वॉशिंगटन : हाल के वर्षों में घरेलू मांग के चलते भारत की आर्थिक वृद्धि ‘बहुत अधिक’ रही. इस दौरान, भारत निर्यात के मोर्चे पर थोड़ा कमजोर रहा और उसने अपनी क्षमता का सिर्फ एक तिहाई निर्यात किया. विश्व बैंक के एक अधिकारी ने यह बात कही. अधिकारी ने जोर दिया कि अगली सरकार को निर्यात आधारित वृद्धि पर ध्यान देने की जरूरत है.
विश्व बैंक के दक्षिण एशिया क्षेत्र के लिए मुख्य अर्थशास्त्री हंस टिमर ने भारत के अंदर बाजारों को उदार बनाने के लिए किये गये प्रयासों की प्रशंसा करते हुए कहा कि बाजारों को और ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाने की आवश्यकता है. टिमर ने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में आपने देखा कि चालू खाते का घाटा बढ़ा है. यह संकेत देता है कि गैर-कारोबारी क्षेत्र यानी घरेलू क्षेत्र में तेजी से वृद्धि हुई है. इसने निर्यात और मुश्किल बनाया है.’
उन्होंने कहा कि पिछले पांच साल में भारत की वृद्धि ‘काफी हद तक’ घरेलू मांग पर आधारित रही. इसके चलते निर्यात में दहाई अंक में तेजी आयी और निर्यात में 4 से 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई. टिमर ने कहा कि हाल के महीनों में चीजें कुछ हद तक बदली हैं, लेकिन अगर आप व्यापक स्तर पर देखें, तो चीजें नकारात्मक ही रही हैं.
विश्व बैंक के अधिकारी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि अगली सरकार का ध्यान घरेलू मांग में तेजी को कम करने पर होना चाहिए. टिमर ने कहा, ‘…देश को निर्यात आधारित वृद्धि पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यही वह जगह है, जहां आप अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा करते हुए उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं. आप प्रतिद्वंद्वियों और विदेशी ग्राहकों के साथ बातचीत करके जानकारी बढ़ा सकते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘भारत अपनी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का सिर्फ 10 प्रतिशत निर्यात करता है. उन्हें जीडीपी के 30 प्रतिशत तक निर्यात करना चाहिए. भारत एक बड़ा देश है, आमतौर पर एक बड़ा देश जीडीपी प्रतिशत के हिसाब से उतना निर्यात नहीं करता है, जितना छोटे देश करते हैं. छोटे देश के बाजार ज्यादा खुले होते हैं.’
उनके मुताबिक, भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव क्षेत्र में व्यापार और आर्थिक वृद्धि के लिए दिक्कतें खड़ी करेगा. टिमर ने दक्षिण एशिया पर विश्व बैंक की ताजी रिपोर्ट पर कहा कि दक्षिण एशियाई देश के आर्थिक प्रदर्शन में कमजोरी की वजह अपनी ही अर्थव्यवस्था के बुनियादी मुद्दों से जूझना है. ये उन्हें अधिक निर्यात आधारित देश बनाने से रोकता है.
अधिकारी ने दक्षिण एशियाई देशों को व्यापार का उदारीकरण, श्रम बाजार को लचीला बनाने, औपचारिक और अनौपचारिक अर्थव्यस्था के बीच बड़ी-बड़ी समस्याओं को दूर करने की कोशिश करने जैसे कदम उठाने का सुझाव दिया है. उन्होंने कहा कि दक्षिण एशियाई देशों को चीन से सीखने की जरूरत है. चीन दक्षिण एशिया के लिए ‘बड़ा अवसर’ पैदा करने वाला है.
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