18.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

शगुन में शोर

मिथिलेश कु. राययुवा रचनाकार/’mithileshray82@gmail.com कक्का एक दिन यह कह रहे थे कि आनेवाले दिनों में ध्वनि-प्रदूषण के सामने सारे प्रदूषण बौने साबित हो जायेंगे और लोग स्थिर दिमाग से कुछ भी सोचने-समझने के लिए फिर से कंदराओं की तरफ भागने के बारे में सोचने लगेंगे. वह समय मनुष्य के पागल हो जाने का समय होगा.घर […]

मिथिलेश कु. राय
युवा रचनाकार/’
mithileshray82@gmail.com

कक्का एक दिन यह कह रहे थे कि आनेवाले दिनों में ध्वनि-प्रदूषण के सामने सारे प्रदूषण बौने साबित हो जायेंगे और लोग स्थिर दिमाग से कुछ भी सोचने-समझने के लिए फिर से कंदराओं की तरफ भागने के बारे में सोचने लगेंगे. वह समय मनुष्य के पागल हो जाने का समय होगा.घर के बाहर उसे सबसे अधिक शोर से ही मुठभेड़ करनी होगी और जब वह घर पहुंचेगा, तब भी वह चारों ओर से आ रहे शोर को रोकने के प्रयास में विफल होगा. मनुष्य-जीवन में चैन की नींद तब बीते जमाने की बात हो जायेगी और वह कहीं भी शांति से दो पल बैठने की कल्पना तक नहीं कर सकेगा.
वसंत पंचमी के दिनों की बात है. कक्का का मन उखड़ा हुआ था. इस मौसम में तो मैंने उन्हें चिड़ियों की तरह गाते हुए सुना था. वे बस खेत और खेत में लगी फसलों के बारे में बताते थे.वसंत के मौसम में खेत में फसल रंग-बिरंगे फूलों से आच्छादित हो रहे होते हैं, वे उसकी बातें करते थे. लेकिन उस दिन वे शोर की बातें लेकर बैठ गये थे और बड़े खिन्न नजर आ रहे थे. उनकी आंखें लाल थीं. ऐसा लग रहा था कि वे रातभर सो नहीं पाये हों और दिन में भी उन्हें चैन न मिला हो.
कक्का ने भेद खोला. इलाके में दर्जनों जगह कार्यक्रम हो रहे थे. एक-एक जगह पर चार-चार लाउडस्पीकर लगाकर फुल साउंड में भजन बजाया जा रहा था. लोगों के कान सुन्न हो रहे थे. एक आदमी एक कान में अंगुली डाल कर दूसरे कान से मोबाइल लगाये कुछ सुनने की कोशिश कर रहा था.लेकिन फिर भी कुछ सुन नहीं पा रहा था. बस वह इस तरफ से हैलो-हैलो करता जा रहा था. वह झल्ला रहा था. तब मेरा भी क्रोध बढ़ गया कि भक्ति की यह कौन सी धारा है, जिसमें समर्पण नहीं, सिर्फ कानफोड़ू संगीत ही शेष बच गया है!
साउंड के बढ़ते प्रचलन से कक्का को लगन के दिनों की याद आ गयी. कहने लगे कि अब शादी-ब्याह के मौसम को ही देख लो, ब्याह में पहले से मौजूद कुरीतियों को दूर करने की अपेक्षा उसे और अधिक खर्चीला बना दिया गया है. बारात-भोज पर पुनर्विचार करने की जरूरत थी. लेकिन अब तो इन अवसरों पर बारातियों की सवारियों का एक लंबा रैला भी शामिल हो गया है.
बारात के द्वार पर आते ही पटाखों की गूंज से इलाके देर तक थर्राये रहते हैं. डीजे की भयंकर आवाज देर रात तक शांति चौपट कर देती है और बुजुर्गों की धड़कन को बढ़ाती रहती है. अब तो जरा-जरा सी बात पर लोग चार-चार लाउडस्पीकर बजाते हैं. बेकार में क्यों यह बजता ही जा रहा है, इससे किसी को कोई मतलब ही नहीं रह गया है.
कक्का को यह शक है कि अगर लोगों की ऐसी ही मानसिकता बनी रही, तो वह दिन दूर नहीं, जब ध्वनि-प्रदूषण के आगे सारे प्रदूषण पानी भरते नजर आयेंगे. तब वह बड़ा ही दयनीय समय होगा. तब हो सकता है कि हमारे पास साफ पानी हो, शुद्ध हवा भी हो, लेकिन उसके बाद भी हमारा मन इतना विचलित रहेगा कि हम ढंग से सोने, सोचने और तन्मय होकर काम करने के बारे में सिर्फ कल्पना ही कर पायेंगे!

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें