मधुबनी : नप में कमाई का कई जरिया है कचरा, होल्डिंग टैक्स, सड़क, पानी के साथ साथ अब मरे हुए मवेशी के नाम पर भी कमाई किये जाने की बातें सामने आ रही है. औसतन करीब डेढ़ से दो लाख रुपये का खर्च हर माह मरे हुए मवेशी के नाम पर हो रहा है. पर इस खर्च के बाद भी जब मवेशी की मौत होती है तो वह शहर में ही सड़क किनारे फेंक दिया जाता है.
मिट्टी में दबाने या शहर से दूर फेंकने तक की पहल नहीं होती. जानकारी के अनुसार शहर मुख्यालय में अगर कही पशु की मौत होती है तो उसको फेंकने के लिये नगरपरिषद प्रशासन ने अलग से इंतजाम किया है. शहरी क्षेत्रों में जितना पशु मरता है उसको एनजीओ के माध्यम से शहर से बाहर गाड़ने की व्यवस्था की जाती है. लेकिन ऐसा देखा जाता है कि एनजीओ के कर्मी शहर में ही उस मरे मवेशी को फेंक देते हैं.जिस कारण आम लोगो को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. मृत पशु के नाम पर प्रत्येक माह होता है लाखो खर्च.
नगरपरिषद कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार शहर के सभी वार्डो में मृत पशु को फेंकने को लेकर सिटी मैनेजर नीरज कुमार झा को इसकी पहल करने की जिम्मेदारी दी गयी है. सिटी मैनेजर बताते हैं कि प्रत्येक दिन शहर में कम से कम दो पशु के मरने की सूचना आती है. इसे उठाने के लिए मजदूर को पैसे चाहिए. इस पर हर माह डेढ़ से दो लाख खर्च हो रहे हैं. पशु को शहर से अलग कही खाली जगह पर फेंकने को लेकर हमारे पास में लेबर नहीं है. जिस कारण हम नप में काम कर रहे एनजीओ को इसका काम देते हैं.
तीन प्रकार के दर हैं निर्धारित
उन्होंने बताया कि पशु को फेंकने के लिये नप प्रशासन के बोर्ड से तीन तरह का दर तय किया गया. इसके तहत बड़े पशु यानी गाय, भैंस,घोरा जैसे बड़े पशु को फेंकने के लिये प्रति पशु 3500, उससे छोटे पशु के लिये 1500, और सबसे छोटा पशु यानी बकरी,कुत्ता, बिल्ली, सूअर को फेंकने के लिये 500 रुपये प्रति पशु दिया जाता है.
दरअसल यह रकम मरे हुए पशु को दूर ले जाने व उसे जमीन में गाड़ने में होने वाले खर्च के लिये दिया जाता है. मार्च माह में फरवरी माह का करीब दो लाख रुपये का बिल भुगतान किया गया है. यानी यदि केवल बड़े पशुओं की संख्या लें तो कम से कम 50 से 60 मवेशी फरवरी माह में मरा था. यदि छोटे मवेशी पर खर्चा का ब्योरा दें तो कम से कम 150 छोटे पशुओं की मौत हुई थी.