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भारत के पांचवें प्रधानमंत्री : जिसे जेल भेजना चाहते थे, उसके ही समर्थन से पीएम बने चरण सिंह

चौधरी चरण सिंह एक माह बाद ही गिर गयी थी सरकार बात वर्ष 1977 की है. इमरजेंसी के बाद हुए आम चुनाव में जनता गठबंधन की ओर से चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे, लेकिन जगजीवन राम के पीएम बनने की संभावनाओं के चलते उन्होंने अपनी दावेदारी वापस ले ली और मोरारजी देसाई […]

चौधरी चरण सिंह
एक माह बाद ही गिर गयी थी सरकार
बात वर्ष 1977 की है. इमरजेंसी के बाद हुए आम चुनाव में जनता गठबंधन की ओर से चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे, लेकिन जगजीवन राम के पीएम बनने की संभावनाओं के चलते उन्होंने अपनी दावेदारी वापस ले ली और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बन गये. चरण सिंह और जगजीवन राम उप प्रधानमंत्री बने.
जगजीवन राम को रक्षा मंत्रालय और चरण सिंह को गृह मंत्रालय मिला, लेकिन तीनों नेताओं में खींचतान के चलते मोरारजी की सरकार गिर गयी. इसके बाद चरण सिंह ने जो कदम उठाया, उसकी हर तरफ आलोचना हुई. चरण सिंह 28 जुलाई, 1979 को समाजवादी पार्टियों और कांग्रेस के समर्थन से भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने थे. शपथ लेने के ठीक एक महीने बाद कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया. चरण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा. इसके कुछ ही दिनों में लोकसभा भंग हो गयी और मध्यावधि चुनाव का एलान हो गया.
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में लिखा है, ‘इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने के पीछे जनता खेमे में आपसी खींचतान काम कर रही थी. गृहमंत्री चरण सिंह मोरारजी के कैबिनेट में नंबर दो की हैसियत से काम करने को तैयार नहीं थे. वह खुद इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करके राजनीति का केंद्र विंदु बनना चाहते थे,’ लेकिन इंदिरा के समर्थन से ही वह पीएम बन पाये.

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