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लॉकडाउन का सबक : यह वक्त है मिलकर दूर रहने और जागरूकता से दिशानिर्देशों के पालन करने का

जिस देश में कुछ महीनों पहले तक सहिष्णुता, पाटीदारों के हक़, एनसीआर और आर्टिकल 370 और निषादबाग की चर्चाएं मुखर थीं, वहां की जनता अब नए-नए टर्म्स सीख और अभ्यास कर रही हैं-क्वारेंटाइन, सोशल डिस्टेंसिंग,लॉकडाउन, हॉटस्पॉट, जीरो विक्टिम, सैनिटाइजिंग, हैंडवॉशिंग, फेस मास्क, जमाती और न जाने क्या क्या.

जिस देश में कुछ महीनों पहले तक सहिष्णुता, पाटीदारों के हक़, एनसीआर और आर्टिकल 370 और निषादबाग की चर्चाएं मुखर थीं, वहां की जनता अब नए-नए टर्म्स सीख और अभ्यास कर रही हैं-क्वारेंटाइन, सोशल डिस्टेंसिंग,लॉकडाउन, हॉटस्पॉट, जीरो विक्टिम, सैनिटाइजिंग, हैंडवॉशिंग, फेस मास्क, जमाती और न जाने क्या क्या! कुछ प्रवीण मित्र मेरे तो मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और क्वारेंटाइन की हिंदी भी खोज रहे हैं ”कुमार साहब के कवि सम्मलेन में काम आएगा” कहा उन्होंने! ये क्या हो गया एकाएक धरती को? कहां आकर थम गया है मनुष्य? एक बारगी यकीं नहीं होता कि आज भी दुनिया उसी धुरी पर पहले जैसी रफ़्तार में ही चक्रमण कर रही है!

मात्र कुछेक महीने पहले ही चीन के वुहान शहर से प्रकट होकर ये जो अदृश्य काला जादू अपना तिलिस्म विश्व में फैलाना शुरू किया, तो थमने का जैसे नाम ही नहीं ले रहा! देखते ही देखते पूरा विश्व आज इस महामारी से संक्रमित हो चुका है. किसी क्विज में पूछा जाए कि वे कौन से देश हैं, जहां अभी तक कोरोना माता की साया नहीं पड़ी है, तो जानते हैं जवाब क्या होगा? विश्व के 195 देशों में से केवल 17 देशों में यह महामारी अभी तक अपने पैर पसार नहीं पाए हैं. ये देश हैं, बुरुंडी, कोमोरोस, नार्थ कोरिया, माइक्रोनेशिया, किरबाती, मालवा, नॉरू, यमन, कीटस एंड नेविस सामोआ, सिएरा लीओन, प्रिन्सिपे, ताजीकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, तुवालु, वानातू और वेस्टर्न शहर. सिर्फ इन 17 भाग्यवान देशों को छोड़कर कोरोना का कहर बाकी के देशों पर इस कदर पड़ा है कि आज की तारीख में कुल 23,58,360 लोग इस महामारी से पीड़ित हो चुके हैं, जिनमें से 1,61,904 लोगों की दुखद मृत्यु हो चुकी है.

हमारे पुराणों के अनुसार, जब महाभारत के युद्ध के बाद धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती दावानल की लौ में देह त्याग देते हैं और श्रीकृष्ण अपने बैकुंठ धाम को चल देते हैं, तब से ही शुरू हो गया था कलियुग. इस कलियुग के अंत को लेकर कई भविष्यवाणियां हुईं और कई बार माया कैलेंडर की माया भी चर्चाओं में रही, परंतु मौजूदा समय में क्या कलियुग के अंत होने की बात करना प्रासंगिक नहीं होगा? क्यों नहीं होगा? ये, जो समाज की बंदिशें, जाति, संप्रदाय और वर्ण भाषा की छोटी बड़ी दीवारें, अपनों से अपनों की छल-कपट और रिश्तों की कालाबाजारी की कुशल कलाएं हमने ईजाद की थीं, अपने आप को ‘सृष्टि-श्रेष्ठ’ की उपाधि से महिमामंडित करने के लिए, आज एक अदृश्य कोरोना ने सारे शूरवीरों की औकात आंक ही दी!

वैसे तो यह एक वैश्विक आपदा है. पूरा जगत इससे त्राहिमाम कर रहा है, लेकिन क्या ये हमारे लिए आज एक एसिड टेस्ट भी नहीं है? संसार की बड़ी से बड़ी ताकत मसलन, अमेरिका, इंग्लैंड, इटली, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, जापान, रूस, चीन, भारत आज बड़ी-बड़ी मिसाइलों और सुपर कंप्यूटरों के दंभ लिये इस कालजयी विपदा के आगे क्या किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े नहीं हैं!

मनुष्य को मनुष्य पर विश्वास नहीं हो रहा, रिश्ते सब केमिकल हो गए हैं और अनुभूतियां सब काफूर-कस्तूरी हो गयीं हैं. बेटा वृद्ध बाप को छोड़कर अस्पताल से भाग रहा है, तो लॉकडाउन के बावजूद 1500 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके अपनी मां से मिलने आया युवक को बंद दरवाजे का सामना करना पड़ता है, जब मां खुद ही पुलिस को बुला लेती है. टूटकर प्यार करने वाला पति, पिता आज अपनी पत्नी और बेटा-बेटी से दूर हो गया है. है तो सिर्फ आसमान भर का भय. अस्पताल में सेवा दे रही नर्स मां का तो हाल ही क्या पूछना? उसे तो जैसे सात जन्मों के पाप का बोझ एक ही बार में झेलने को मिल गया हो. रोती-बिलखती दूर खड़ी बिटिया को बांहों में भरकर सुकून देने वाली मां के हाथ आज किस कदर बेबस है. उनका कोमल हृदय आज किस कदर मर-मर के जीने की जद्दोजहद कर रहा है. उसे आज वो कुदरती हक़ नहीं कि वो अपनी बेटी, अपने बच्चों को अंक में लेकर पुचकारे और उनके कपोल चूमकर उन्हें अहसास दिलाये कि वे अपनी मां की गोद में सुरक्षित हैं. अरे, वो मां ही आज इस अदृश्य पिसाच की साया से आतंकित हैं.

यदि चीन से गिनती शुरू की जाए, तो आज तक़रीबन चार महीने हो गए कोरोना वायरस के आतंक को दुनिया में अपनी पाश फैलाते हुए. इस बीच सभी देश एक ही फॉर्मूला अपना रहा है, कमोबेश तब्दीली के साथ और वो है लॉकडाउन. मतलब सब कुछ बंद करके घर बैठ जाओ. देश की सरकार यदि समर्थ है, तो गरीब मजबूर लोगों के लिए पालनहार का काम कर रही है, पर कब तक? आखिर अमेरिका, इटली, स्पेन आदि विकसित देश ने अपनी पुरजोर कोशिश कर ली और अपने सारे वर्ल्ड क्लास संसाधन झोंक दिए, फिर भी आज एक ही दिन में अमेरिका में 646 लोगों की, स्पेन में 410 लोगों की, ब्रिटेन में 596 लोगों की तो बेल्जियम में 230 लोगों की मौतें हो गयीं. मात्र एक ही दिन में इतनी सारी मौत जैसे किसी कसाई की दुकान में कितने मुर्गे कटे की गिनती हो रही हो.

अत्याधुनिक ज्ञान भंडार के धनी वैज्ञानिक और उनके प्रतिस्पर्धी व्हाट्सअप स्कॉलर्स तो दिन रात लगे पड़े हैं कि कोई तो कारगर दवा निकले इस बीमारी की, जिससे बच जाए ये वसुंधरा. हां, तो इन सभी का मानना है कि किसी भी देश में ये जो कोरोना बला है, ये 3 महीने से ज्यादा नहीं रहा है. यानी कि हमारे देश से भी अब शायद ये जाने वाला है. अच्छा ही है, जितनी जल्दी चला जाए उतनी ही जल्दी हम घरों से आजाद हो पाएंगे. कितना विरोधाभास है, नहीं? हैं तो हम सब अपने अपने घरो में ही और अपनों के साथ ही, लेकिन फिर भी हैं कैद. नित नए तरीके से सोचते हैं और अपने अपने भगवान से मनाते हैं कि हम जल्द से जल्द आज़ाद हो जाएं.

यहीं से शुरू होती है कोरोना से आगे की दुनिया का सैर. क्या हमें लगता है कि हम फिर से पहले की तरह वाकई आज़ाद और निर्भीक होकर घूम फिर पाएंगे? क्या हम फिर कभी भी दिल से दिल लगाकर गले मिल पाएंगे? क्या हमारे बच्चे उतने ही सालीन तरीके से सबके साथ खेल के मैदान में कंधे से कंधा मिलाकर फुटबॉल और वॉलीबॉल और कब्बड्डी खेल पाएंगे? क्या फिर से हम अपने प्रेमी का हाथ पकड़कर पार्क की खुली हवा में टहल पाएंगे? क्या हमारे घर फिर से मेहमान मिलने आएंगे? और क्या आएंगे भी, तो हम उनका उतनी ही गर्मजोशी से स्वागत कर सकेंगे? क्या फिर कभी हम अपने मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरद्वारे जाकर शिद्दत से इबादत कर पाएंगे? क्या सर्दी-जुकाम खांसी से पीड़ित घर के किसी भी सदस्य को हम धिक्कारना कभी भी बंद कर पाएंगे? क्या स्वीगी और जोमैटो से हम उतने ही खुले मन से निस्संकोच खाना मंगा कर खा और बच्चों को खिला पाएंगे? क्या कभी हम अपने घरों में सैनिटाइजिंग लिक्विड रखना बंद करेंगे? क्या शॉपिंग मॉल में हम फिर से घूमने जाएंगे या सिनेमा भी देखेंगे? क्या अत्यधिक पैसों की खुजली मिटाने के लिए हम फिर विदेश यात्रा पर सपरिवार निकलेंगे? क्या राजनेता फिर से धरने पर बैठेंगे?

आज की तारीख में दुनिया का जो सबसे बुद्धिमान डॉक्टर होगा, वो भी इन यक्ष प्रश्नों के उत्तर में ‘हाँ जी हाँ’ नहीं बोल पाएगा. जब ख्यालों में हमेशा मौत की विभीषिका तैरती हो, तब कोई भविष्य के बारे में क्या बताये. कितना मजबूर हो गया है मनुष्य आज. कितने सपने, कितने अरमान, कितनी योजनाएं और कितनी भविष्य निधि की प्लानिंग. सब कुछ जैसे आज बेमानी हो गया.

इस सवा सौ करोड़ आबादी वाले देश में आज बेरोजगार जनता का प्रतिशतता है 5.4 फीसदी, जो की किसी विकासशील देश के लिए अवश्य ही चिंता की बात है. असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों की यदि बात करें, तो वो हैं 49.2 फीसदी, जो देश की अर्थव्यवस्था को एक बहुत बड़े धड़ से सपोर्ट देता है. देश के कुल बच्चों में से 95 फीसदी बच्चे स्कूल जाते हैं. एक हाल-फिलहाल के वर्ल्ड बैंक सर्वे से मालूम होता है. ऐसे में सोचने वाली बात ये है कि इतने बड़े असंगठित क्षेत्र को कब तक लॉकडाउन में रोक सकते हैं? जिस देश में सत्ताधारी प्रत्येक सरकार या तो अपने आपको बैकुंठ मोहन समझती है या शक्तिमान या तो मूर्तियां बनाती है या सपने दिती है, उस देश में कब तक लॉकडाउन की स्थिति बरकरार रह सकती है? लाखों-करोड़ों ऐसे लोग हैं हमारे देश में, जिन्हें पता नहीं होता कि उन्हें आज क्या काम मिलेगा और उनकी कितनी आमदनी होगी? ऐसे में सरकारों के पास कौन सा कुबेर का खजाना है, जो कभी खाली नहीं होगा इन्हें खाना मुहैया कराते-कराते?

कोरोना से यदि कुछ सकारात्मक परिवर्तन आया है हमारे समाज में, तो शायद वो यही की हम संबंधों को बहुत पास से समझ पाए, जिंदगी की अंधी दौड़ में हम पागल हुए जा रहे थे, बाप को बेटे से और बेटे को बाप से मिलने की फुर्सत नहीं थी, मम्मी को पूछने वाला कोई नहीं, दादा-दादी तो जैसे घर में पड़े हुए पुराने आसबाब थे. ये सब लोग जैसे पुनः प्राण सिंचित होकर प्रगाढ़ रिश्ते में बध गए घरो में कैद रहते हुए. क्या उनके अंदर नए सिरे से जन्मे इस प्यार को, इस भरोसे को वो अब भुला पाएंगे? परिवार में जैसे जीवन लौट आया है. जो केवल कुछ कमरों का समूह हुआ करता था कभी, वो अब घर कहलाने लगा है.

प्रकृति अपने आप को आज पुनः परिस्कृत कर रही है. मानव मूल्यों का जो बेइंतहां पतन हो चला था वो रुक गया है. अश्लीलता और आधुनिकता की बयार में संबंधों की सुंदरता जिस कदर घर्षित हो रही थी, उसमें एकदम से रुकावट लग गया है, उन्मत्त युवाओं पर तथाकथित इक्कीसवीं सदी के अल्हड़ आडंबर का जो पारा चढ़ा हुआ था, वो रुक गया. बेवजह गले मिलना और होठ से होंठ और गाल से गाल बजाकर जाम की प्याली हाथों में लेकर अपने आप को सफलता की पराकाष्ठा पर देख बेवजह खुश होता आज का मानव संभल गया है और संभ्रांत दूरी बनाकर अदब से नमस्कार कर एक दूसरे के प्रति हृदय से बेझिझक श्रद्धा सम्मान व्यक्त कर रहा है. वाह रे कोरोना वाह!

एक क्रांति और आयी है. जिन्हें आज तक स्कूलों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, आज वो ही स्कूल चला रहे हैं. हां जी हां, मोबाइल फ़ोन्स, टेबलेट्स, लैपटॉप्स पर पापा का ऑफिस और बच्चों के स्कूल्य बदस्तूर चल रहे हैं. आने वाले लम्बे समय तक स्कूलों को कोरोना वायरस के प्रभाव से बचाने के लिए इन्हें बंद ही रखेगी देश की सरकारें. ऐसे में ऑनलाइन एजुकेशन ही एकमात्र रास्ता रह जाता है. यह अपने आप में एक क्रांति है. आज गांव देहात में रहने वाला प्राइमरी स्कूल का बच्चा हो या शहर के किसी कान्वेंट स्कूल का बच्चा, हर कोई अपनी पढाई ऑनलाइन ही कर रहा है. क्या अब इस दूरस्थ शिक्षण विधा का कभी भी बहिष्कार कर पायेगा हमारा समाज? क्या इस नाचीज़ मोबाइल फ़ोन को बच्चे का दुश्मन समझेंगे अभिभावक? नहीं. यह देश की शिक्षा प्रणाली के एक युग की शुरुआत है, जिसमें अभी अनेकानेक प्रयोग होने हैं और निकट भविष्य में यह अपने आप में एक मल्टी मिलियन डॉलर इंडस्ट्री बनकर उभरेगा, यह तय है.

संक्रमण के डर भय के कारण एक और क्रांति जो धीरे-धीरे विश्व पटल पर छा रही है, वो है कल तक विज्ञान फंतासी कहा जाने वाला रोबोटिक्स और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का बढ़ता हुआ प्रभाव और धीरे-धीरे मानव जाति पर अपना कायम करता वर्चस्व. कोरोना वायरस इंसान से इंसान में फैलता है. अतः ज्यादातर समृद्ध बड़े उद्योग और प्रतिष्ठान इसी प्रयास में रहेंगे कि जो रूटीन और अकुशल प्रकार के कार्य हों, उन्हें करने के लिए वो रोबोट्स तैनात कर दें, जो सामन्य आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस की मदद से फ्लोर क्लीनिंग, हाजिरी लगाना, गेटों की सुरक्षा करना, प्लांट्स में इंजीनियर को टूल्स उपलब्ध कराना, असेम्बलिंग का काम करना वगैरह-वगैरह सैकड़ों प्रकार के काम बड़ी आसानी से कर ले जाएंगे. इस प्रकार अब शायद हमारे आसपास स्वाभाविक तौर पर मनुष्यों की तरह चलते-फिरते नाना प्रकार के रोबोट्स दिख जाया करेंगे.

आने वाले कल में देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय व्यापार भी बड़े पैमाने पर होता नहीं दिख रहा है. एक तो चीन के प्रति विश्व के बाकी देशो की हेट थ्योरी ऊपर से जब तक कोई कारगर दवा या टीका नहीं बन जाता, तब तक इस वायरस से संक्रमण का भय किसी भी देश को अपनी सीमा से बाहर जाकर व्यापार करने की हिम्मत नहीं देगा. इसका एक बड़ा ही अनुकूल प्रभाव पड़ेगा भारत जैसे विकासशील देशो पर. सरकार की अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीतियां जब बहिर्मुखी न होकर अंतर्मुखी होंगी, तब देश के भीतर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, देशी उत्पादन की वजह से वस्तुओं के मूल्य आसमान न छुएंगे और सबसे बड़ी बात यह कि देश आत्मनिर्भर होगा. तकनीकी शोध होंगे और अंततः हमें अपनी जरूरतों के लिए बाहरी देशों के साथ मिलियन डॉलर्स की संधिया न करनी पड़ेगी.

कोरोना वैश्विक महामारी से आगे की दुनिया इस समय भले ही तिलिस्म प्रतीत हो रही हो, परन्तु उस दुनिया में तीन बातें मुख्य तौर पर जरूर सबको प्रभावित करेंगी- मनुष्य का मनुष्य के साथ जो सहजता है, वो जटिल हो जाएगी. तकनीकी उपकरणों, रोबोट्स और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का बोलबाला बढ़ जाएगा और कोई भी देश अपने यहां की स्वास्थ्य सुविधाओं को सर्वोपरि वरीयता देकर उन्हें और भी संपन्न एवं समृद्ध बनाएगा.

ये समय है धैर्य, आत्ममंथन और अंतर्यात्रा का. हमें देश की वर्तमान परिस्थिति में निहायत जिम्मेदारीपूर्वक अपनी भूमिका अदा करनी चाहिए और एक सच्चे निष्ठावान नागरिक की तरह अपने आसपास के लोगों को, देशवासियों को, जरूरतमंदों को और गैर-जिम्मेदारों को भी कोरोना के भयावह परिणामों के बारे में और इससे बचने के उपायों के संबंध में जारी किए गए सरकारी दिशानिर्देशों के प्रति जागरूक करना चाहिए, ताकि फिर से हम सब मिलकर कह सकें –

शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसंपदा।

शत्रुबुद्धि-विनाशाय दीपज्योती नमोऽस्तुते।।

लेखक परिचय : संदीप मुखर्जी

मुख्य कार्यकारी अधिकारी

सनबीम ग्रुप, वाराणसी

मोबाइल नंबर : 9721452102

मेल ID : pro.official@gmail.com

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