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चालीसा का पुण्यकाल- 37 : ईश्वर की अनुपम कृति है इनसान
किसी राज्य में एक कुरूप व्यक्ति था, जिसे लोग मनहूस कहते थे. लोगों में उसके बारे में यह धारणा थी कि जो सुबह के समय उसका मुंह देख लेता, उसका पूरा दिन खराब जाता था. वहां के राजा ने सोचा कि क्यों न इस बात की परीक्षा ली जाये़ राजा ने उसे राजमहल बुलाया. अगले […]
किसी राज्य में एक कुरूप व्यक्ति था, जिसे लोग मनहूस कहते थे. लोगों में उसके बारे में यह धारणा थी कि जो सुबह के समय उसका मुंह देख लेता, उसका पूरा दिन खराब जाता था. वहां के राजा ने सोचा कि क्यों न इस बात की परीक्षा ली जाये़ राजा ने उसे राजमहल बुलाया.
अगले दिन राजा उठा, तो सबसे पहले उसने उस व्यक्ति के कमरे में जाकर उसका चेहरा देखा़ उस दिन राजा पूरे दिन कामकाज में इस तरह उलझा रहा कि दोपहर तक खाना खाने की फुर्सत नहीं मिली. जब खाना खाने बैठा और उसने पहला ग्रास तोड़ा ही था कि खबर मिली कि महारानी सीढ़ियाें से गिर गयी हैं. राजा खाना छोड़ कर रानी की खबर लेने भागा.
इस चक्कर में रात हो गयी. रात को जब राजा को फुर्सत मिली तो उसे लगा कि लोग ठीक ही कहते हैं कि उस व्यक्ति का चेहरा देख लेने वाले को पूरे दिन खाना तक नसीब नहीं होता. उसने फौरन हुक्म दिया कि अगली सुबह उस व्यक्ति को फांसी पर लटका दिया जाये. अगले दिन उसे फांसी दिये जाने से पहले राजा ने पूछा- तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है? वह व्यक्ति सूझबूझ वाला था. उसने राजा से कहा कि सारी प्रजा में यह एलान कर दिया जाये कि उससे भी ज्यादा मनहूस राजा हैं, क्योंकि उसकी सूरत देखने वाले को सिर्फ खाना नसीब नहीं होता, पर राजा की सूरत देखने वाले को तो सीधे फांसी पर लटकाया दिया जाता है. यह सुन कर राजा चौंक गया़
उसे याद राजा ने उसे रिहा करने का आदेश दिया. इनसान ईश्वर की सबसे श्रेष्ठ रचना है. उनके द्वारा बनाया गया कोई इनसान मनहूस नहीं हो सकता.
– फादर अशोक कुजूर, डॉन बॉस्को यूथ एंड एजुकेशनल सर्विसेज बरियातू के निदेशक
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