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ये हैं राजनीतिक पति-पत्नी की जोड़ी, पति की विरासत को पत्नी ने राजनीति में भी संभाला

सुनील चौधरी रांची : शादी के सात वचन निभाने के लिए राजनीति के मैदान में भी पति और पत्नी एक-दूसरे का पूरक बन कर साथ आते हैं. चाहे पति पर कोई मुसीबत आता हो पत्नी साथ देती है और पत्नी की मुसीबत में पति उनका साथ देते हैं. झारखंड के लोकसभा चुनाव में कई बार […]

सुनील चौधरी
रांची : शादी के सात वचन निभाने के लिए राजनीति के मैदान में भी पति और पत्नी एक-दूसरे का पूरक बन कर साथ आते हैं. चाहे पति पर कोई मुसीबत आता हो पत्नी साथ देती है और पत्नी की मुसीबत में पति उनका साथ देते हैं. झारखंड के लोकसभा चुनाव में कई बार ऐसा मौका आया है, जब किसी कारण से पति चुनाव नहीं लड़ पायें, तो उनकी जगह पत्नी ने मोर्चा संभाला और चुनाव लड़ा. जीत भी दर्ज की. कई बार ऐसा भी हुआ है कि पति के देहांत के बाद पत्नी चुनाव लड़ी और जीती भी. यानी पति की राजनीतिक विरासत को संभालती रही.
झारखंड में हजारीबाग और चतरा संसदीय सीट पर भी विरासत संभालने की परंपरा बहुत पहले शुरू हुई थी. फिर लोहरदगा, जमशेदपुर, प. सिंहभूम, दुमका ऐसी सीट हैं, जहां पतियों के लिए पत्नियां आगे आयीं और चुनाव के मैदान में उतरीं. कुछ ने जीत भी हासिल की और कुछ ने हार का सामना किया.
इस कड़ी में सबसे पहला नाम आता है रामगढ़ राज परिवार की विजय राजे का. विजय राजे कुंवर बसंत नारायण सिंह की पत्नी थीं. वह 1967 में चतरा संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीती थीं. उनके पति भी हजारीबाग के सांसद रह चुके हैं.
इस कड़ी में दूसरा नाम आता है कभी झारखंड के कद्दावर नेता और केंद्र में मंत्री रहे स्व. कार्तिक उरांव का. लोहरदगा सीट से वह सांसद थे. पर उनके निधन के बाद उनकी पत्नी सुमति उरांव 1980 में लोहरदगा सीट से चुनाव लड़ी और बड़े अंतर से जीत भी दर्ज की थी. कार्तिक उरांव व सुमति उरांव की पुत्री गीताश्री उरांव भी विधायक रह चुकी हैं. उनके दामाद भी अरुण उरांव भी कांग्रेस पार्टी की सक्रिय राजनीति में हैं.
सांसद रिश्वत कांड में नाम आने के बाद आभा ने संभाला मोर्चा : जमशेदपुर सीट से झारखंड मुक्ति मोरचा के कद्दावर नेता शैलेंद्र महतो को माना जाता था. सबसे पहले उन्होंने 1989 में झामुमो के टिकट पर चुनाव जीता था. फिर 1991 में हुए चुनाव में भी उन्होंने झामुमो की टिकट पर चुनाव जीता. इस दौरान सांसद रिश्वत कांड का मामला उठा.
इस विवाद में शैलेंद्र महतो का नाम भी उछला. इसके बाद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा और पत्नी को आगे कर दिया. 1998 में उनकी पत्नी आभा महतो ने भाजपा से टिकट हासिल की और चुनाव जीती. फिर 1999 में हुए चुनाव में भी उन्होंने जीत दर्ज की.
जमशेदपुर सीट पर ही वर्ष 2004 में झामुमो के सुनील महतो ने जीत दर्ज की. चार मार्च 2007 को नक्सलियों ने एक सभा में उनकी हत्या कर दी. इसके बाद इसी सीट पर हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी सुमन महतो ने झामुमो के टिकट पर जीत दर्ज की.
कोड़ा के बाद गीता कोड़ा : प.सिंहभूम सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत भी दर्ज की. इस दौरान कोल गेट कांड की जांच में मधु कोड़ा का नाम आया. दिल्ली के कोर्ट से उन्हें सजा हो गयी. जिसके कारण 2014 में उनकी जगह उनकी पत्नी गीता कोड़ा चुनाव लड़ी. हालांकि लोकसभा का चुनाव वह जीत नहीं सकी और भाजपा के लक्ष्मण गिलुवा वहां चुनाव जीते.
इसी वर्ष झारखंड विधानसभा के लिए हुए चुनाव में गीता कोड़ा जगरनाथपुर विधानसभा सीट से विधायक बनीं. शिबू की पत्नी रूपी भी लड़ चुकी हैं चुनाव : वर्ष 1998 में शिबू सोरेन को हरा कर भाजपा के बाबूलाल मरांडी ने जीत दर्ज की थी. फिर 1999 में हुए चुनाव बाबूलाल मरांडी दोबारा जीते. पर इस बार शिबू सोरेन रिश्वत कांड को लेकर जेल में थे. इस कारण शिबू सोरेन ने चुनाव नहीं लड़ा, बल्कि उनकी पत्नी रूपी सोरेन वहां से चुनाव लड़ी. हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
ये हैं राजनीतिक पति-पत्नी की जोड़ी
विजयराजे-बसंत नारायण सिंह(हजारीबाग-चतरा)
गीता कोड़ा-मधु कोड़ा(प. सिंहभूम)
सुमन महतो-सुनील महतो(जमशेदपुर)
आभा महतो-शैलेंद्र महतो(जमशेदपुर)
सुमति उरांव-कार्तिक उरांव(लोहरदगा)
रूपी सोरेन-शिबू सोरेन(दुमका)

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