पीएम मोदी डिग्री मामला: हाई कोर्ट ने किया तुरंत सुनवाई से इनकार, पढ़ें पूरी खबर
केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश को डीयू की चुनौती के अलावा कोर्ट अन्य याचिकाओं पर भी सुनवाई कर रही थी जिनमें कुछ परीक्षा परिणामों की जानकारी का खुलासा करने से संबंधित समान कानूनी मुद्दे उठाये गये थे.
दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग के उस आदेश को चुनौती देने वाली दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की याचिका पर पहले सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें विश्वविद्यालय को 1978 में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति देने का निर्देश दिया गया था. उसी वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वहां से स्नातक किया था. जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने मामले में जल्द सुनवाई के एक आवेदन पर डीयू को नोटिस जारी किया और इसे 13 अक्टूबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जिस दिन मुख्य याचिका पर सुनवाई पहले से तय है. हाई कोर्ट ने आयोग के 21 दिसंबर, 2016 के आदेश पर 23 जनवरी, 2017 को रोक लगा दी थी.
मामला अक्टूबर में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध
केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश को डीयू की चुनौती के अलावा कोर्ट अन्य याचिकाओं पर भी सुनवाई कर रही थी जिनमें कुछ परीक्षा परिणामों की जानकारी का खुलासा करने से संबंधित समान कानूनी मुद्दे उठाये गये थे. सूचना के अधिकार कानून के तहत कार्यकर्ता नीरज की याचिका पर सीआईसी का आदेश आया था. आरटीआई के तहत 1978 में डीयू में हुई बीए की परीक्षा में शामिल हुए छात्रों का ब्योरा मांगा गया था. नीरज की ओर से सीनियर अधिवक्ता संजय हेगड़े ने सुनवाई के दौरान कहा कि मामला काफी समय से लंबित है, इसलिए जल्द सुनवाई वांछनीय है. जस्टिस ने कहा, मामला अक्टूबर में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है. मेरी बात लिख लीजिए, यदि मैं रोस्टर में बना रहा तो तब तक मामले का निस्तारण हो जाएगा. कोई कारण नजर नहीं आता कि ऐसा (सुनवाई की तारीफ बदलना) क्यों किया जाए.
आरटीआई प्राधिकार का आदेश मनमाना और कानून के लिहाज से अविचारणीय
सीआईसी के आदेश को चुनौती देते हुए डीयू ने दलील दी कि आरटीआई प्राधिकार का आदेश मनमाना और कानून के लिहाज से अविचारणीय है क्योंकि मांगी गयी जानकारी तीसरे पक्ष की निजी जानकारी है. डीयू ने अपनी याचिका में कहा था कि सीआईसी के लिए याचिकाकर्ता (डीयू) को वह सूचना देने का निर्देश जारी करना पूरी तरह अवैध है जो उसके पास विश्वसनीयता की जिम्मेदारी के नाते उपलब्ध है. उसने कहा कि इसके अलावा सूचना के लिए कोई अत्यावश्यकता या व्यापक जनहित की भी कोई बात नहीं है.
सभी छात्रों का मांगा गया रिकॉर्ड
डीयू ने पहले कोर्ट से कहा था कि सीआईसी के आदेश के याचिकाकर्ता और देश के सभी विश्वविद्यालयों के लिए दूरगामी प्रतिकूल परिणाम होंगे जो विश्वसनीयता की जिम्मेदारी के साथ करोड़ों छात्रों की डिग्री रखते हैं. उसने दावा किया कि आरटीआई कानून को मजाक बना दिया गया है जहां प्रधानमंत्री मोदी समेत 1978 में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों का रिकॉर्ड मांगा गया है. सीआईसी ने अपने आदेश में डीयू से कहा था कि रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति दी जाए. उसने केंद्रीय जन सूचना अधिकारी की इस दलील को खारिज कर दिया था कि यह तीसरे पक्ष की निजी जानकारी है.