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आलू की कम कीमत से किसान मायूस, किसान अब आलू की खेती कर पछता रहे

कटिहार : इसे विडंबना कहिए या कुछ और लेकिन किसानों पर आफत की मार कम होती नहीं दिख रही है. किसानों की हजारों हेक्टेयर में लगी आलू की फसल ओने पोने भाव में बिक रही है और हरी सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं. परवल 80 से 100 किलो, भिंडी 60 प्रति किलो, कटहल […]

कटिहार : इसे विडंबना कहिए या कुछ और लेकिन किसानों पर आफत की मार कम होती नहीं दिख रही है. किसानों की हजारों हेक्टेयर में लगी आलू की फसल ओने पोने भाव में बिक रही है और हरी सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं. परवल 80 से 100 किलो, भिंडी 60 प्रति किलो, कटहल 80 प्रति किलो और कद्दू 25 से 30 पीस तक बिक रहा है. आलू उत्पादक किसानों के चेहरे पर मायूसी छाई हुई है.

जिले के बहुत सारे किसानों ने बाजार रेट में सुधार की उम्मीद में अभी तक अपने खेतों से आलू नहीं निकाला है. अभी उम्दा किस्म की कोशिका आलू पांच एवं पुखराज वैरायटी की कीमत चार है. किसानों की समस्या यह है कि किस रेट पर आलू बेचने से किसानों को मुनाफा मिलना तो दूर उनकी लागत वसूली पर भी आफत है.
महंगे कंपोस्ट बीज खाद सिंचाई मानव श्रम एवं कीटनाशकों पर लगी राशि से किसान पहले से ही कर्ज में डूबे हैं. उस पर सही कीमत नहीं मिलने से उनके सामने समस्या विकराल हो गई है. औसतन प्रति एकड़ आलू की फसल में शुरू से लेकर आखिर तक उत्पादन लागत 50 हजार या इससे ज्यादा है. ऐसे में उत्पादन लागत की वसूली किसानों के लिए फिलवक्त टेढ़ी खीर है.
स्टोरेज में भी है जोखिम
आलू उत्पादक किसानों के लिए जिले के शीत गृहों में स्टोर का विकल्प तो है. लेकिन यह व्यवहारिक नहीं है. इसका कारण यह है कि आलू उत्पादन से जुड़े हुए किसानों में लघु एवं सीमांत किसानों की एक बड़ी तादाद है. ऐसे किसान खाद बीज विक्रेताओं से लेकर स्थानीय महाजनों एवं इसके अलावा कुछेक बैंकों से केसीसी ऋण लेकर आलू की खेती करते हैं.
फसल उत्पादन के तुरंत बाद इसे बेचकर वे कर्ज़ चुकाते हैं. सर पर कर्ज अदायगी की तलवार लड़की होने की वजह से किसानों के लिए उत्पादित आलू को तत्काल बाजार भाव के हिसाब से बेचने की मजबूरी होती है. दूसरे शीतगृहों में उन्हें प्रति क्विंटल के हिसाब से स्टोरेज चार्ज चुकता करना पड़ता है. किसानों से प्राप्त जानकारी के अनुसार स्टोरेज में आलू रखने में 250 से 300 प्रति क्विंटल का खर्चा आता है.
स्टोरेज के कुछ एक महीनों सही मूल्य नहीं मिलने के कारण किसानों को घाटा ही उठाना पड़ता है. पिछले कुछ सालों के रिकॉर्ड को देखें तो कई कई बार बाजार मूल्य में गिरावट के कारण किसानों को या तो स्टोर रेंट देने तक के लाले खड़े हैं. कई बार ऐसा भी हुआ है कि किसान स्टोरेज में ही आलू छोड़ देने पर विवश हैं.

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