हिंदी सिनेमा के ‘माइलस्टोन’ कहे जानेवाले कड़क और रौबदार आवाज़ के मालिक पृथ्वीराज कपूर 29 मई 1971 को इस दुनिया को अलविदा कह गये थे. वर्ष 1960 में आई यादगार फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में बादशाह अकबर का किरदार निभानेवाले पृथ्वीराज कपूर आज भी दर्शकों के जेहन में बसे हुए हैं. वे भारतीय सिनेमा के ‘युग पुरुष’ कहे जाते हैं. पृथ्वीराज कपूर से लेकर अब तक उनका पूरा परिवार बॉलीवुड में एक खास पहचान बना चुका है. पृथ्वीराज कपूर को जन्म 3 नवंबर 1906 को पंजाब के लायलपुर में एक जमींदार के यहां हुआ था.
बचपन से था अभिनय का शौक
पृथ्वीराज कपूर बचपन से ही अभिनय का बेहद शौक था. उन्होंने ऐसा नहीं सोचा होगा कि वो एक दिन थियेटर के ‘बादशाह’ के नाम से मशहूर हो जायेंगे. मात्र 18 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी और वे तीन-तीन बच्चों के पिता भी बन गये. लेकिन एक्टिंग के प्रति उनका शौक बढ़ता ही जा रहा था और सबको छोड़कर वो मुंबई आ गये.
पृथ्वीराज की ‘सिनेमा गर्ल’
शुरुआती दिनों में वे इम्पीरीयल फिल्म कंपनी से जुड़े और कुछ फिल्मों में छोटे-मोटे रोल भी किये. वर्ष 1929 में उन्हें अपनी तीसरी फिल्म ‘सिनेमा गर्ल’ में पहली बार लीड रोल करने का मौका मिला. वर्ष 1931 में भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ आई थी. इस फिल्म में भी पृथ्वीराज कपूर ने भी काम किया था. उन्होंने ‘दो धारी तलवार’, ‘शेर ए पंजाब’ और ‘प्रिंस राजकुमार’ जैसी 9 मूक फिल्मों में काम कर चुके हैं.
थियेटर से लगाव
पृथ्वीराज को थियेटर से भी बेहद लगाव था इसलिए वे वर्ष 1931 में शेक्सपीयर के नाटक पेश करनेवाली ग्रांट एंडरसन थियेटर कंपनी से जुड़ गये. इसके बाद वर्ष 1944 में उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी पृथ्वी थियेटर की स्थापना में लगा दी. कहा जाता है कि थियेटर के प्रति पृथ्वीराज कपूर की ऐसी दीवानगी थी कि अपने थियेटर की स्थापना के लिए उन्होंने गमछा बिछाकर लोगों से पैसे भी मांगे थे. इलाहाबाद में महाकुंभ के दौरान शो करने के बाद पृथ्वीराज कपूर खुद गेट पर खड़े होकर गमछा फैलाते थे और लोग उसमें पैसे डालते थे और इस तरह उन्होनें पृथ्वी थियेटर की शुरुआत की.
नेहरू के करीबी थे
पृथ्वीराज कपूर भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के बेहद करीब थे. पृथ्वीराज कपूर राज्यसभा में मनोनीत होकर संसद पहुंचने वाले पहले बॉलीवुड अभिनेता थे. दोनों के रिश्तों में बेहद घनिष्ठता थी लेकिन एक बार उन्होंने पंडित नेहरू से मिलने से इंकार कर दिया था. वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई की किताब के मुताबिक, जब पंडित नेहरू, पृथ्वीराज कपूर से मिलना चाहते थे तो पृथ्वीराज ने यह कहते हुए इनकार कर दिया था की वह अपनी थिएटर टीम के साथ हैं. पंडित नेहरू इस बात का इशारा समझ गए. उन्होंने इस इनकार के बाद पृथ्वी थिएटर की पूरी टीम को अपने निवास स्थान पर दावत के लिए बुलाया और पृथ्वीराज भी खुशी-खुशी पहुंचे थे.
चर्चित फिल्में और अवॉर्ड
उनकी फिल्मों में ‘विद्यापति’ (1937), ‘जिंदगी’ (1964), ‘आसमान महल’ (1965), ‘आवारा’ (1951), ‘तीन बहूरानिंया’ (1968), ‘दहेज’ (1950), ‘सिकंदर’ (1941), हीर रांझा (1970), ‘कल आज और कल’ (1971) और ‘चिंगारी’ जैसी फिल्मों को आज भी याद किया जाता है. वर्ष 1969 में पृथ्वीराज कपूर को पद्म भूषण अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. मरणोपरांत उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी नवाजा गया था.