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आओ अपनी भूल सुधारें

कोरोना काल के दौरान घर पर रहने की सलाह देती कविता

आओ अपनी भूल सुधारें

वक्त को पहचानें, सही मार्ग अपना लें।

बहुत हुआ स्वार्थ चिंतन,बहुत हुई नादानी।

यह वक्त नहीं दोषारोपण का

चलो आत्मविश्लेषण कर लें।

आओ अपनी भूल सुधारें

क्षुद्रता त्याग, विशालता अपना लें।

बहुत किया प्रकृति का दोहन,बहुत की मनमानी।

प्रकृति अन्य जीवों की भी है

इस  तथ्य को समझ लें।

आओ अपनी भूल सुधारें

बहुत की स्वार्थ-पूर्ति, बहुत की चाटुकारिता।

हर पीड़ित को पहचानें,मदद का हाथ बढ़ा लें।

यह वक्त नहीं आत्म-केंद्रित होने का

‘चलो वसुधैव कुटुम्बकम् ‘ का भाव अपना लें।

आओ अपनी भूल सुधारें

प्रभु के इशारे को समझें,सद्विचार अपना लें।

नहीं काम आएँगे हथियार, न कामयाब होगा परमाणु बम।

यह वक्त नहीं सामरिक शक्ति प्रदर्शन का

चलो मानवीयता अपना लें।

आओ अपनी भूल सुधारें

विज्ञान-यान की सवारी  को त्यागें

वैज्ञानिक उन्नति की होड़ छोड़।

अपनी संस्कृति का महत्त्व पहचानें

‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ का मंत्र अपना लें।

आओ अपनी भूल सुधारें I

करोना जनित विनाश-लीला के पीछे

नव सृजन के बीज छिपे हैं।

मिट्टी को प्रेम जल से सिंचित कर

नव प्रभात को धरा पर उतारें।

आओ अपनी भूल सुधारें।

कवयित्री- सीमा बेरी

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