निरंजन कुमार, बांका : तपती गर्मी के बीच पूरा जिला भीषण पेयजल संकट से घिर गया है. शहर हो या गांव हर घर में पानी के लिए लोग पानी-पानी हो रहे हैं. इस बीच जिले के कमोबेश सभी आदिवासी गांव में पेयजल संकट ने बड़ा रूप ले लिया है. अलबत्ता, पानी की दरकार में आदिवासी की जिंदगी काफी निराशाजनक हो गयी है.
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चापाकल फेल, कच्चे कुएं का दूषित पानी पीकर कट रही आदिवासियों की जिंदगानी
निरंजन कुमार, बांका : तपती गर्मी के बीच पूरा जिला भीषण पेयजल संकट से घिर गया है. शहर हो या गांव हर घर में पानी के लिए लोग पानी-पानी हो रहे हैं. इस बीच जिले के कमोबेश सभी आदिवासी गांव में पेयजल संकट ने बड़ा रूप ले लिया है. अलबत्ता, पानी की दरकार में आदिवासी […]
बुधवार को फुल्लीडुमर प्रखंड क्षेत्र के भितिया पंचायत अंतर्गत पांच आदिवासी बाहुल्य गांव की पड़ताल की गयी. दरअसल, गर्मी के मौसम में हर वर्ष इन गांवों में पानी के लिए मारामारी होती रहती है. जंगली और पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से यहां ऐसे मौसम में पानी बहुत ही मुश्किल से मिलता है.
चापाकल एक के बाद एक फेल हो चुका है. लोग तालाब, नदी व गड्ढा में जमा हुआ पानी पीने को मजबूर हैं. कई जगह से चुआंड़ी का दूषित पानी पीया जा रहा है. यानि प्यास बुझाने के लिए जिस पानी का उपयोग हो रहा है वह पूरी तरह प्रदूषित है. अलबत्ता, प्यास बुझाने के साथ लोग पानी के जहर रूपी दूषित पानी पीकर बीमार पड़ रहे हैं.
इस बाबत बीडीओ विकास कुमार ने कहा कि पेयजल संकट से इंकार नहीं है. जल्द ही इन गांवों की जांच की जायेगी. साथ ही पेयजल की वैकल्पिक व्यवस्था पर पहल शुरू की जायेगी.
सुबह जगने और सोने के बीच पानी की ही रहती है चिंता
मुख्य रूप से कैथादोल, मोहलीदोल, तेतरकोला, बंदरचुआं, कारीपहड़ी गांव के मुआयना के दौरान इन सभी गांव में सड़क, बिजली से कहीं ज्यादा पानी की ही चिंता दिखी. लिहाजा, सुबह उठने के साथ पानी व सोने तक पानी के बंदोबस्त को लेकर लोग हलकान रहते हैं. पहले बात कैथादोल की करें तो यहां घर-घर सुबह लोग एक चुआंड़ी नुमा कुआं से बाल्टी से पानी भरते दिखे.
इसमें बच्ची व महिलाओं की संख्या अधिक थी. जिस गड्ढे से पानी भरा जा रहा था, वह जोखिम भरा था. यानि पैर फिसलने के बाद सीधे पानी से अधिक पथरीली गड्ढे में लोग गिर जाय. पानी का रंग देखते ही आम लोगों को डर लग जाता है. यही दूषित पानी भरकर कैथादोल वासी पेयजल, स्नान व खाना बनाने में इस्तेमाल करते हैं.
पानी का रंग एकदम काला था और उसमें कचरा भरा था. मोहलीदोल में एक भी चापाकल नहीं है. महज दो कुआं से पूरा गांव पानी पीता है. कुआं का जलस्तर नीचे सरक गया है. लिहाजा, कभी-कभी कुआं से खाली बाल्टी ही निकलती है. तेतरकोला में चापाकल नहीं है. एक कुआं दूर बहियार में पूरी तरह असुरक्षित है.
बंदरचुआं में 40 घर है, इस पर एक महज कुआं है. कुआं का पानी पूरी तरह दूषित है. यानि प्यास बुझाने के चक्कर में लोग बीमार पड़ रहे हैं. कारीपहड़ी में तीन चापाकल खराब पड़ा हुआ है. एक चापाकल है जो घंटे भर में हांफ जाता है. यहां भी पेयजल संकट शीर्ष पर पहुंच चुका है. पांचों गांव जंगली व पहाड़ी क्षेत्र की गोद में बसा हुआ है.
हर घर नल का जल योजना का अब तक नहीं जला अलख
पांचों गांवों के पड़ताल में सरकारी योजना का प्रतिबिंब तक नहीं दिख रहा है. खासकर मुख्यमंत्री सात निश्चय के तहत संचालित हर घर-नल का जल का अलख इन गांवों में अबतक नहीं जला है. यहां तक की खराब चापाकल की मरम्मती तक मयस्सर नहीं हो पायी है.
कुआं भी असुरक्षित व गंदगीमय है. कुआं के बूंद-बूंद पानी में बीमारी है. यही नहीं जनप्रतिनिधि से लेकर प्रशासनिक अमला इन गांवों से दूर हैं. अलबत्ता, जैसे-तैसे जिंदगी कट रही है. पेयजल की समस्या यहां नयी नहीं है. जानकारी के मुताबिक, इन इलाकों में सदियों से जल संकट है. आजादी के बाद से अबतक पेयजल संकट को दूर करने के लिए किसी प्रकार की मजबूत पहल नहीं दिखी.
कहते हैं ग्रामीण
आदिवासी ग्रामीण बड़कू मुर्मू, गुरु मरांडी, सिकेंद्र हेम्ब्रम, मुंशी मरांडी, काली राम, श्यामलाल हेम्ब्रम, सहदेव हांसदा, मुचरु मुर्मू, कृष्णदेव मरीक, उमेश मंडल, मुरारी, विष्णु मरांडी के मुताबिक जन्म से ही गर्मी क्या हर मौसम में यहां पेयजल संकट पाया है. कई बार जनप्रतिनिधि व प्रशासनिक अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से आवेदन दिया गया, परंतु रत्ती भर पहल नहीं हुई. चापाकल फेल है. लिहाजा, ग्रामीण चुआंड़ी व कुआं का दूषित पानी पीने को मजबूर हैं. यही नहीं दूषित पानी की वजह से ग्रामीण गंभीर बीमारी की भी चपेट में हैं. खास परेशानी बच्चों को उठानी पड़ रही है.
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