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नामकुम : कभी सफल किसानों का क्षेत्र था हहाप अब पोस्ते की खेती के लिए बदनाम
आदर्श ग्राम पंचायत हहाप की व्यथा बुनियादी सुविधाएं तो बढ़ी पर किसानों की समस्या यथावत लाह तथा टमाटर की खेती के लिए जाना जानेवाला क्षेत्र नशे के कारोबारियों के चंगुल में नामकुम : कभी टमाटर व लाह की खेती के लिए प्रसिद्ध नामकुम प्रखंड का हहाप पंचायत आज पोस्ता की खेती के कारण बदनाम है. […]
आदर्श ग्राम पंचायत हहाप की व्यथा
बुनियादी सुविधाएं तो बढ़ी पर किसानों की समस्या यथावत
लाह तथा टमाटर की खेती के लिए जाना जानेवाला क्षेत्र नशे के कारोबारियों के चंगुल में
नामकुम : कभी टमाटर व लाह की खेती के लिए प्रसिद्ध नामकुम प्रखंड का हहाप पंचायत आज पोस्ता की खेती के कारण बदनाम है. यहां के किसानों को प्रगतिशील किसानों में गिना जाता था, लेकिन आज वे भी अभाव में जीने को विवश हैं.
2014 में नयी सरकार बनने के बाद जब आदर्श ग्राम योजना के तहत सांसद ने इस पंचायत का चयन किया, तो यहां के लोगों में नयी आस जगी. बुनियादी जरूरतों पर बल देते हुए गांव में सड़कें बनी. बिजली पहुंची. पर किसानों की समस्या जस की तस बनी रही. हहाप से चंद किलोमीटर की दूरी पर स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्र तथा भारतीय प्राकृतिक रॉल एवं गोंद संस्थान से किसानों ने प्रशिक्षण लेकर अपने काम को आगे बढ़ाया पर बाजार नहीं मिलने से उनमें अब भी निराशा का माहौल है.
सरकार द्वारा लाह तथा अन्य वनोत्पाद पर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात कही जाती है पर यहां जमीनी हकीकत कुछ और है. किसान आज भी अपने उत्पाद औने-पौने दाम में बिचौलियों के हाथों बेचने पर विवश हैं. हहाप के हर घर में जहां एक से दो क्विंटल तक लाह की खेती होती है, वे किसान भी अपने उत्पादों की कम कीमत मिलने से गरीबी का दंश झेल रहे हैं. बिचौलिये नकद देकर आधे दाम में ही किसानों से लाह खरीद लेते हैं, जबकि खुद ऊंची कीमत पर बेच कर भारी मुनाफा कमाते हैं.
सरकार द्वारा इस क्षेत्र के लिए अगर कोई कोल्ड स्टोर बनाया जाता, तो किसानों के लिए राहत होती. इन्हीं कमियों व अभाव के कारण अब हहाप व आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अवैध तरीके से पोस्ते की खेती होने लगी है. पुलिस द्वारा लगातार अभियान चलाकर पोस्ते की खेती नष्ट भी की जाती रही है पर समस्या की जड़, जो कि गरीबी है, उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता. किसानों को बहला कर नशे के कारोबारी उनसे पोस्ते की खेती कराते हैं. एक किलो तैयार अफीम के लिए किसानों को एक लाख नकद तक दिया जाता है.
वहीं उसके डंठल भी तीन हजार रुपये किलो की दर से खरीदे जाते हैं. ऐसी स्थिति में किसान लाभ के लिए जोखिम उठाने से भी नहीं कतराते हैं. यह विडंबना ही है कि जिस क्षेत्र को आदर्श बनाने की कोशिश थी आज वहां प्रशासन गैर कानूनी गतिविधियों को बंद करने में परेशान है.
100 एकड़ से अधिक भू खंड पर पोस्ता की खेती नष्ट : इस वर्ष नामकुम पुलिस पोस्ते की अवैध खेती को लेकर 12 लोगों पर प्राथमिकी दर्ज की है. वहीं हाल के दिनों में क्षेत्र में अफीम की तस्करी के संबंध में आठ लोगों पर प्राथमिकी हुई है. इंस्पेक्टर प्रवीण कुमार का कहना है कि इस वर्ष हहाप व राजाउलातु में लगभग 100 एकड़ से अधिक भू खंड में पोस्ता की खेती नष्ट की गयी है.
क्षेत्र को आदर्श बनाने की थी कोशिश, प्रशासन गैर कानूनी गतिविधि बंद करने में परेशान
2015-16 में लाह की थी सबसे ऊंची कीमत
जानकारों की मानें तो सरकार हाट-बाजारों में प्राधिकृत एजेंसियों के माध्यम से लाह का क्रय करती है. पिछले वर्ष करीब 55 मीट्रिक टन लाह क्रय किया गया था. समर्थन मूल्य में परिवर्तन के कारण सरकार जहां 2015-16 में कुसुमी लाह 320 रुपये प्रति किलो की दर से क्रय कर रही थी वहीं इस वर्ष यह घटकर सिर्फ 203 रुपये किलो रह गयी है. इन एजेंसियों तक पहुंचना भी किसानों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. ऐसी स्थिति में ठोस नीति की कमी कई दुष्परिणाम को जन्म दे रही है.
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