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उदासीनता की मार झेल रहे हैं बंगाल में सरकारी सहायता प्राप्त बीएड कॉलेज

सरकारी सहायता प्राप्त बीएड कॉलेजों में नहीं के बराबर हैं हिंदी प्राध्यापक सरकारी सहायता प्राप्त बीएड कॉलेजों में हिंदी प्राध्यापकों के प्रति उदासीन रवैया कोलकाता : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और शिक्षा मंत्री डॉ पार्थ चटर्जी जहां एक ओर शिक्षा व्यवस्था को और बेहतर बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के स्कीम लागू कर […]

सरकारी सहायता प्राप्त बीएड कॉलेजों में नहीं के बराबर हैं हिंदी प्राध्यापक

सरकारी सहायता प्राप्त बीएड कॉलेजों में हिंदी प्राध्यापकों के प्रति उदासीन रवैया
कोलकाता : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और शिक्षा मंत्री डॉ पार्थ चटर्जी जहां एक ओर शिक्षा व्यवस्था को और बेहतर बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के स्कीम लागू कर रहे हैं.नये-नये विश्विद्यालयों की नींव रख कर विश्व बांग्ला के सपने को साकार करने की कवायद की जा रही है.
वहीं राज्य में सरकारी सहायता प्राप्त बीएड कॉलेजों में सरकारी उदासीनता दिख रही है. सरकारी सहायता प्राप्त बीएड कॉलेजों में हिंदी प्राध्यापक नहीं के बराबर हैं.हिंदी प्राध्यापकों के प्रति उदासीन रवैया से बंगाल के सरकारी सहायता प्राप्त बीएड कॉलेजों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
अब तक नियुक्त नहीं किये गये हैं हिंदी प्राध्यापक
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, उच्च शिक्षा के प्रशिक्षण केंद्र ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय’ से लेकर ‘वेस्ट बंगाल स्टेट यूनिवर्सिटी’, ‘कल्याणी विश्वविद्यालय’, ‘बर्दवान विश्वविद्यालय’, ‘विद्यासागर विश्वविद्यालय’, ‘काजी नजरूल विश्वविद्यालय’ व ‘दी वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ टीचर्स ट्रेनिंग, एजुकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन’ आदि जैसे प्रशिक्षण संस्थानों में अभी तक हिंदी के कोई प्राध्यापक नियुक्त नहीं किये गये और न ही इस ओर किसी तरह का विशेष ध्यान दिया गया.
हिंदी से बीएड करनेवालों की मांग
बंगाल में कई विश्वविद्यालयों में हिंदी से स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री दी जा रही है. हिंदी से बीएड करनेवाले विद्यार्थियों का कहना है कि जिन विश्वविद्यालयों में हिंदी से स्नातक एवं स्नातकोत्तर की डिग्री दी जा रही है, उन विश्वविद्यालयों से विद्यार्थियों एवं प्राध्यापकों को ध्यान में रख कर सरकार सचेत होकर हिंदी से बीएड की सुविधा क्यों नहीं उपलब्ध करा रही है ? इसे चालू करने से सुविधाएं होगी. विद्यार्थियों का कहना है कि यदि पश्चिम बंगाल सरकार इस पर गंभीरता से विचार करें, तो हिंदी के विद्यार्थी, शिक्षक एवं प्राध्यापक आदि द्वारा शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि होगी एवं पश्चिम बंगाल में हिंदी विषय में शिक्षण-प्रशिक्षण की सुविधा से शिक्षा व्यवस्था और सुदृढ़ बनेगी.
वर्षों बाद भी सिर्फ एक सीट
पश्चिम बंगाल में विज्ञापन संख्या 1/2017 के अनुसार वेस्ट बंगाल कॉलेज सर्विस कमीशन ने सरकारी सहायता प्राप्त टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज के लिए विभिन्न विषयों में रिक्त पदों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की थी, जिसमें पहली बार हिंदी विषय के लिए सहायक प्राध्यापक का पद भी निकाला गया.
हिंदी विषय में सहायक प्राध्यापक पद के लिए कमीशन द्वारा साक्षात्कार 16 फरवरी 2018 को संपन्न हुआ और परिणाम 11 जुलाई 2017 को घोषित किये गये, जिसमें हिंदी विषय के लिए मात्र एक ही सीट (एससी केटेगरी से) ‘श्री रामकृष्ण बी टी कॉलेज’, दार्जिलिंग के लिए निकाला गया. कमीशन द्वारा बीएड कॉलेज में हिंदी विषय के लिए जो पैनल तैयार किया गया, उसकी वैधता अब मात्र जुलाई 2019 तक ही बची हुई है. विचारणीय है कि साक्षात्कार के बाद जहां विविध विषयों के लिए पर्याप्त सीटें निकाली गयीं, वहीं हिंदी के लिए वर्षों बाद पहली बार मात्र एक ही सीट निकली. वह भी दार्जिलिंग के लिए.
दार्जिलिंग से ज्यादा हिंदी में बीएड पढ़नेवाले हैं महानगर व सटे जिलों में
दार्जिलिंग के लिए वह सीट निकाली गयी, जबकि दार्जिलिंग से कई गुना अधिक हिंदी विषय में बीएड पढ़नेवालों की संख्या उत्तर 24 परगना से लेकर कोलकाता, हावड़ा, हुगली और वर्दवान आदि जिलों में हैं. इस विकट परिस्थिति में हिंदी से एमए पास करने के बाद विद्यार्थी सरकारी सहायता प्राप्त टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज अर्थात् बीएड कॉलेजों के धक्के खा रहे हैं. कॉलेज के प्राचार्य हिंदी विषय के प्राध्यापक न होने का हवाला देते हुए अपना पल्ला झाड़ ले रहे हैं. ऐसे में हिंदी से उच्च शिक्षा प्राप्त कर बीएड कॉलेजों में नियुक्ति न मिलने वालों को भी बेरोजगारी की मार झेलनी पड़ रही है.
शिक्षा मंत्री को भेजा गया पत्र
महानगर समेत सटे जिलों के एक भी बीएड कॉलेजों में हिंदी प्राध्यापकों की नियुक्ति न होने के कारण वर्तमान शिक्षा मंत्री डॉ पार्थ चटर्जी को एक पत्र के माध्यम से सूचना दी गयी, किन्तु इस गंभीर मुद्दे पर कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ.

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