कंचन
गया : गया संसदीय क्षेत्र का तीन बार प्रतिनिधित्व कर चुके भूतपूर्व सांसद स्व ईश्वर चाैधरी के पास न तो अपनी काेई गाड़ी थी आैर ना ही कभी सुरक्षा गार्ड रखा.
शायद इसी का नतीजा 1991 के चुनाव प्रचार के दाैरान उन्हें भुगतना पड़ा आैर जीवन गंवा देनी पड़ी. जब भी पार्टी के लाेग उन्हें सलाह देते या प्रशासन के उच्च पदाें पर बैठे लाेग सुरक्षा गार्ड लेने की बात कहते ताे यह कहकर टाल जाते कि वह जिस जाति (पासी) से आते हैं, जाति का नाम लेकर कहते कि ‘कउन मारतई, केकर का बिगाड़ ली हे…’ सादगी ऐसी कि काेई कहीं बुला ले, खेत, खलिहान से लेकर चाैकी-चूल्हे तक जाकर उम्र के हिसाब से जाे जैसे रिश्ते के समान हाे, दादा, चाचा, चाची, भैया कहकर पैर छूकर प्रणाम कर लेते थे.
किसी से काेई परहेज नहीं. उनकी सादगी का मिसाल अन्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी के नेता व लाेग भी देते थे. अब भी इस इलाके में यहां के लोग उनकी सादगी की चर्चा करते हैं. लोग कहते हैं कि वे अदभुत थे.
चुनाव में जनसंघ ने झोंक दी थी ताकत
ईश्वर चाैधरी पहली बार 1971 में जनसंघ के उम्मीदवार के तौर पर विजयी हुए थे. चौधरी 1991 में चुनाव लड़ने को तैयार नहीं थे, क्योंकि वे राजनीतिक व्यवस्था में ‘फिट’ नहीं पा रहे थे. लेकिन पार्टी के दबाव में मैदान में उतरे थे. 1971 में जनसंघ ने ताकत झोंक दी थी. बिहार में जनसंघ काे दो सीटें हाथ लगी थीं, जिसमें एक सीट गया संसदीय क्षेत्र की थी. यहां से विजयी हुए थे ईश्वर चौधरी.
काेंच के कठाैतिया के पास कर दी गयी थी हत्या
1991 में देश में मध्यावधि चुनाव होने लगा. ये वो दौर था जब मध्य बिहार नक्सल आंदोलन का गढ़ बन चुका था. हत्याएं आम बात हो गयी थीं.
चाैधरी जी 15 मई, 1991 काे चुनाव प्रचार के दाैरान अपनी जीप से काेंच के कठाैतिया गांव के समीप से गुजर रहे थे, जैसे ही शाैच के लिए वाहन से उतरे कि गाेलियाें की तड़तड़ाहट के बीच उनकी लाश बिछ गयी. उनकी अंतिम यात्रा में तब के डीएम ने बताया था कि आठ लाख लाेग शरीक हुए थे. तब के ‘डाेमराजा’ ने कहा कि अपने जीवन में कितने का अंतिम संस्कार कराया, यहां तक कि टिकारी महाराज का भी, पर ऐसी भीड़ पहली बार देखी.