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हाल झारखंड की राजधानी रांची का: खींच लेते हैं 44 अरब लीटर पानी, पर लौटा रहे सिर्फ पांच फीसदी

राजधानी रांची के लोग इन दिनों भीषण जल संकट से गुजर रहे हैं. हर साल गर्मी के मौसम में ऐसे हालात पैदा होते हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि, जमीन से जितना हम अपने उपयोग के लिए ले रहे हैं, उसकी तुलना में बहुत कम पानी उसे लौटा रहे हैं. चिंता की बात तो […]

राजधानी रांची के लोग इन दिनों भीषण जल संकट से गुजर रहे हैं. हर साल गर्मी के मौसम में ऐसे हालात पैदा होते हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि, जमीन से जितना हम अपने उपयोग के लिए ले रहे हैं, उसकी तुलना में बहुत कम पानी उसे लौटा रहे हैं. चिंता की बात तो यह है कि इस तथ्य को जानते हुए भी आमलोग केवल सरकार, संबंधित निकाय और प्राधिकार से उम्मीद लगाये बैठे हैं. अपने स्तर से कोई भी जल संचय की पहल नहीं कर रहा है. इसी गंभीर समस्या को लेकर प्रस्तुत है प्रभात खबर की यह विशेष रिपोर्ट.
प्रभात गोपाल झा/उत्तम महतो
रांची : रांची की धरती का पानी सूखता जा रहा है. यह हम नहीं, बल्कि इस बार के आंकड़े बता रहे हैं. हर साल स्थिति विकट हो जा रही है. शहर में 40 हजार से ज्यादा बोरिंग फेल हो गये हैं. सवाल यही है कि धरती ही सूख गयी, तो पानी कहां से लायेंगे. एक अनुमान के अनुसार पूरे साल में रांची जिले में 44 अरब लीटर भूमिगत जल का दोहन किया जा रहा है.
जियोलॉजिस्ट बताते हैं कि रांची में वर्तमान में मात्र 15 फीसद घरों में ही वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया गया है, जो कि काफी कम है. ऐसे में इससे धरती को हम मात्र 05 से 06 फीसद ही पानी वापस दे पा रहे हैं. इसके माध्यम से पूरे साल में मात्र 01 से डेढ़ अरब लीटर ही पानी रिचार्ज किया जा रहा है. शेष 95 फीसद जल की सीधे तौर पर उपयोग कर बर्बादी हो रही है यानी उन्हें नालियों में बहा दिया जा रहा है.
हालात डराने वाले हैं, वक्त रहते संभलें
ठाकुर ब्रह्मानंद सिंह, सीनियर हाइड्रोलॉजिस्ट, सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड बताते हैं कि हालात चिंताजनक हैं. पिछले साल एक हजार के आसपास की संख्या में बोरिंग सूखने की घटना हुई थी, लेकिन इस बार आंकड़ा चार हजार की संख्या को भी पार कर रहा है.
लोगों का ध्यान वाटर रिचार्ज करने को लेकर नहीं है. अगर यही हाल रहा, तो 10 साल बाद पानी के लिए तरसेंगे. विशेषज्ञों का मानना है कि हम लोग धरती से जितना पानी लेते हैं, उसका कम से कम 75 फीसद धरती को लौटाना चाहिए. तभी धरती की स्थिति सामान्य रहेगी.
जानिये खतरनाक जलदोहन का गणित
जानकारी के अनुसार रांची नगर निगम में शहरी क्षेत्र के एक लाख 70 हजार घर निबंधित हैं. जिनमें से एक लाख 10 हजार घरों में नल या निजी बोरिंग से पानी का इस्तेमाल होता है. 60 हजार घरों में अन्य स्त्रों से पानी का इस्तेमाल होता है वहीं पानी कनेक्शन वाले 20 हजार घरों में प्राय: जलापूर्ति में बाधा रहने के कारण बोरिंग पर ही निर्भर रहते हैं.
ऐसे में कुल 80 हजार घरों में अनुमानित तौर पर औसतन प्रतिदिन 1500 लीटर पानी प्रति घर के हिसाब से 12 करोड़ लीटर भूमिगत जल का दोहन हो रहा है. यानी 30 दिन में 360 करोड़ और पूरे साल में 4320 करोड़ लीटर यानी 43 बिलियन भूमिगत जल का दोहन हो रहा है.
साल भर में 192 मिलियन लीटर भूमिगत जल निकाल लेता है रांची नगर निगम अगर अगर नगर निगम के स्तर से दोहन की बात हो, तो उसके स्तर पर साल में चार महीने यानी मार्च से जून तक सबसे ज्यादा अनुमानित तौर पर 08 लाख लीटर भूमिगत जल का दोहन रोज किया जाता रहा है. इन चार महीनों में रांची नगर निगम को सबसे ज्यादा पेयजल संकट का सामना करना पड़ता है.
यानी एक महीने में 240 लाख लीटर और चार महीने में 960 लाख लीटर यानी 96 करोड़ लीटर भूमिगत जल का दोहन किया जाता है. अगर इस खपत को अन्य आठ महीनों में सीधे आधा भी कर दिया जाये तो औसत रूप से प्रति 08 महीने की खपत के हिसाब से 120 लाख गुना 08 यानी 96 करोड़ लीटर पानी का दोहन होता है. ऐसे में पूरे साल में 1920 लाख लीटर यानी 192 मिलियन यानी 0.192 बिलियन (अरब) के करीब पानी का दोहन किया जाता है.
नकलूपों से निकलता है 36 मिलियन लीटर भूमिगत जल
पेयजल विभाग की ओर से भी रांची जिले में नगर निगम के बाहर के क्षेत्रों में स्थित औसतन दो लाख घरों में बोरवेल यानी चापाकलों से पानी की आपूर्ति की जाती है. जिसमें एक अनुमान के अनुसार औसत एक हजार नलकूपों के माध्यम से प्रतिदिन 100 लीटर पानी यानी एक लाख लीटर भूमिगत जल का दोहन किया जाता है. ऐसे में एक महीने में 30 लाख लीटर और साल में 360 लाख लीटर भूमिगत जल का नलकूपों से दोहन होता है.
हर दो घर पर एक बोरिंग
रांची में बोरिंग की स्थिति काफी चिंताजनक है. यहां पर बोरिंग के बीच जितनी पर्याप्त दूरी होनी चाहिए, वह नहीं है. दो बोरिंग के बीच 50 मीटर की दूरी होनी चाहिए, लेकिन यहां हर दो घर पर एक बोरिंग कर दिया गया है. जिससे उन्हें डिस्चार्ज के बाद रिचार्ज होने का समय नहीं मिल पाता है. ऐसे में लगातार दोहन से उनका सूखना जारी है.
मोरहाबादी में है खतरनाक स्थिति
मोरहाबादी में 200 फीट के स्तर पर फ्रैक्चर है. लेकिन ज्यादातर बोरिंग ज्यादा जलदोहन के कारण सूख चुके हैं. अब तो फर्स्ट लेयर के खत्म होने के कारण 400 फीट पर मौजूद फ्रैक्चर के दूसरे लेयर को भी खतरा उत्पन्न हो गया है. कांके एरिया में फर्स्ट लेयर का फ्रैक्चर पहले ही सूख चुका है. हरमू में 200 फीट पर ज्यादातर नलकूप हैं. वहां पर फ्रैक्चर 200 फीट पर मौजूद हैं यानी जिसमें भूमिगत जल का भंडारण है, लेकिन लगातार दोहन के बाद अब यह सूखने लगे हैं.
लगातार भूमिगत जल के दोहन से स्थिति चिंताजनक होती जा रही है. हर स्तर पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को लागू करना होगा. सरफेस वाटर के उपयोग को प्राथमिकता देनी होगी और सरकार को इसे लेकर योजना बनाकर तत्काल लागू करना होगा.
ठाकुर ब्रह्मानंद सिंह, सीनियर हाइड्रोलॉजिस्ट, सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड

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