सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने आज यानी बुधवार को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने मामले की सुनवाई की. सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं से पूछा की जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने की सिफारिश कौन कर सकता है जब वहां कोई संविधान सभा मौजूद ही नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के मुख्य वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से पूछा कि एक प्रावधान (अनुच्छेद 370) जिसका विशेष रूप से संविधान में एक अस्थायी प्रावधान के रूप में उल्लेख किया गया था वह 1957 में जम्मू कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद स्थायी कैसे हो सकता है.
अनुच्छेद 370 के प्रावधान 3 का हवाला
वहीं, शीर्ष अदालत (Supreme Court) ने अनुच्छेद 370 के प्रावधान 3 का हवाला देते हुए कहा कि इसमे कहा गया है इस अनुच्छेद के पूर्ववर्ती प्रावधानों में कुछ भी होने के बावजूद, राष्ट्रपति सार्वजनिक अधिसूचना की ओर से यह घोषणा कर सकते हैं कि यह अनुच्छेद लागू नहीं होगा या केवल ऐसे अपवादों और संशोधन तथा ऐसी तारीख के साथ लागू होगा जो वह निर्दिष्ट कर सकते हैं. बशर्ते कि राष्ट्रपति द्वारा ऐसी अधिसूचना जारी किए जाने से पहले खंड (2) में निर्दिष्ट राज्य की संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक होगी.
प्रधान न्यायाधीश ने सिब्बल से पूछा क्या होता है जब संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त हो जाता है? किसी भी संविधान सभा का कार्यकाल अनिश्चित नहीं हो सकता है. अनुच्छेद 370 के खंड (3) का प्रावधान राज्य की संविधान सभा की सिफारिश को संदर्भित करता है, और यह कहता है कि राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचना जारी किए जाने से पहले संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक है. लेकिन सवाल यह है कि जब संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा तो क्या होगा?
कपिल सिब्बल ने दिया यह तर्क
सिब्बल ने जवाब में कहा कि यह बिल्कुल उनका बिंदु है और उनका पूरा मामला इस बारे में है कि राष्ट्रपति संविधान सभा की सिफारिश के बिना अनुच्छेद 370 को रद्द करने के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं कर सकते. न्यायमूर्ति गवई ने हस्तक्षेप किया और वरिष्ठ अधिवक्ता से पूछा कि क्या यह तर्क दिया जा रहा है कि 1957 के बाद अनुच्छेद 370 के बारे में कुछ नहीं किया जा सकता था, जब जम्मू कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त हो गया था. सिब्बल ने कहा कि अदालत वर्तमान में एक संवैधानिक प्रावधान की व्याख्या कर रही है और वह यहां उस प्रक्रिया को वैध बनाने के लिए नहीं है जो संविधान के लिए अज्ञात है.
370 को निरस्त करने के तरीके पर सिब्बल ने जताई आपत्ति
सिब्बल ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के तरीके पर आपत्ति जताते हुए कहा, एक राजनीतिक कार्रवाई के माध्यम से अनुच्छेद 370 को खिड़की से बाहर फेंक दिया गया. यह कोई संवैधानिक कार्य नहीं था. संसद ने खुद संविधान सभा की भूमिका निभाई और अनुच्छेद 370 को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि वह जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा का प्रयोग कर रही है. क्या ऐसी शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है? हालांकि यह सुनवाई बेनतीजा रही और यह कल यानी गुरुवार को भी सुनवाई जारी रहेगी.
याचिकाओं पर सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर रोजाना सुनवाई
शीर्ष अदालत इस मामले में रोजाना सुनवाई कर रही है और यह सोमवार तथा शुक्रवार को छोड़कर बाकी दिन दलीलें सुनेगी, क्योंकि सोमवार और शुक्रवार शीर्ष अदालत में विविध मामलों की सुनवाई के दिन हैं. इन दिनों में केवल नयी याचिकाओं पर ही सुनवाई की जाती है और नियमित मामलों की सुनवाई नहीं की जाती है. न्यायालय ने पूर्व में कहा था कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की पांच अगस्त, 2019 की अधिसूचना के बाद जम्मू-कश्मीर में व्याप्त स्थितियों के संबंध में केंद्र के हलफनामे का पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा तय किए जाने वाले संवैधानिक मुद्दे पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
सूची से नाम वापस लेना चाहता है, तो इससे कोई आपत्ति नहीं
गौरतलब है कि इससे पहेल 11 जुलाई को हुई सुनवाई में केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि अगर कोई व्यक्ति याचिकाकर्ताओं की सूची से अपना नाम वापस लेना चाहता है, तो उन्हें इससे कोई आपत्ति नहीं है. इसके बाद, पीठ ने शाह और शोरा को याचिकाकर्ताओं की सूची से अपना नाम वापस लेने की अनुमति दे दी. सुनवाई के आखिर में, एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए सीनियर अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि जहां तक मामले के शीर्षक का सवाल है, याचिकाकर्ताओं की सूची से फैसल के नाम वापस लेने से एक समस्या पैदा होगी, क्योंकि वह मुख्य याचिकाकर्ता हैं.