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Ganesh Ji Ki Aarti: गणपति उत्सव शुरू, पूजा के दौरान पढ़ें गणेश जी की आरती

Ganesh Chaturthi 2022: गणेश उत्सव की शुरुआत आज से हो रही है. गणेश जी की पूजा का पूर्ण फल पाने के ल‍िए "जय गणेश जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा" आरती गाएं. मान्‍यता है क‍ि इस आरती से आपको व्रत और पूजा का पूर्ण फल मिलता है.

Ganesh Ji Ki Aarti: हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, भगवान गणेश प्रथम पूज्य हैं. किसी भी शुभ कार्य से पहले गणपति बप्पा की विधिवत पूजा और आरती की जाती है. हर पूजा व हवन में सबसे पहले गणपति की पूजा होती है. आज से गणेश उत्सव की शुरुआत हो रही है और आज गणपति बप्पा का विशेष दिन बुधवार भी है. ऐसे में गणेश जी की पूजा विधि पूर्वक करने के साथ ही गणेश जी की आरती भी जरूर करें. आगे पढ़ें “जय गणेश जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा” आरती. मान्‍यता है क‍ि इस आरती से आपको व्रत और पूजा का पूर्ण फल मिलता है.

भगवान गणेश जी की आरती 1

जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥

एक दंत दयावंत,

चार भुजा धारी ।

माथे सिंदूर सोहे,

मूसे की सवारी ॥

जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥

पान चढ़े फल चढ़े,

और चढ़े मेवा ।

लड्डुअन का भोग लगे,

संत करें सेवा ॥

जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥

अंधन को आंख देत,

कोढ़िन को काया ।

बांझन को पुत्र देत,

निर्धन को माया ॥

जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥

‘सूर’ श्याम शरण आए,

सफल कीजे सेवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥

जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥

दीनन की लाज रखो,

शंभु सुतकारी ।

कामना को पूर्ण करो,

जाऊं बलिहारी ॥

जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥

गणेश जी की आरती 2

शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको।
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको।
हाथ लिए गुडलद्दु सांई सुरवरको।
महिमा कहे न जाय लागत हूं पादको ॥1॥


जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥धृ॥
अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि।
विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी।
कोटीसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी।
गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि ॥2॥


जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥
भावभगत से कोई शरणागत आवे।
संतत संपत सबही भरपूर पावे।
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे।


गोसावीनंदन निशिदिन गुन गावे ॥3॥
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥

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