कारण विवाद हुआ और उसी में चाकूबाजी हुई और लोग घायल हो गये.
राजस्थान के अलवर जिले के कोल गांव व घासोली गांवों के लोगों के बीच पानी को लेकर हुई खूनी संघर्ष की खबर है. वहां आरएसी को तैनात करना पड़ा. कोल गांव के ग्रामीण ने घासोली तक पाइप लाइन डालने का विरोध कर रहे थे. घासोली गांव में जलस्तर नीचे चले जाने के कारण वहां के सभी ट्यूबवेल सूख गये हैं. समस्या गहराने पर पड़ोस के कोल गांव में जल विभाग ने नयी बोरिंग करा कर घासोली में जल आपूर्ति की व्यवस्था की.
इसका कोल गांव के लोग विरोध कर रहे थे कि पानी निकासी से उनके क्षेत्र में जलस्तर गिर जायेगा. यह विवाद इतना गहरा गया कि दोनों गांवों के लोगों में संघर्ष छिड़ गया और शांति व्यवस्था के लिए आरएसी को तैनात करना पड़ा. मप्र से भी गंभीर जल संकट है. लोगों को कई-कई किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद ही पानी मिल पा रहा है, जिससे संघर्ष की आशंका बढ़ गयी है.
इसके मद्देनजर मप्र गृह विभाग ने जल स्रोतों पर पहरा लगाने के पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिये हैं. गृह विभाग ने सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिये हैं कि वे कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए जल स्रोतों पर सुरक्षा बलों की तैनाती करें.
गुजरात में भारी जल संकट से जूझ रहा है. बीबीसी की खबर के अनुसार वहां के एक इलाके में तो शादी के मुहूर्त पानी के टैंकर के हिसाब से तय होते हैं. उत्तर गुजरात के गांव भाखरी में पानी के टैंकर की उपलब्धता के हिसाब से मुहूर्त निकाला जाता है. भाखरी एकमात्र तालाब सूख चुका है. गांव में अगर शादी हो तो 25 किमी दूर से पानी का टैंकर लाना पड़ता है और एक टैंकर पानी के 2,000 रुपये चुकाने पड़ते हैं.
अगर टैंकर नहीं मिलता, तो शादी नहीं हो पाती. इसलिए विवाह टैंकर की उपलब्धता के अनुसार होता है. भारत-पाकिस्तान की सीमा पर स्थित यह इलाका दशकों से सूखाग्रस्त है. कर्नाटक के कई जिलों ने तो पानी की कमी के कारण स्कूलों को एक सप्ताह के लिए बंद कर देना पड़ा था. आदमी ही नहीं, जानवर भी जल संकट से प्रभावित है.
मप्र के देवास जिले में भीषण गर्मी के दौरान पानी न मिलने की वजह से 15 बंदरों की मौत हो गयी. देवास की पुंजापुरा रेंज के जंगल के जिस इलाके में बंदरों की मौत हुई, वहां एक जल स्रोत है, जिसमें बहुत ही कम पानी रह गया है. इस जल स्रोत पर 50 से 60 हट्टे-कट्टे बंदरों की एक टोली ने कब्जा कर रखा है और उन्होंने दूसरी टोली के बंदरों को वहां पानी नहीं पीने दिया, जिससे प्यास से उनकी मौत हो गयी.
ये सारी सूचनाएं विचलित करने वाली हैं और गंभीर जल संकट का प्रमाण हैं. ऐसा नहीं कि ऐसी परिस्थिति का निर्माण अचानक हुआ या ऐसी चेतावनी पहली बार सामने आ रही हो. पिछले साल नीति आयोग ने कहा था कि देश अब तक के सबसे बड़े जल संकट से गुजर रहा है और अगर तुरंत कदम नहीं उठाये गये, तो 2030 तक देश में सबको पीने का पानी देना संभव नहीं होगा. केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट में भी चेताया गया है कि अगर अच्छी बारिश नहीं हुई, तो पानी की भारी किल्लत के लिए तैयार रहें.
केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश के 91 जलाशयों में सिर्फ 20 फीसदी पानी ही बचा है. पश्चिम और दक्षिण भारत के जलाशयों में पानी तो पिछले 10 वर्षों के औसत से भी नीचे चला गया है. पानी की कमी की वजह से देश का करीब 42% हिस्सा सूखाग्रस्त है, जो पिछले साल की तुलना में 6% अधिक है.
आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान सूखे से बुरी तरह प्रभावित हैं. चिंता की बात है कि इस बार मॉनसून की रफ्तार धीमी है. अभी यह केरल तक ही पहुंचा है. भारत के 80% हिस्से में वर्षा के लिए जिम्मेदार दक्षिण पश्चिम माॅनसून इस वर्ष देर से पहुंचेगा और उत्तर पश्चिम भारत और पूर्वोत्तर भारत में सामान्य से कम बारिश होने की अनुमान है.
पानी की कमी का बड़ा कारण जल का अत्यधिक दोहन और जल संचयन न करना है. पर्यावरण दिवस के मौके पर प्रभात खबर ने रांची में विशेषज्ञों के साथ एक विमर्श किया और एक एजेंडा तैयार किया है कि हम और आप इस संकट से कैसे निबट सकते हैं? पहली बात है कि पर्यावरण संरक्षण और जल संकट से बचने के लिए जन भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है.
नीतियां जनोपयोगी और पर्यावरण के अनुकूल बनें. पानी के लिए धरती का दोहन करने की बजाय सतह के वाटर बॉडी संरक्षित हो. सिर्फ सरकार के भरोसे पर्यावरण संरक्षण का काम नहीं हो सकता है. इसकी शुरुआत घर से करनी होगी.
सिविल सोसाइटी को राज्य सरकार के साथ मिल कर काम करना होगा. बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में तालाबों का संरक्षण करना बेहद जरूरी है. स्कूलों में पर्यावरण संबंधी जानकारी बच्चों को देनी होगी. बच्चों के माध्यम से उनके घरों तक पहुंचना होगा. संकल्प लेना होगा कि न केवल पेड़ लगायेंगे, बल्कि इसे बचायेंगे भी. जल स्रोतों के पुनरुद्धार के लिए कार्य योजना बना कर काम हो.
राज्य और केंद्र स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए कई नीतियां और कानून हैं. उनका पालन सही ढंग से हो, इसके लिए दबाव बनाना होगा. जनसंख्या का पर्यावरण पर दबाव बढ़ता जा रहा है. लिहाजा, इस पर भी हमें सोचना होगा. हम सभी को जल संचय का संकल्प लेना होगा, अन्यथा यह आपदा का रूप ले लेगा.

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