II उर्मिला कोरी II
फिल्म : भारत
कलाकार : सलमान खान, कैटरीना कैफ, सुनील ग्रोवर, कुमुद मिश्रा, जैकी श्रॉफ, सोनाली कुलकर्णी, तब्बू, दिशा पटानी, आशिफ शेख
निर्देशक : अली अब्बास जफर
निर्माता : सलमान खान प्रोडक्शंस और टी सीरिज
रेटिंग : 2.5
फिल्म ‘भारत’ कोरियन फिल्म एन ओड टू फादर का ऑफिशियल रीमेक है. पिता और पुत्र की यह इमोशनल कहानी एक साथ न सिर्फ एक परिवार की बल्कि पूरे देश की कहानी बयां करती है. अली अब्बास जफर ने ‘भारत’ के माध्यम से एक देश के सफर की दास्तां प्रस्तुत की है, जिसमें एक 9 साल की उम्र से लेकर 72 साल तक के एक ऐसे इंसान की कहानी है, जिसके लिए उसका परिवार ही देश है. फिल्म का एक संवाद फिल्म का सार है कि देश परिवार से बनता है.
वास्तविक जिंदगी में भी सलमान खान अपने परिवार से किस हद तक प्यार करते हैं, यह उनके फैन्स अच्छी तरह जानते हैं. शायद यही वजह रही होगी कि पारिवारिक बॉडिंग को लेकर जब उन्होंने एन ओड टू फादर देखी होगी तो वह कितने इमोशनल हो गये होंगे.
जाहिर है, तभी उनके मन में इस फिल्म को भारतीय रूपांतर देने की इच्छा हुई होगी. फिल्म में हम देश में विभाजन के बाद घटने वाली कई महत्वपूर्ण घटनाओं के साथ एक लड़का किस तरह नौजवान होता है और अपने परिवार के लिए हर संभव प्रयास करता जाता है. फिल्म इसी लड़के की कहानी है.
भारत (सलमान खान) पाकिस्तान के मीरपुर में अपने पेरेंट्स और भाई बहन के साथ रहता है. विभाजन के बाद उसके पिता और बहन का साथ छूट जाता है. लेकिन पिता ने जाते-जाते भारत से कहा है कि वह दिल्ली जाकर बुआ के घर जाये. उनका हिंद स्टोर है और जब तक वह न आये, वह अपने पूरे परिवार का ख्याल रखे. भारत इस बात को गांठ बांध लेता है और मां को लेकर भारत पहुंचता है. इसके बाद उसकी जिंदगी में एक ही मकसद है कि वह मेहनत से पैसे कमायेगा और परिवार का ख्याल रखेगा.
भारत अपने पिता से मन से अलग नहीं हो पाया है. हर वक्त उसे इसी बात का ख्याल है कि उसे अपने पापा का वादा पूरा करना है और एक दिना पापा जरूर आयेंगे. इस बीच में वह अपने पूरे परिवार का ख्याल रखता है. निर्देशक अली ने इसमें 1947 के विभाजन के बाद सर्कस वाले दौर को, पंडित नेहरु का देहांत, फिर देश में बेरोजगारी और फिर अरब में तेल निकलने के बाद भारी संख्या में भारतीय मजदूरों को रोजगार मिलना इस तरह की घटनाओं को बखूबी दिखाया है. उन्होंने अपने अंदाज में व्यंग्यात्मक अंदाज रखा है.
दूसरी तरफ उन्होंने 90 के दशक को दर्शाने के लिए शाहरुख खान के स्टारडम वाले दौर का भी रेफरेंस इस्तेमाल किया है. साथ ही हिंदी फिल्मों का प्रभाव किस कदर भारत से इतर विदेशों में भी रहा है वह भी दर्शाया है. उन्होंने उस वास्तविक घटना को भी परोसा है, जब सोमालिया के समुद्री डाकूओं ने अमिताभ बच्चन के गाने सुन कर लूटे हुए पैसे और लोगों की जान बक्श दी थी. इस फिल्म में हिंदी फिल्मों के रेफरेंस की बात की जाये तो शाहरुख खान के स्टारडम, राज कपूर की फिल्म जोकर, अमर अकबर एंथनी के एंथनी के किरदार, सदी के महानायक के लोकप्रिय गाने तो गौर करें तो फिल्म में आमिर खान की फिल्म थ्री इडियट्स का भी एक रेफरेंस है. वह आप फिल्म देख कर खुद ही अनुमान लगा सकते हैं.
भारत की खूबी उसके किरदार हैं. फिल्म में पिता, परिवार की कहानी के बीच एक दोस्त, एक प्रेमिका की जिंदगी में अहमियत क्या होती है यह भी दर्शाया गया है. ठीक सलमान की वास्तविक छवि की तरह ही, जो अपनी जिंदगी में परिवार के साथ दोस्तों को भी तवज्जो देते हैं. विलायती (सुनील ग्रोवर), कुमुद (कैटरीना) के रूप में ऐसी प्रेमिका जो भारत के प्यार में बिना शादी के भी एक बहू, एक पत्नी का पूरा कर्तव्य निभाती है.
अली अब्बास जफर ने कहानी का इमोशनल कोशेंट बखूबी पकड़ा है. लेकिन अगर फिल्म में वह इसे इमोशनल जर्नी ही बना कर रखते, तो शायद यह फिल्म अधिक स्थाई रह जाती. बेवजह सीन में सलमान खान के लार्जर देन लाइफ दिखाने के लिए एक्शन सीन ठूस दिये ग़ये हैं. फिल्म के शुरुआती गीत स्लो मोशन को छोड़ कर, शेष सारे गाने कहानी से मेल नहीं खाते. जहां एक पल को आप इमोशनल होते हैं. वही अचानक गाने आकर आपको भटका देते हैं. यह इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है. अली को क्यों सबकुछ दिखा लेना था. यह बात समझ नहीं आयी.
चूंकि अब तक सलमान के साथ उ्यकी फिल्म सुल्तान और टाइगर जिंदा है में देखें तो वह इसे लेकर स्पष्ट हैं कि उन्हें सुल्तान को इमोशनल और टाइगर को एक् शन अवतार में दिखाना है. इस बार वह भटक गये हैं. वही इस फिल्म में खटकती है.
फिल्म की अगर एन ओड टू फादर से तुलना की जाये तो सच यही है कि भारत के अधिक भावनात्मक दृश्य इसी फिल्म से हूबहू रखे गये हैं और वहीं इस फिल्म की जान है.
ऐसे दौर में जब पाकिस्तान से देश के संबंध मधुर नहीं हैं.फिल्म में एक बेहतरीन अंदाज में दोनों देशों में आपस में बिछुड़ चुके परिवार के मर्म को दिखाया गया है.
सलमान खान ने फिल्म में पांच अवतार लिये हैं. भावनात्मक अवतार में वह जंचे हैं. लेकिन कुछ दृश्यों में वह सलमान नजर आये हैं. एक सवाल यह भी है कि अगर सलमान को बुजुर्ग दिखाना था, उनके हाव भाव में भी वह बात नजर आनी चाहिए थी. वह नजर नहीं आयी है. सुनील ग्रोवर विलायती के रूप में कमाल काम कर गये हैं. उन्होंने अपनी टीवी पर उनकी बनी बनाई छवि को तोड़ कर अलग किरदार में ढलने की कोशिश की है. यही नहीं, उन्होंने कई दृश्यों में दर्शकों का मनोरंजन भी किया है.
कैटरीना कैफ को अली बतौर निर्देशक खूब अच्छी तरह समझ गये हैं. और उन्हें खूब मांझने में कामयाब रहे हैं. अमूमन अपने अभिनय के लिए नेगेटिव व्यूज पाने वाली कैटरीना इस फिल्म में प्रभावशाली नजर आयी हैं. काश कि कुमुद मिश्रा के हिस्से कुछ दमदार संवाद आते. आशिफ शेख ने कम दृश्यों में ही मजबूत उपस्थिति दर्ज की है. जैकी श्रॉफ ने हमेशा की तरह इस बार भी पिता के रूप में अपने अभिनय से प्रभावित किया है. दिशा केवल कुछ दृश्यों में नजर आयी हैं. तब्बू के हिस्से भी अगर कुछ दृश्य आते तो और अच्छा होता. सोनाली कुलकर्णी ने सलमान की मां के किरदार को बखूबी उकेरा है.