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…अौर सात डिब्बे बागमती में जा गिरे

आयुष, सिमरी : 6 जून 1981 भारतीय रेल के इतिहास का वह काला जिस दिन देश की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना हुई थी. पूर्व मध्य रेलवे के सहरसा-मानसी रेलखंड के धमारा और बदलाघाट स्टेशन के बीच पुल संख्या 51 पर हुई थी. 6 जून 1981 यानी आज से ठीक 38 साल पहले का वक्त, जिसे […]

आयुष, सिमरी : 6 जून 1981 भारतीय रेल के इतिहास का वह काला जिस दिन देश की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना हुई थी. पूर्व मध्य रेलवे के सहरसा-मानसी रेलखंड के धमारा और बदलाघाट स्टेशन के बीच पुल संख्या 51 पर हुई थी.

6 जून 1981 यानी आज से ठीक 38 साल पहले का वक्त, जिसे याद करने के बाद आज भी रूह कांप जाती है. जी हां, यह देश का सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़े रेल हादसे का दिन है. जिसमें करीब सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गये थे. वह मनहूस दिन जब मानसी से सहरसा की ओर जा रहे यात्रियों से खचाखच भरी नौ डिब्बों की एक ट्रेन जिसमें सभी यात्री अपने अपने कामों में व्यस्त थे.
कोई बात करने में मशगूल था तो कोई मूंगफली खा रहा था. कोई अपने रोते बच्चों को शांत करा रहा था तो कोई उपन्यास पढ़ने में व्यस्त था. इसी वक्त अचानक से ट्रेन हिली. यात्री जब तक कुछ समझ पाते, तब तक पटरी ट्रैक का साथ छोड़ते हुए लबालब भरी बागमती नदी में जलविलीन हो गयी.
कैसे हुआ था हादसा: आज से ठीक 38 वर्ष पूर्व हुए भारत के सबसे बड़े रेल दुर्घटना के कारणों पर यदि गौर करें तो इस रेल दुर्घटना से जुड़ी दो थ्योरी हमेशा से प्रमुखता से लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी रही. घटना से जुड़ी थ्योरी यह है कि छह जून 1981 दिन शनिवार की देर शाम जब मानसी से सहरसा ट्रेन जा रही थी तो इसी दौरान पुल पर एक भैंस आ गया.
जिसे बचाने के लिए ड्राइवर ने ब्रेक मारा, पर बारिश होने की वजह से पटरियों पर फिसलन की वजह से गाड़ी पटरी से उतरी और रेलवे लाइन का साथ छोड़ते हुए सात डिब्बे बागमती नदी में डूब गये. जबकि इस एक्सीडेंट से जुड़ी दूसरी थ्योरी यह है कि पुल नंबर 51 पर पहुंचने से पहले जोरदार आंधी और बारिश शुरू हो गयी थी.
बारिश की बूंदें खिड़की के अंदर आने लगी तो अंदर बैठे यात्रियों ने ट्रेन की खिड़की को बंद कर दिया. जिसके बाद हवा का एक ओर से दूसरी ओर जाने के सारे रास्ते बंद हो गये और तूफान के भारी दबाव के कारण ट्रेन की बोगी पलट कर नदी में जा गिरी. हालांकि घटना के काफी वर्ष बीत जाने के बाद जब प्रभात खबर की टीम घटनास्थल के आसपास के गांव का दौरा करने पहुंची तो अधिकतर गांव वालों ने दूसरी थ्योरी को जायज बताते हुए बताया कि तेज आंधी में यात्रियों द्वारा खिड़की बंद करना घातक साबित हुआ.
काल के गाल में समा गये थे सैकड़ों यात्री: 6 जून 1981 का वह मनहूस दिन जब मानसी से सहरसा की ओर जा रही 416 डाउन ट्रेन की लगभग सात बोगियां नदी के गहराई में समा गई. जिस वक्त यह हादसा हुआ उस वक्त ट्रेन यात्रियों से खचाखच भरी थी. ट्रेन की स्थिति ऐसी थी कि ट्रेन के छत से लेकर ट्रेन के अंदर सीट से पायदान तक लोग भरे हुए थे.
मानवता हुई थी कलंकित..: कहते हैं कि छह जून की शाम ट्रेन की बोगियों के नदी में गिरने के साथ ही चीख-पुकार मच गई. कुछ जो तैरना जानते थे, उन्होंने किसी तरह गेट और खिड़की से अपने और अपने प्रियजनों को निकाला. इसके बाद जो हादसा हुआ, वह मानवता के दामन पर बदनुमा दाग बन गया. घटना स्थल की ओर तैरकर बाहर आने वालों से कुछ स्थानीय लोगों ने लूटपाट शुरू कर दी. यहां तक कि प्रतिरोध करने वालों को कुछ लोगों ने फिर से डुबोना शुरू कर दिया.
कुछ यात्रियों का तो यहां तक आरोप है कि जान बचाकर किनारे तक पहुंची महिलाओं की आबरू तक पर हाथ डालने का प्रयास किया गया. वहीं कुछ लोग बताते हैं कि बाद में जब पुलिस ने बंगलिया, हरदिया और बल्कुंडा गांवों में छापेमारी की तो कई घरों से टोकरियों में सूटकेस, गहने व लूट के अन्य सामान मिले थे. इससे यात्रियों के आरोपों की पुष्टि हुई थी. वहीं आज के समय में बदला व धमारा घाट के आसपास के ग्रामीण जहां इस बात को झूठ का पुलिंदा बताते हैं तो कुछ दबी जुबान से इस बात पर सहमति भी जताते हैं.

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