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इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा में अतीक के वर्चस्व को राजू पाल ने दी थी चुनौती, 2017 में पहली बार खिला कमल

इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा में अतीक अहमद के वर्चस्व को राजू पाल ने खत्म किया था. साल 2017 में पहली बार इस सीट पर कमल खिला. इस रिपोर्ट में जानिए शहर पश्चिमी विधानसभा का सियासी समीकरण...

UP Chunav 2022: संगम नगरी प्रयागराज में शहर पश्चिमी विधानसभा सीट पर 80 के दशक से लेकर 2006 तक अतीक अहमद का वर्चस्व और प्रभाव रहा. माफिया से नेता बने अतीक अहमद यहां से पांच बार विधायक रहे. अतीक 2004 में फूलपुर से सांसद बने तो धीरे-धीरे इस सीट से उनका प्रभाव कम होता गया. भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो इस सीट पर 2017 में लाल बहादुर शास्त्री के नाती सिद्धार्थ नाथ सिंह ने पहली बार कमल खिलाया. सिद्धार्थ नाथ वर्तमान समय में शहर पश्चिमी से विधायक और सूबे के कैबिनेट मंत्री हैं.

शहर पश्चिमी विधानसभा का अब तक का सियासी समीकरण

साल 1974 में शहर पश्चिमी सीट से जनसंघ के तीरथलाल विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे. 1977 के विधानसभा चुनाव में हबीब अहमद यहां से विधायक चुने गए. 1984 में यहां के लोगों ने रामगोपाल यादव को विधायक बनाया. 1989 के विधानसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय प्रत्याशी अतीक अहमद चुनाव जीतकर विधायक बने तो वह यहां से 2002 तक लगातार चुनाव जीतते रहे. वह यहां से पांच बार विधायक निर्वाचित हुए.

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अतीक अहमद के भाई अशरफ को मिली शिकस्त

साल 2004 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर संसदीय सीट से अतीक अहमद सांसद निर्वाचित होकर लोकसभा पहुंचे तो शहर पश्चिमी की सीट खाली हो गई. उपचुनाव में अतीक ने इस सीट से भाई अशरफ को चुनाव लड़ाया, लेकिन अतीक अहमद के ही करीबी रहे गैंगस्टर राजू पाल ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर अशरफ को शिकस्त दे दी. उस समय अशरफ की इस हार से अतीक अहमद के वर्चस्व को बड़ी चोट पहुंची थी.

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विधायक राजू पाल की शादी के 9 दिन बाद हत्या

राजनीतिक जानकर बताते हैं कि 2004 के उपचुनाव में अतीक भाई अशरफ की हार को पचा नहीं पाया. मुस्लिम बाहुल्य शहर पश्चिमी विधानसभा सीट पर दो दशक काबिज रहे अतीक अहमद के वर्चस्व को भाई अशरफ की हार से करारा झटका लगा था. चुनाव के कुछ महीने बाद 25 जनवरी को विधायक राजू पाल को घेर कर धूमनगंज में गोलियों से छलनी कर हत्या कर दी गई.

शादी के महज 9 दिन बाद विधायक राजू पाल की हत्या की गूंज लखनऊ विधानसभा तक पहुंची थी. जानकर बताते हैं कि राजू पाल की पत्नी पूजा पाल के हाथों की अभी मेहंदी का रंग भी नहीं उतरा था कि वह विधवा हो गईं. इस हत्या का आरोप सीधे तौर पर अतीक के भाई अशरफ पर लगा था. यह मामला भी न्यायालय में विचाराधीन है. दोनों इस समय जेल में हैं.

पूजा पाल ने अतीक के वर्चस्व को फिर दी चुनौती

राजू पाल की हत्या के बाद 2006 में हुए उपचुनाव में अशरफ ने यह सीट जीत ली, लेकिन एक साल बाद 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा ने एक बार फिर राजू पाल की पत्नी पूजा पाल पर दांव लगाया. इस बार पूजा पाल सहानुभूति की लहर में चुनाव जीत गईं. अतीक के भाई अशरफ को हार का मुंह देखना पड़ा. पूजा पाल शहर पश्चिमी से 2007 और 2012 में लगातार विधायक बनीं.

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2017 के चुनाव में सिद्धार्थ नाथ सिंह ने खिलाया कमल

विधानसभा चुनाव 2017 में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाती सिद्धार्थ नाथ सिंह ने पहली बार शहर पश्चिमी विधानसभा में कमल खिलाकर यह सीट बीजेपी की झोली में डाल दी. उस समय प्रदेश सरकार ने सिद्धार्थ नाथ सिंह को सूबे का स्वास्थ्य मंत्री बनाया था. हालांकि बाद में उनका मंत्रालय बदल दिया गया.

ऋचा सिंह को 25 हजार मतों से दी शिकस्त

सिद्धार्थ नाथ सिंह ने 2017 के चुनाव में इस सीट पर करीब 85 हजार मत प्राप्त किए थे. वहीं सपा से ऋचा सिंह करीब 60 हजार मतों के साथ दूसरे नंबर पर रहीं थीं. राजनीतिक पंडितों की माने तो उस समय अतीक और असरफ ऋचा की मदद कर रहे थे. बावजूद इसके वह करीब 25 हजार के अंतर से चुनाव हार गई.

जिले में सबसे अधिक मतदाता

मतदाताओं का समीकरण देखें तो जिले में सबसे अधिक मतदाता इसी सीट पर हैं. चार लाख 50 हजार से अधिक मतदाताओं की इस सीट पर करीब 85 हजार मुस्लिम मतदाता हैं. पिछड़ी जातियां 65 हजार, दलित 60 हजार, पाल 40 हजार, पटेल 30 हजार, मौर्य 35 हजार, वैश्य 30 हजार, ब्राह्मण 20 हजार मतदाता है.

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सपा-बसपा ने तय नहीं किया प्रत्याशी

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 की बात करें तो शहर पश्चिमी विधानसभा सीट से अभी किसी भी पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है. बीजेपी से सिटिंग विधायक सिद्धार्थ नाथ सिंह चुनाव लड़ सकते हैं तो वहीं अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से चुनाव लड़ सकती हैं. सपा और बसपा की बात करें तो वह यहां से किसे मैदान में उतारेगी, अभी यह तय नहीं हुआ है.

रिपोर्ट- एस के इलाहाबादी, प्रयागराज

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