Prayagraj News. बाहुबली अतीक अहमद का नाम आम लोगों की जुबान पर आते ही सभी के जहन में सिर्फ डर का चेहरा उभरता है. 80 के दशक से लेकर कुछ साल पहले तक अतीक अहमद का वर्चस्व कुछ इस प्रकार था, कि कोई उनका नाम तक ऊंची जुबान से नहीं लेता था.
मीडिया रिपोर्ट की माने तो हाईस्कूल फेल अतीक अहमद पर आज करीब 100 से अधिक मुकदमे दर्ज हैं. इस वक्त वह गुजराती अहमदाबाद जेल में निरूद्ध है, लेकिन एक दौर ऐसा भी था कि जब प्रयागराज में अतीक अहमद की तूती बोलती थी. धंधा चाहे जमीन का हो या रेलवे के ठेकेदारी का अतीक की डर हर जगह बराबर था. प्रयागराज में उत्तर मध्य रेलवे मंडल कार्यालय होने के नाते रेलवे के ठेके यहां से जारी होते थे. जानकारों का माने तो रेलवे के अधिकतर चीजों में अतीक अहमद का सीधे तौर पर दखल होता था.
1962 में जन्मे अतीक अहमद पर हत्या का पहला मुकदमा 17 साल की उम्र में दर्ज हुआ था. हालांकि तब अतीक नाबालिग था. जानकार बताते हैं कि इसके बाद अतीक अहमद ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इसके बाद तो उनपर मुकदमों की लिस्ट लंबी होती चली गई. 1992 आते-आते अतीक अहमद पर चार से अधिक मुकदमें दर्ज हो चुके थे.
90 का दशक आते-आते अतीक अहमद का पूर्वांचल में अच्छा खासा प्रभाव माना जाने लगा था. लेकिन उन्हें पहचान 1989 के विधानसभा चुनाव के बाद तब मिली, जब वह पहली बार शहर पश्चिमी से बतौर निर्दलीय विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. अतीक की जीत का सिलसिला प्रयागराज की शहर पश्चिमी सीट से 1989 से शुरू हुआ, जो 2004 में हुए लोकसभा चुनाव तक जारी रहा. अतीक ने अपना आखिरी चुनाव 2004 में फूलपुर लोकसभा सीट से जीता था. समय बीता, जिसके बाद अतीक के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए प्रयागराज शहर पश्चिमी सीट से राजूपाल की इंट्री हो चुकी थी. राजू पाल कोई और नहीं अतीक का ही सागिर्द था, जो अतीक से बगावत कर उसे अलग हो गया था.
2004 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर संसदीय सीट से अतीक अहमद सांसद निर्वाचित होकर लोकसभा पहुंचे, तो वहीं शहर पश्चिमी की सीट खाली हो गई. उपचुनाव में अतीक ने इस सीट से भाई अशरफ को चुनाव लड़ाया, लेकिन गैंगेस्टर राजू पाल ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर अशरफ को शिकस्त दे दी. उस समय अशरफ की इस हार से अतीक अहमद के वर्चस्व को बड़ी चोट पहुंची थी.
राजनैतिक जानकर बताते है कि 2004 के उपचुनाव में अतीक, भाई अशरफ की हार को पचा नहीं पाए. मुस्लिम बाहुल्य शहर पश्चिमी विधानसभा सीट पर दो दशक काबिज रहे अतीक अहमद के वर्चस्व को भाई अशरफ की हार से कड़ा झटका लगा था. चुनाव के कुछ महीने बाद 25 जनवरी को विधायक राजूपाल को घेर कर धूमनगंज में गोलियों से छलनी कर हत्या कर दी गई थी.
शादी के महज 9 दिन बाद विधायक राजू पाल की हत्या की गूंज लखनऊ विधानसभा तक पहुंची थी. इस हत्या का आरोप सीधे तौर पर अतीक के भाई अशरफ पर लगा था. यह मामला न्यायालय में भी विचाराधीन है. दोनों इस समय जेल में हैं. इससे पहले भी गेस्ट हाउस कांड में भी अतीक का नाम आ चुका था. जिसके बारे में प्रयागराज में आज भी चर्चाएं होती है. इस घटना में सपा नेताओं के साथ अतीक भी शामिल थे. हालांकि इसका खुलासा आज तक नहीं हो सका.
2007 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद बसपा सत्ता में आ चुकी थी और शहर पश्चिमी विधानसभा सीट पर राजू पाल की हत्या के बाद बसपा से पूजा पाल ने चुनाव लड़कर अशरफ को हरा दिया था. वहीं मायावती जब मुख्यमंत्री बनी तो अतीक अहमद पर एक के बाद एक ताबड़तोड़ कार्रवाई शुरू हो गई. अतीक अहमद की ओर से अवैध रूप से की गई जमीन पर मायावती ने बुलडोजर चलवा दिया था. वहीं, दूसरी तरफ अतीक के सामने पूजा पाल शहर पश्चिमी से 2007 और 2012 में चट्टान बनकर खड़ी रही.
2017 विधानसभा के चुनाव में लाल बहादुर शास्त्री के नाती सिद्धार्थ नाथ सिंह ने पहली बार शहर पश्चिमी विधानसभा में कमल खिलाकर यह सीट बीजेपी की झोली में डाल दी. उस समय प्रदेश सरकार ने सिद्धार्थ नाथ सिंह को स्वास्थ्य मंत्री बनाया था. हालांकि बाद में उनका मंत्रालय बदल दिया गया. सिद्धार्थ नाथ ने 2017 के चुनाव में इस सीट पर करीब 85 हजार मत प्राप्त किए थे. वहीं सपा से ऋचा सिंह करीब 60 हजार मतों के साथ दूसरे नंबर पर रही थी. राजनीतिक पंडितों की माने तो उस समय अतीक और असरफ ऋचा की मदद कर रहे थे. बावजूद इसके वह करीब 25 हजार के अंतर से चुनाव हार गई.
लोकसभा चुनाव 2004 के बाद राजनीतिक हाशिए पर चल रहे अतीक अहमद के खिलाफ 2007 में जहां मायावती ने ताबड़तोड़ कार्रवाई की थी. वहीं 2017 में बीजेपी की सत्ता आने के बाद योगी आदित्यनाथ ने बची कसर पूरी कर दी. माफिया और उनके करीबियों पर प्रयागराज में ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई. जिसमें अतीक अहमद, विजय मिश्रा, दिलीप मिश्रा, राजेश मामा, बच्चा पासी, छुट्टन गिरी, अशोक यादव, राजकुमार यादव, संतोष यादव, गणेश यादव, समेत दर्जनों लोगों पर कारवाई हुई थी.
उत्तर प्रदेश विधानसभा 2022 के चुनाव करीब आते-आते अतीक ने सपा का दामन छोड़ AIMIM का साथ पकड़ लिया. उनकी पत्नी शाइस्ता परवीन ने भी इसी पार्टी को ज्वाइन कर लिया था. AIMIM ने शाइस्ता परवीन को शहर पश्चिमी से उम्मीदवार बनाया था, हालांकि इसका आधिकारिक ऐलान होता, इससे पहले ही अतीक के बेटे अली पर पांच करोड़ की रंगदारी और हत्या के प्रयास में मुकदमा दर्ज हो गया. यह मुकदमा अतीक साढू इमरान ने दर्ज कराया. अतीक अहमद के जमीन के धंधे को पहले इमरान ही देखता था.
विधानसभा चुनाव 2022 में आखिरी वक्त तक शहर पश्चिमी से शाइस्ता परवीन के चुनाव लड़ने की अटकलें लगाई जाती रही, लेकिन शाइस्ता परवीन ने नामांकन नहीं किया. जिसके बाद यह तस्वीर साफ हो गई कि इस बार कोई चुनावी मैदान में नहीं होगा. इसके साथ ही प्रयागराज में चर्चा शुरू हो गई है कि क्या अतीक के तीन दशक के राजनैतिक वर्चस्व का अंत हो गया है या 2004 लोकसभा चुनाव के बाद लगातार हार का सामना कर रहे अतीक अहमद ने सूझबूझ के साथ अपनी राजनैतिक जमीन को चुनाव से हटकर बचाने का प्रयास किया है.
इस बार प्रयागराज में समाजवादी पार्टी से ऋचा और भारतीय जनता पार्टी से सिद्धार्थ नाथ सिंह मैदान में है. वहीं दूसरी ओर अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि अतीक अहमद जेल में होते हुए भी पर्दे के पीछे से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी ऋचा सिंह का समर्थन कर सकते हैं.
रिपोर्ट- एस के इलाहाबादी, प्रयागराज