पटना में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम करता छठ पर्व, मुस्लिम महिलाएं प्रसाद के लिए बनाती हैं चूल्हा
छठ पर्व करने वाली व्रती महिलाएं जिस कच्चे चूल्हे पर प्रसाद बनाती है, उस चूल्हे को कई मुस्लिम महिलाएं सफाई और शुद्धता का ख्याल रखते हुए बड़े ही मनोयोग से बनाती है.
Chhath Puja 2022 : बिहार के सबसे बड़े पर्व छठ पूजा की बात ही निराली है. छठ में जैसी एकता दिखती है वैसी शायद ही किसी और पर्व में मिलती है. सूर्य की उपासना का यह महापर्व सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम करता है. पर्व के दौरान छठ घाट और उससे पहले बाजार में भी लोगों के बीच स्नेह और एकता देखने को मिलती है.
शुद्धता का ख्याल रखती है महिलाएं
छठ पर्व करने वाली व्रती महिलाएं जिस कच्चे चूल्हे पर प्रसाद बनाती है, उस चूल्हे को कई मुस्लिम महिलाएं सफाई और शुद्धता का ख्याल रखते हुए बड़े ही मनोयोग से बनाती है. पटना के कंकड़बाग, कदमकुआं, दारोगा राय पथ, आर ब्लॉक और जेपी गोलंबर के पास चूल्हा बनाते हुए ये महिलायें दिख जायेंगी. इन महिलाओं की संख्या 150 से भी ज्यादा है. इसमें कई परिवार ऐसे हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी इसे बनाते आ रहे हैं.
ऑर्डर पर बनता है डबल चूल्हा
चूल्हा बनाने वाली महिलाओं का कहना है कि पर्व के लिए चूल्हा बनाने के लिए मिट्टी मंगाने और इसे तैयार करने में वो अपनी पूंजी का इस्तेमाल करती हैं. एक ट्रैक्टर मिट्टी की कीमत 1500 रुपये से लेकर 4000 रुपये तक हैं. वहीं इन चूल्हों की कीमत 150 रुपये से लेकर 400 रुपये तक हैं. सिंगल चूल्हा तो हर जगह मिल जाता है लेकिन डबल चूल्हा के लिए लोग अलग से ऑर्डर देते हैं.
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भगवान सब के लिए एक
पटना में कई ऐसे इलाके हैं, जहां मुस्लिम महिलाएं इन चूल्हों को बनाती है. इसे बनाने के लिए ये सभी दुर्गा पूजा के बाद से ही तैयारी में जुट जाती है. ये महिलाएं पिछले कई वर्षों से इन चूल्हों को बना रही हैं. चूल्हा बनाने से पहले ये सभी मिट्टी से कंकड़-पत्थर चुन कर निकालती हैं. इसके बाद पानी और भूसा मिला कर मिट्टी को चूल्हा का आकार देती हैं. वो कहती हैं कि भगवान तो सब के लिए एक है. इस महापर्व की इतनी गरिमा है कि हम इन चूल्हों को कभी घर पर तैयार नहीं करती हैं, रोड किनारे खुले में तैयार करती हैं.