अजय विद्यार्थी
कोलकाता : देश के साथ-साथ राज्य में भी मोदी मैजिक ने अपना जादू दिखाया, जबकि राज्य में मोदी के सामने ममता की चमक फीकी पड़ गयी. 2011 के विधानसभा चुनाव में 34 वर्षों के वाममोर्चा के शासन के पतन के बाद आठ वर्षों के बाद इस लोकसभा चुनाव में बंगाल की राजनीति ने फिर से करवट ली है. बंगाल में भाजपा का कमल खिला है.
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देश के साथ-साथ पश्चिम बंगाल में भी मोदी मैजिक: गेरुआ में तब्दील हुआ लाल
अजय विद्यार्थीकोलकाता : देश के साथ-साथ राज्य में भी मोदी मैजिक ने अपना जादू दिखाया, जबकि राज्य में मोदी के सामने ममता की चमक फीकी पड़ गयी. 2011 के विधानसभा चुनाव में 34 वर्षों के वाममोर्चा के शासन के पतन के बाद आठ वर्षों के बाद इस लोकसभा चुनाव में बंगाल की राजनीति ने फिर […]
पिछले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव सहित विभिन्न चुनावों में हाशिये पर पहुंचा वाममोर्चा का राज्य से सूपड़ा साफ हो गया है. लाल रंग पूरी तरह से गेरुआ में तब्दील हो गया है और वामपंथी पार्टियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है. 34 वर्षों तक शासन करने वाले वाममोर्चा का राज्य से सूपड़ा ही साफ हो गया है.
उल्लेखनीय है कि पिछले लोकसभा चुनाव 2014 में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के सांसदों की संख्या 34 थी, जबकि कांग्रेस के सांसदों की संख्या 4, माकपा और भाजपा के सांसदों की संख्या दो-दो थी. वाममोर्चा का सफाया होना इस बात का साफ संकेत दे रहा है कि तृणमूल विरोधी मत और वामपंथी पार्टियों के मत भाजपा में शिफ्ट हुए हैं और इसका लाभ भाजपा को स्पष्ट रूप से मिला है.
राजनीतिक विश्लेषक पार्थ मुखर्जी का मानना है कि इस चुनाव परिणाम के पीछे राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का एंटी इनकमबेंसी फैक्टर भी काम किया है. तृणमूल कांग्रेस से क्षुब्ध मतदाता किसी अन्य पार्टी की तलाश में थे. माकपा उन मतदाताओं की आशाओं को पूरा करते नहीं दिख रही थी.
ऐसी स्थिति में भाजपा ने उनके समक्ष विकल्प प्रस्तुत किया और मतदाताओं ने भाजपा की ओर रूख किया है. भाजपा ने उत्तर बंगाल की पांच सीटों कूचबिहार, अलीपुरदुआर, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग और रायगंज की सीटों पर जीत हासिल कर पूरी तरह से उत्तर बंगाल पर कब्जा कर लिया है. दक्षिण बंगाल में बनगांव, बैरकपुर, राणाघाट, हुगली में भी भाजपा ने जीत हासिल कर अपनी पकड़ मजबूत की है. कबीलाई इलाकों में भाजपा का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है. इस चुनाव परिणाम में भाजपा को महानगरीय इलाके में पराजय का सामना करना पड़ा, लेकिन ग्रामीण इलाकों भाजपा को वोट मिले हैं.
वहीं, तृणमूल कांग्रेस ने शहरी इलाकों में अपनी पकड़ बरकरार रखी है. इस चुनाव के दूरगामी परिणाम होंगे. 2020 में बंगाल में कई नगरपालिकाओं के चुनाव हैं तथा 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव भी है. इस चुनाव परिणाम का असर उन चुनावों पर भी दिखेगा. अभी तक पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सबसे बड़ी और ताकतवर पार्टी थी, लेकिन भाजपा के बंगाल की राजनीति में अभ्युदय से अब बंगाल की राजनीति के दो ध्रुव बन गये हैं और भविष्य की राजनीति इन्हीं दो ध्रुवों के इर्द-गिर्द घूमती नजर आयेगी. भाजपा और तृणमूल दोनों के समक्ष भविष्य में अपनी ताकत और बढ़ाने की चुनौती होगी.
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